आत्मा का ताप का सारांश - Aatma Ka Taap Class 11 Summary in Hindi: प्रस्तुत पाठ सैयद हैदर रजा की आत्मकथात्मक पुस्तक 'आत्मा का ताप' का एक अध्याय है। जिस
आत्मा का ताप का सारांश - Aatma Ka Taap Class 11 Summary in Hindi
आत्मा का ताप का सारांश- प्रस्तुत पाठ सैयद हैदर रजा की आत्मकथात्मक पुस्तक 'आत्मा का ताप' का एक अध्याय है। जिसका हिंदी अनुवाद मधु बी. जोशी ने किया है। इस पाठ में सैयद हैदर रज़ा ने चित्रकला के क्षेत्र में अपने आरम्भिक संघर्षों और सफलताओं का वर्णन किया है। एक कलाकार का जीवन संघर्ष और कला संघर्ष, उसकी सृजनात्मक बेचैनी, अपनी रचना में सर्वस्व झोंक देने का उसका जूनून ये सारी चीजें इसमें बहुत रोचक व सहज शैली में उभरकर आई हैं।
लेखक नागपुर स्कूल की परीक्षा में कक्षा में प्रथम आये, दस में से नौ विषयों में उन्हें विशेष योग्यता मिली। लेखक को महीने भर बाद मुंबई में जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति मिली और वे मुंबई आ गए। परन्तु तब तक दाखिले बंद हो चुके थे परन्तु लेखक ने गाँव लौटने के बजाय मुंबई में ही रहकर अध्ययन करने का निश्चय किया।
लेख़क को मुंबई का वातावरण, गैलरीयाँ और स्थानीय लोग पसंद आये। कुछ समय बाद एक्सप्रेस ब्लाक स्टूडियो में उनकी नौकरी लग गयी। साल भर में वे स्टूडियो में मुख्य डिजाइन बन गए। एक रात वे जब अपने कमरे में पहुँचे तो वहां एक पुलिसवाला खड़ा था उसने कहा कि यहां एक हत्या हो गई है। आप कमरे के अन्दर नहीं जा सकते। यह सुनकर वे बहुत डर गए। स्टूडियो के मालिक श्री जलील साहब ने उन्हें आर्ट डिपार्टमेंट में नया कमरा दे दिया।
चार वर्ष बाद सन् 1948 में उन्हें बॉम्बे आर्ट्स सोसाइटी का स्वर्ण पदक मिला। यह सम्मान पाने वाले वे सबसे कम आयु वाले कलाकार थे। दो वर्ष बाद अर्थात् 1950 में फ्रेंच सचिव से बातचीत के दौरान वह लेखक से इतने खुश हुए कि उन्होंने लेखक को 2 वर्ष के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। लेखक 1948 में श्रीनगर भी गये, वहां उन्होंने चित्र बनाए, उस समय श्रीनगर में कबायली आक्रमण हुआ।
1947 से 1948 के बीच कई महत्वपूर्ण घटनाएँ भी घटीं। इस दौरान लेखक ने भारत का विभाजन और महात्मा गाँधी की हत्या जैसी त्रासदी भी सही। जबकि व्यक्तिगत स्तर पर उनके माता-पिता का देहांत भी हो गया।
2 अक्टूबर 1950 में वे मार्सेई पहुंचे। इस प्रकार पेरिस में उनका जीवन प्रारम्भ हुआ। लेखक अपने जीवन की सर्वोचच ऊँचाई पर पहुँचे। लेखक कहते हैं मैं अपने कुटम्ब के युवा लोगों (चित्रकारों) से कहना चाहता हूँ कि तुम्हें सब कुछ मिल सकता है। बस तुम्हें मेहनत करनी होगी। चित्रकला व्यवसाय नहीं है। आत्मा की पुकार है। उसे अपना सर्वस्व देकर ही कुछ ठोस परिणाम मिल पाते हैं। लेखक कहता है हमें कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ रखकर बैठने के स्थान पर खुद कुछ करना चाहिए। लेखक ने अपने जीवन में माता-पिता के न रहने तथा राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को खो देने को भी मुश्किल बताया है।
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