आलो आँधारि पाठ का सारांश - Aalo Andhari Class 11 Summary in Hindi: प्रस्तुत रचना 'आलो आँधारि' Class 11 हिंदी वितान NCERT का अध्याय 3 है।आलो आँधारि पाठ
आलो आँधारि पाठ का सारांश - Aalo Andhari Class 11 Summary in Hindi
आलो आँधारि पाठ का सारांश: प्रस्तुत रचना 'आलो आँधारि' Class 11 हिंदी वितान NCERT का अध्याय 3 है।आलो आँधारि पाठ लेखिका बेबी हालदार की आत्मकथा है। उन्होंने बहुत कम आयु में ही अपने परिवार की जिम्मेदारी संभाल ली थी। लेखिका अपने बारे में बताती हुई कहती है कि वे किराये के घर में रहती थी। उनके पास कोई काम नहीं था। वह काम ढूँढने के लिए एक घर से दूसरे घर जाती और हमेशा चिंता में रहती कि कैसे महीना खत्म होने के बाद घर का किराया देगी। बच्चों का पालन पोषण कैसे करेगीं। काफी समय बाद भी उन्हें काम नहीं मिल पा रहा था। चूंकि लेखिका अपने बच्चों के साथ अकेली रहती थी।
इस कारण सभी उनसे उनके पति के बारे में अनेक सवाल किया करते थे जिस कारण उन्हें लोगों के पास खड़ा होना बिल्कुल पसन्द नहीं था। लेखिका ने अपने एक परिचित युवक सुनील से अपने लिए काम ढूँढने को कहा। वह लेखिका को एक साहब के घर ले गया ताकि वो खुद ही उनसे काम की बात कर सके। साहब ने कहा- यहाँ जो काम करती है उसे आठ सौ रूपये देता हूँ। तुम्हारे पैसोंके बारे में मैं तुम्हारा काम देखकर बताऊंगा | अगले दिन जब लेखिका काम करने साहब के घर पहुँचती है तो साहब लेखिका को देखते ही अन्दर जाकर दूसरी औरतको काम से निकाल देते हैं।
वह औरत लेखिका को गालियां देते हुए चली जाती है। लेखिका उस औरत से कहती है कि मुझे नहीं पता था कि कोई यहाँ काम करता है वरना मैं यहाँ कभी नहीं आती। साहब उसे सारा काम समझा देते हैं। जब साहब को पता चलता है कि लेखिका अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती है पर पढ़ा नहीं पा रही है तो वह नजदीक में स्थित स्कूल में उनका नाम लिखवा देते हैं।
घर का किराया, बच्चों को पालना इतना आसान नहीं था इसलिए लेखिका और काम करना चाहती थी। लेखिका, साहब को अपनी दिनचर्या बताती है कि कैसे वह घर जाकर अपना काम करती है और कितनी व्यस्त रहती है। साहब उसकी परेशानियों को समझते हुए उसकी सहायता करने की इच्छा जाहिर करते है और कहते हैं कि तुम मुझे अपना बाप, भाई, माँ, बंधु सब कुछ मान सकती हो।
एक रोज साहब लेखिका से उसकी पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछते है तब लेखिका उन्हें बताती है कि वह छठी-सातवीं तक पढ़ी है। साहब उन्हें अपनी पुस्तक पढ़ने को दे देते हैं। धीरे-धीरे पुस्तक पढ़ने में लेखिका माहिर हो जाती है। एक रोज साहब लेखिका को एक पेन और कॉपी देकर खाली समय में उसके जीवन की पुराने बातें याद करके लिखने को कहते हैं धीरे-धीरे लेखिका उसमें लिखने लगती है।
लेखिका अकेली अपने बच्चों के साथ रहती थी लोग उसे गन्दी नजरों से देखते और अलग-अलग तरह की बातें किया करते थे। पर साहब के घर में इतना प्यार मिलने और व्यस्त रहने के कारण वो सारी परेशानियां भूल जाती है। अचानक एक दिन मकान मालिक ने उसका घर तोड़कर सारा सामान फेंक दिया । लेखिका परेशान होकर सोचने लगी कि अब अचानक से अपने बच्चों को लेकर कहाँ जाऊँ। जब लेखिका ने सारी बात साहब को बताइ उन्होंने उसे तुरंत सारा सामान ले कर घर आने को कहा। उसे ऊपर का एक कमरा मिल गया। साहब उसे अपनी बेटी की तरह माना करते थे। कभी वह बीमार पड़ती तो उन्हें बहुत फिक्र हो जाती वे खुद दवा लाते और उन्हें देते।
लेखिका लिखती है कि दो माह से उनके बड़े बेटे की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी तब साहब ने उसका पता लगाकार उसके लिए काम ढूंढ कर पास ही घर पर काम पर लगा दिया ताकि वो आगे की पढ़ाई भी कर सकें या फिर नया काम सीख सकें। वैसे लेखिका जल्दी ही किसी से घुलती मिलती नहीं थी पर पार्क में वह सुनीति नाम की एक बंगाली लड़की से घुलने मिलने लगी थी। पर बहुत ही जल्दी सुनीति चली गई जिससे लेखिका का मन पार्क में नहीं लगा और उसने वहाँ आना जाना छोड़ दिया। वह समय लेखिका अपने पढ़ाई-लिखाई में देने लगी। अब तक जितना वह लिख चुकी थी साहब ने उनकी फोटोकॉपी कराकर उसे अपने दोस्त के पास कलकत्ता भेज दिया था। साहब के वे मित्र अक्सर पत्र के माध्यम से लेखिका का हौंसला बढ़ाया करते और उनकी लेखनी की सराहना करते। लेखिका बताती है कि एक दिन उनके बाबा घर आए उनसे बातों ही बातों में माँ की मृत्यु का पता चलता है जिसे बताते हुए बाबा की आँखों में आंसू आ जाते हैं। बाबा घर जाते हुए निश्चित होकर जाते हैं क्योंकि वे जान चुके थे कि इस घर जैसी इज्जत उसे और कहीं नहीं मिल सकती।
एक समय उनकी सोच थी कि वे अपनी सहेलियों से दूर नहीं रह पायेगी पर एक वक्त ऐसा आता है कि वो अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई तथा काम में मग्न हो जाती है कि उन्हें आभासा होता है कि वे कितनी गलत थी।
लेखिका अपनी सहेलियों से बिछुड़ने का दुख भूल चुकी थी। लेखिका को लोगों को खाना बनाकर खिलाना जितना पंसद था उतना ही उपन्यास, कहानी, कविता, अखबार पढ़ना भी पसंद था । एक दिन पड़ोसा का लड़का हाथ में एक पैकेट लिए दरवाजे पर आता है। वह पैकेट खोलती है। पैकेट में एक पत्रिका है। उसमें एक जगह उसका नाम लिखा है। उसमें लिखा था - आलो आँधारि, बेबी हालदार। खुशी से उसका मन हिलोरे मारने लगा। वह उसे बच्चों को दिखाने लगी। अचानक से ही उसे कुछ याद आया और भाग कर साहब के पास आई और उनके पैर छू कर प्रणाम किया। उन्होंने उसके सिर पर हाथ रखकर आर्शीवाद दिया। इस प्रकार इस अध्याय में बेबी हालदार ने अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को एक कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है।
COMMENTS