आओ मिलकर बचाएं पाठ का सारांश - Aao Milkar Bachaye Class 11 Summary in Hindi: प्रस्तुत कविता 'आओ मिलकर बचाएं' में कवयित्री निर्मला मातुल अपने परिवेश क
आओ मिलकर बचाएं पाठ का सारांश - Aao Milkar Bachaye Class 11 Summary in Hindi
आओ मिलकर बचाएं पाठ का सारांश- प्रस्तुत कविता 'आओ मिलकर बचाएं' में कवयित्री निर्मला मातुल अपने परिवेश को नगरीय अपसंस्कृति से बचाने का आहवान करती है। आओ मिलकर बचाएं कविता का सारांश इस प्रकार है कि इस कविता में कवियित्री समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए जरुरी है और यही इस लविता का सार भी है।
कवयित्री लोगों से आह्वान करती है कि हम सब मिलकर अपनी बस्तियों को शहरी जिंदगी के प्रभाव से अमर्यादित होने से बचाएँ। शहरी सभ्यता ने हमारी बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है। हमें अपनी बस्ती को शोषण से बचाना है, नही तो पूरी बस्ती हड़िया में डूब जायेगी। कवयित्री कहती हैं। कि हमें अपनी संथाल संस्कृति को बचाना है। हमारे चेहरे पर संथाल परगने की मिट्टी का रंग झलकना चाहिए।
कवयित्री कहती है कि शहरी संस्कृति से इस क्षेत्र के लोगों की दिनचर्या धीमी पड़ती जा रही है। उनके जीवन का उत्साह समाप्त हो रहा है। कवयित्री चाहती है कि उन्हें प्रयास करना चाहिए ताकि लोगों के मन, उत्साह, दिल का भोलापन, अक्खड़पन व संघर्ष करने की क्षमता वापिस लौट आए। कवयित्री कहती है कि उन्हें सघर्ष करने की प्रवृत्ति, परिश्रम करने की आदत के साथ अपने पारंपरिक हथियार धनुष व उसकी डोरी, तीरों के नुकीलेपन तथा कुल्हाड़ी की धार को बचाना चाहिए। वह समाज से कहती है कि हम अपने जंगलों को काटने से बचाएँ ताकि ताजा हवा मिलती रहे। नदियों का दूषित न करके उनकी स्वच्छता बनाए रों। पहाड़ों पर शोर को रोककर शांति बनाए रखनी चाहिए।
हमें अपने गीतों की धुन को बचाना है। क्योंकि वह हमारी संस्कृति की पहचान है । हमें मिट्टी की सुगन्ध तथा लहलहाती फसलों को बचाना है। ये हमारी संस्कृति के परिचायक है। कवयित्री कहती है कि आबादी व विकास के कारण घर छोटे-छोटे होते जा रहे हैं। यदि नाचने के लिए खुला आँगन चाहिए तो आबादी पर नियंत्रण करना होगा। फिल्मी प्रभाव से मुक्त होने केलिए अपने गीत होने चाहिए। व्यर्थ के तनाव को दूर करने के लिए थोड़ी हँसी बचाकर रखनी चाहिए ताकि खिलखिलाहकर हँसा जा सके। अपनी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए थोड़ा सा एकांत भी होना चाहिए।
बच्चों को खेलने के लिए मैदान, पशुओं के चरने के लिए हरी-भरी घास तथा बूढ़ों के लिए पहाड़ी प्रदेश का शांति वातावरण चाहिए। इन सबके लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। कवयित्री कहती है कि चारों तरफ अविश्वास का माहौल है। कोई किसी पर विश्वास नहीं करता । अतः ऐसे माहौल में हमें थोड़ा-सा विश्वास बनाए रखना चाहिए। हमें थोड़े से सपने भी बचाने चाहिए ताकि हम अपनी कल्पना के अनुसार कार्य कर सकें। अंत में कवयित्री कहती है कि हम सबको इन सभी चीजों को बचाने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि आज आपाधापी के इस दौर में अभी भी हमारे पास बहुत कुछ बचाने के लिए बचा है । हमारी सभ्यता व संस्कृति की अनेक चीजें अभी शेष हैं।
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