उमरावसिंह का चरित्र चित्रण - 'रामगढ़ की रानी' उपन्यास में उमरावसिंह रानी अवंतीबाई के विश्वासपात्र सेवक हैं। रामगढ़ के राजा विक्रमाजीतसिंह चूँकि कुछ प
उमरावसिंह का चरित्र चित्रण - रामगढ़ की रानी
'रामगढ़ की रानी' उपन्यास में उमरावसिंह रानी अवंतीबाई के विश्वासपात्र सेवक हैं। रामगढ़ के राजा विक्रमाजीतसिंह चूँकि कुछ पागल से हो गए थे इसलिए रानी अवंतीबाई प्रायः उमरावसिंह के सहयोग से ही शासनकार्य सँभालती थीं। उमरावसिंह के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
उमरावसिंह का व्यक्तित्व
उमरावसिंह खड़देवरा के निवासी हैं और जाति से लोधी ठाकुर हैं। वे खेती-किसानी का काम करते हैं और शेष समय रामगढ़ के राजा साहब के यहाँ काम करते हैं। उनकी आयु लगभग चालीस वर्ष है और शरीर हट्टा-कट्टा है। उनकी आँखें बड़ी-बड़ी, नाक सीधी और रंग हल्का साँवला है। उनका चेहरा रोबदार और मूँछें ऊपर की ओर ऐंठी हुई थीं जिनसे नाक का सीधापन उमरावसिंह के स्वाभिमान को और नुकीला बना रहा था। वे दाढ़ी नहीं रखते थे।
जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर के निर्णय से नाखुश
रामगढ़ पर काफी मालगुजारी बकाया थी जिसकी वसूली के लिए कोर्ट ऑफ वार्ड्स के कर्मचारी बार-बार तंग करते थे । अतः राजा की ओर से उमरावसिंह जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर की कचहरी में गए थे। कचहरी में पेशकार उमरावसिंह को मूँछ ऐंठने पर बार-बार टोकता है और कमिश्नर तो मूँछ सीधी ही करवा देता है और मालगुजारी जमा न करने का कारण पूछता है। उमरावसिंह उत्तर देते हुए कहता है कि हमारे यहाँ युगों से हल-बैल के आधार पर लगान लगता आया है। जिस वर्ष पानी नहीं बरसा, किसान ने खेत पर हल नहीं लगा पाया तो उसने हमें लगान नहीं दिया। इसी कारण हमने सरकार को जमा नहीं कर पाया और जमा करते भी कहाँ से, पहले लगान की जो दर थी वह हमारे जिलों को आगरा - झाँसी के साथ जोड़ देने से बढ़ा दी गई। फिर बंदोबस्त (खेतों की हदबंदी का काम) पर बंदोबस्त हुए और लगान कभी कुछ, कभी कुछ कर दिया गया। हल-बैल से हटाकर लगान भूमि पर लगाया गया और फसल हो या न हो, लगान वसूली में कठोरता की गई। किसान खेती छोड़कर भाग खड़े हुए। अब बेदखली भी होने लगी है। कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अधिकारी जैसा व्यवहार करते हैं वैसा कभी नहीं हुआ। कमिश्नर ने कहा कि कोर्ट ऑफ वार्ड्स नहीं हटाई जा सकती, पर मालगुजारी के लिए बड़े साहब से बात करूँगा। पर वहाँ से भी मना हो गयी, इसलिए उमरावसिंह कमिश्नर के निर्णय से नाखुश ही रहा।
रानी के विश्वासपात्र
रानी अवंतीबाई उमरावसिंह पर अत्यधिक विश्वास करती थीं। उमरावसिंह रानी को बताते हैं कि अब तो जबलपुर क्या सभी जगह यह खबर उड़ रही है कि साल- छ: महीने में ये अंग्रेज हम सबको बेधर्म कर डालेंगे, तब रानी ने कहा- जब तक शरीर में रक्त की एक भी बूँद है तब तक कोई हमारा धर्म नष्ट नहीं कर सकेगा। जबलपुर के मुखियाओं और सरदारों के क्या विचार हैं। उमरावसिंह बताते हैं कि वे सभी एक बैठक करेंगे जिसमें सभी अगुआ एकत्रित होंगे। अपने लिए भी निमंत्रण है। आपका जाना तो ठीक नहीं है किसी को भी भेज दें। रानी अपना विश्वास व्यक्त करते हुए कहती हैं कि किसी को नहीं आपको भेजूँगी। वहाँ कह देना कि अन्याय के प्रति जीवनपर्यन्त लडूंगीं। सिर भले ही कट जाए धर्म नष्ट नहीं होने दिया जाएगा। जी सरकार, हम लोधी ठाकुर, गोंड, राजगोंड, राजपूत, ब्राह्मण, बनिए आदि सब मिल-जुल के काम करेंगे। अंग्रेजी पलटनों के अपने देसी सिपाही भी कुछ कर गुजरने के लिए कुसमुसा रहे हैं। अंग्रेजों ने हम सबका दीन बिगाड़ने के लिए गाय और सुअर की चर्बी के कारतूस चलाए हैं।
रानी और रामगढ़ के हितचिंतक
रानी अवंतीबाई के पास तोप है और बंदूकें इकट्ठी करने के प्रयास जारी हैं, पर उनका मानना है हथियार से बढ़कर हृदय और हाथ हैं। अपने प्रदेश में गोंडों की जनसंख्या सबसे अधिक है। लोधी ठाकुरों की भी संख्या बहुत है । इन्हें आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। उमरावसिंह रानी के हितचिंतक हैं। इसलिए वे रानी से विनती करते हैं कि काम सावधानी से किया जाए। देश का दुर्भाग्य है कि अंग्रेज परदेशियों के भी यहाँ सहायक हैं। काम की शुरुआत होते ही ऐसे लोग खबर पहुँचा देंगे। काम बिगड़ेगा और अंग्रेज बदला लेंगे।
अच्छे सलाहकार
क्रांति के लिए जिस प्रकार रोटियाँ बाँटीं गई थीं उसी तरह की योजना रानी ने बनाई थी। उन्होंने पुड़ियों की ओर संकेत करते हुए कहा- ठाकुर साहब (उमरावसिंह) आप इनको पहले अपनी जाति के खास लोगों में बँटवाएँ। जाति में भी अब भहदेले, जरिया, सिंगरोरे, जाँगड़े, मथुरिया, पतरिया, नरवरिया, परिया महालीचे आदि अनेक वर्ग बन गए हैं। तब उमरावसिंह ने महालोधों में पुड़ियाँ बँटवाने पर शंका व्यक्त की। शंका का समाधान करते हुए रानी ने उनमें भी पुड़ियाँ बाँटने के लिए कहा, क्योंकि इस वर्ग के लोग सागर, दमोह, नरसिंहपुर, जबलपुर, नागपुर, सिवनी के क्षेत्रों में बहुत हैं। अपने मंडला में भी हैं। जबलपुर में जो देशी पल्टन है उसके कुछ मुखियों से भी मिला जाए। उनसे बहुत कुछ काम बन सकता है। तब उमरावसिंह की सलाह रहती है कि यह काम राजा शंकरशाह को सौंपा जाए। यह सलाह रानी को बहुत पसंद आती है।
इसी प्रकार जब सूबेदार बल्देव सिंह अंग्रेजी पल्टन से बगावत करके अपने साथियों सहित रानी के नाम पर युद्ध जारी रखने की इच्छा करते हैं तब उमरावसिंह रानी को सलाह देते हैं कि इन जवानों का उत्साह बढ़ाने के लिए आपको अपना संदेश भेजना चाहिए और रानी संदेश भेजती भी हैं। इस प्रकार ठाकुर उमरावसिंह अच्छे सलाहकार सिद्ध होते हैं।
सैन्य संचालक और रानी के अंगरक्षक
उमरावसिंह रानी के सैन्य संचालक थे और उन्होंने अंगरक्षक के समान रानी के साथ अंत तक बने रहने का प्रण भी किया था। जब रानी और उनकी सेना को अंग्रेजों ने चारों ओर से घेर लिया तब भी वे बराबर मोर्चा लेते रहे। रानी को लेटकर बंदूक चलाने में तलवार बाधा डाल रही थी जिसे उन्होंने उमरावसिंह को देते हुए कहा कि इसे म्यान से निकाल लो पता नहीं कब जरूरत पड़ जाए। उमरावसिंह रानी का संकेत समझते हुए बोले कि मेरे जाने के बाद ही तलवार काम में लावें। ऐसे समय में रानी ने फिर संकेत में ही कहा कि हमारी महारानी दुर्गावती ने जीते-जी शत्रुओं के हाथ से अपना अंग न छुए जाने का प्रण लिया था, यह बात भूलना मत। रानी के हाथ में गोली लगी और बंदूक छूटकर गिर गई। उन्होंने उमराव सिंह से तलवार लेकर पेट में भोंक ली। युद्ध बंद हो गया और वाडिंगटन रानी के निकट आया तो उमरावसिंह ने रुँधे गले से उसे सावधान किया कि आप लोग उनका शरीर न छुएँ। वाडिंगटन के कुछ ब्राह्मण सिपाहियों ने रानी को उठाकर फौजी अस्पताल में भेज दिया, जहाँ उनका निधन हो गया। उमरावसिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और फाँसी की सजा दी गई। वह जानता था कि अदालत में यही होगा फिर भी अंत समय तक उमरावसिंह ने रानी का साथ न छोड़ा।
इस प्रकार उमरावसिंह रानी अवंतीबाई का हर प्रकार से सहायक, हितचिंतक, विश्वासपात्र सैन्य संचालक और वीर अंगरक्षक था। फाँसी पर चढ़कर भी उसने अपने प्रण की रक्षा की।
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