रानी अवंतीबाई का चरित्र चित्रण - रामगढ़ की रानी

रानी अवंतीबाई का चरित्र चित्रण- वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यास 'रामगढ़ की रानी' में रानी अवंतीबाई प्रधान पात्र हैं। उपन्यास की संपूर्ण कथा उन्हीं के इर्द

रानी अवंतीबाई का चरित्र चित्रण - रामगढ़ की रानी

रानी अवंतीबाई का चरित्र चित्रण - रामगढ़ की रानी

रानी अवंतीबाई का चरित्र चित्रण- वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यास 'रामगढ़ की रानी' में रानी अवंतीबाई प्रधान पात्र हैं। उपन्यास की संपूर्ण कथा उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। रानी अवंतीबाई सिवनी जिले के मनेकहड़ी के जागीरदार राव झुझारसिंह की पुत्री थीं। सन् 1850 में विक्रमादित्यसिंह रामगढ़ की गद्दी पर बैठे, जिन्हें साधारण जनता 'विक्रमाजीतसिंह' कहती थी। इन्हीं से अवंतीबाई का विवाह हुआ। इनके दो पुत्र अमानसिंह और शेरसिंह थे। रानी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

रानी अवंतीबाई का व्यक्तित्व

लेखक ने रानी के व्यक्तित्व के विषय में लिखा है- “ उनकी ( रानी अवंतीबाई) आयु छब्बीस-सत्ताईस के लगभग होगी। देह छरेरी पुष्ट, रंग गोरा आँखें बड़ी-बड़ी। भौंहें घनी और खिंची हुई। नाक सीधी, चेहरा गोल, सुंदर तो थीं ही, चेहरे पर शक्ति छाई हुई थी।" इस प्रकार रानी अवंतीबाई काफी सुंदर थीं और उनका व्यक्तित्व काफी आकर्षक था।

किसानों की मसीहा

रानी अवंतीबाई दीन-हीन किसानों की काफी सहायता करती थीं। वह अनेक किसानों को बिना ब्याज के ऋण दे देती थीं। वे अपने हल-बैलों से दीन-हीन किसानों के खेत समय से जुतवा देती थीं। जिससे वे भी धनी किसानों के समान भरपूर फसल ले सकें। उनका दृढ़ निश्चय था कि उनके क्षेत्र में कोई भी किसान भूखा न रहे। वे दीन-हीन किसानों को भी उतना ही सम्मान देती थीं जितना कि धनी किसान को। उनके महल के सामने के मैदान में देह पर चिथड़े और चेहरे पर आशा की झलक लिए किसानों की भीड़ एकत्रित हो जाती थी। रानी ने उनके लिए काठ के तख्त और फर्श बिछवा दिए थे पर किसान उन पर बैठते नहीं थे। रानी ने हठ करके सभी को तख्त पर बिठाकर उन्हें सम्मान दिया। इस प्रकार रानी किसानों की मसीहा थीं और किसान भी उन पर जी-जान से न्यौछावर थे।

परिवार के प्रति पूर्ण समर्पित

रानी अवंतीबाई के पति राजा विक्रमाजीत सिंह यद्यपि बहुत ही कुशल और योग्य शासक थे तथापि धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण राजकाज में कम और धार्मिक कार्यों पर अधिक ध्यान देते थे। उनके दोनों पुत्र अमानसिंह और शेरसिंह जब छोटे ही थे तब महाराज कुछ विक्षिप्त-से हो गए थे। विक्षिप्तावस्था में वे छः-छः घंटे खरमेर नदी में स्नान करते और पानी में पड़े-पड़े ही मंत्रादि बड़बड़ाते रहते थे। ऐसे राजा का ध्यान रानी अवंतीबाई पूर्ण रूप से रखती थीं । यद्यपि राजा के दिमाग पर पागलपन सदैव नहीं रहता था, वे सामान्य स्थिति में भी आ जाते थे, फिर भी रानी बड़े धैर्य से उन्हें सँभाले रहती थीं। एक बार राजा की सामान्य स्थिति में जब रानी ने अंग्रेजों के बारे में कहा कि अब अंग्रेज अपने यहाँ के किसानों से वर्षों पहले की लगान की बाकी वसूल करने वाले हैं। इस पर हमारे धर्म को भी इन परदेसियों ने कुचलने की ठानी है। इतना सुनते ही अचानक राजा अपना आसन छोड़कर खड़े हो गए और बोले कि मेरी बंदूक या तलवार दो। मैं इन पाजियों पर अभी टूटता हूँ। हमारी माली हालत बिगाड़ दी अब धर्म को लूटना चाहते हैं। रानी ने प्यार-दुलार से उन्हें समझाया कि आप चिंता न करें। मैं सब कुछ करूँगी।

रानी अपने दोनों बच्चों अमानसिंह और शेरसिंह से भी बहुत प्यार करती हैं और उनकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़तीं। रानी अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ना चाहती थीं। इस कारण सर्वप्रथम उन्होंने घुघरी और बिछिया के थानों को हस्तगत करने की योजना बनाई। योजना के क्रियान्वयन के लिए रानी ने अपने दोनों पुत्रों को विश्वसनीय सेवक-सेविकाओं की देखरेख में छोड़ दिया और रामगढ़ की रक्षा के लिए काफी सैनिक छोड़ दिए। तदुपरांत तीन सौ सिपाहियों के साथ घुघरी की ओर कूच कर दिया। इसी प्रकार होली के बाद जब वाडिंगटन ने पूरी तैयारी के साथ घुघरी से रामगढ़ की ओर कूच किया तब रानी अपने सैनिकों के साथ रामगढ़ थीं। रानी को वाडिंगटन के आने की खबर मिल गई तो उन्होंने अपने दोनों बच्चों को उमरावसिंह के साथ किसी नातेदार के यहाँ भेज दिया क्योंकि रानी जानती थीं कि युद्ध में वह मर भी सकती हैं। उन्होंने अपना खजाना भी भेज दिया ताकि उनके पुत्रों की परवरिश होती रहे। इस प्रकार रानी अपने परिवार के प्रति पूर्ण समर्पित थीं।

शत्रु के बालक के प्रति मानवीय व्यवहार

'निवास' नामक गाँव के निकट जब आक्रमण में पराजित होकर वाडिंगटन एक सैनिक की सहायता से भागा तो उसका बालक वहीं रह गया। रानी के सैनिक जब अंग्रेजी सेना का पीछा कर रहे थे तब उन्हें वह बालक मिला, जिसे उन्होंने रानी को सौंप दिया। रानी को पता चला कि यह वाडिंगटन का बालक है तब उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा, पुचकारा और पीने के लिए दूध दिया। रानी ने अपने सैनिकों से कहा कि वे बालक को उसके पिता के पास छोड़ आएँ। सैनिकों ने कहा कि वाडिंगटन ने हमें पकड़ लिया तब क्या होगा। रानी को विश्वास था कि ऐसी नौबत नहीं आएगी। आप लोग सफेद झंडी फहरा देना और परिस्थिति विपरीत लगे तो थोड़ी दूरी पर छोड़कर वापस आ जाना। सैनिकों ने ऐसा ही किया। वाडिंगटन ने अपने बालक को देखते ही सीने से लगा लिया और रानी के सैनिकों को आश्वासन दिया कि उन्हें पकड़ा नहीं जाएगा। रानी के इस कृत्य से उनका शत्रु वाडिंगटन इतना प्रभावित हुआ कि उसने रानी को अपना सलाम भेजा और कहा कि वे बगावत छोड़ दें, हम सब कोशिश करेंगे कि उन्हें माफ कर दिया जाए और उनकी रियासत वापस मिल जाए। नागपुर कामठी से कंपनी बहादुर की बहुत बड़ी फौज जबलपुर आ गई है जिसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता। रानी साहिबा, आप हथियार रख दें, यही मेरी सलाह है, आगे आपकी मर्जी।

भावुक महिला

यह सच कि रानी युद्ध में अच्छे-अच्छे शूरवीरों के छक्के छुड़ा देती हैं, पर यह भी सत्य है कि वे एक भावुक महिला भी हैं। गिरधारीदास की गद्दारी के कारण जब शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथशाह को तोप के मोहरे से बाँधकर उड़ा दिया जाता है। ये दोनों रानी अवंतीबाई के लक्ष्य ( फिरंगियों को देश से भगाना) में उनके विश्वस्त साथी थे। उमरावसिंह से उनकी वीभत्स मृत्यु के समाचार को सुनकर रानी की देह थर्रा उठती है। उनकी आँखों से धाराप्रवाह आँसू बहने लगते हैं। इसी प्रकार जब रानी को जगतसिंह से ज्ञात होता है कि सलीमनाबाद के जो जवान दिल्ली नहीं जा सके, पकड़े गए और उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। जबलपुर के फिरंगियों की फौज ने गाँव-के-गाँव जला डाले हैं। जो सामने आता है, उसका वध कर दिया जाता है। जो बचे हैं वे बेघर हो गए हैं। ऐसा सुनकर रानी का गला रुँध गया और वे दाँत भींचकर बहुत देर तक सोचती रहीं। इस प्रकार रानी अवंतीबाई एक भावुक महिला भी हैं।

अपनी आन पर अटल रहने वाली

रानी अवंतीबाई जब शाहपुरा के निकटवर्ती जंगल में वाडिंगटन की सेना से युद्ध कर रही थीं तब अंग्रेजों की सहायता के लिए रीवा की सेना भी आ पहुँची। इतनी बड़ी सेना और भारी-भरकम सैन्य सामग्री का रानी को सामना करना था फिर भी उनका धैर्य अडिग था। रानी के साथ थोड़े से किसान और सामान्य सैन्य-सामग्री थी। चारों ओर से मृत्यु निश्चित थी फिर भी उन्होंने अपना साहस न खोया और धैर्य के साथ उमरावसिंह से कहा कि हमारी महारानी दुर्गावती ने जीते-जी दुश्मन के हाथ से अपना अंग न छु जाने का प्रण किया था, इसे न भूलना। उमरावसिंह रानी की बात का अर्थ समझ गए और उन्होंने कहा कि मेरे जाने के बाद ही तलवार काम में लावें। रानी आगे बढ़कर लड़ना चाहती थीं कि बाएँ हाथ में गोली लगी जिससे बंदूक हाथ से छूटकर गिर गई। रानी ने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर उमरावसिंह से तलवार ली और अपने पेट में भोंक ली। रानी धरती पर गिर पड़ी, यह देखकर किसानों ने अपने हथियार फेंक दिए। रानी अभी अचेत थीं, उनका देहावसान नहीं हुआ था। वाडिंगटन समीप आ गया पर उमरावसिंह के कहने पर उन्होंने रानी को हाथ नहीं लगाया बल्कि कुछ ब्राह्मण सिपाहियों द्वारा उठवाकर उन्हें फौजी अस्पताल में भेज दिया। डॉक्टर ने तलवार निकालकर उनका उपचार शुरू किया, अंततः वे वीरगति को प्राप्त हो गईं। रानी मरते-मरते यह बयान भी दे गयीं कि किसानों को मैंने ही भड़काया है अन्य किसी ने नहीं। ये सभी बेकसूर हैं।

त्योहारों की समर्थक पर कुरीतियों की विरोधी

रानी अवंतीबाई रामगढ़ में होली के त्योहार के अवसर पर कहती हैं कि होली को अपने यहाँ पवित्र त्योहार कहा गया है। अलग हुए मन को मिलाने, साल भर के लगे घावों को पूरने, ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाने और विषमता को दूर करके समता के प्रसार का यह त्योहार है। यह सब हँसी-खुशी के साथ मनाये जाने पर ही संभव है। इस त्योहार में अब कितनी पवित्रता रह गई है। अब मन के भीतर इकट्ठा हुआ जमा हुआ मैल ही इस त्योहार के माध्यम से बाहर आता है। सभी को विनोद और मनोरंजन से शक्ति तथा स्फूर्ति प्राप्त होती है। परंतु होली में विनोद-प्राप्ति के लिए इतना प्रयास और परिश्रम किया जाता है कि गाँठ की शक्ति भी खर्च हो जाती है, आपस का द्वेष बढ़ जाता है। इसका रूप बदल दिया जाना चाहिए। ऐसा करना कठिन अवश्य है, पर प्रयास किया जाना चाहिए।

भोग-विलास में डूबे राजा-रईसों की विरोधी

रानी का कहना है कि राजा और रईसों ने जहाँ संपत्ति इकट्ठी की कि फिर भोग-विलास में डूब गए। इस संपत्ति और भोग-विलास की वृद्धि के लिए आपस में लड़ मरे। जनसामान्य की उन्होंने कभी चिंता ही नहीं की और जनता भी अलग-थलग बनी रही। राजा, रईस अथवा मालगुजार वही पनप सकता है जो त्याग तपस्या का जीवन अपनाता है। युग आ गया है जब आप सबको वर्ग का नहीं जनता का बन जाना चाहिए। राज गया, जनता गड्ढे में पड़ी, पर उछल-कूद तो मन बहलाने के लिए बनी रहनी चाहिए। पर इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि राजपाट गया क्यों! कुछ राजा तथा जागीरदार रात-रात भर नौटंकी करते-खेलते रहते थे, शराब पी-पीकर द्वंद्व मचाते और दिन भर सोते रहते हैं। इससे समय मिला तो एक-दूसरे से लड़ पड़े । इसी कारण सब कुछ चौपट हुआ। अब तो सँभल जाना चाहिए अन्यथा अभी तक आप लोग जितने कुचले - पिचले गए हैं उससे भी अधिक दुर्गति के लिए तैयार रहना चाहिए।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि रानी अवंतीबाई शत्रु-मित्र से समान व्यवहार करने वाली, कुरीतियों की विरोधी, दीन-हीन किसानों की मसीहा, अपनी आन पर अटल रहने वाली, दृढ़ चरित्र रखते हुए एक भावुक महिला हैं। उन्होंने रामगढ़ और देश के प्रति जो बलिदान दिया उसी का परिणाम है कि आज हम स्वतंत्र भारत में स्वाभिमान से जी रहे हैं। यद्यपि उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो चुका है फिर भी हमारे दिलों में आज भी जिंदा हैं।

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