रामगढ़ की रानी उपन्यास का सारांश

रामगढ़ की रानी उपन्यास का सारांश: 'रामगढ़ की रानी' प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा द्वारा रचित उपन्यास है। वर्माजी जब गोंडवाने की महारान

रामगढ़ की रानी उपन्यास का सारांश

रामगढ़ की रानी उपन्यास का सारांश: 'रामगढ़ की रानी' प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार वृंदावनलाल वर्मा द्वारा रचित उपन्यास है। वर्माजी जब गोंडवाने की महारानी दुर्गावती पर उपन्यास लिखने के लिए ऐतिहासिक सामग्री का अध्ययन कर रहे थे तब उन्होंने सी. यू. विल्स की पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ राजगोंड महाराजा ऑफ द सतपुड़ा रेंज' में रामगढ़ की रानी के शौर्य की बात भी पढ़ी कि वह सन् 1857 की क्रांति में अंग्रेजी राज के विरुद्ध बड़ी बहादुरी के साथ लड़ते-लड़ते मरी थीं। तब ही इच्छा उत्पन्न हुई कि रामगढ़ की रानी पर उपन्यास लिखूँ, पर उस समय यथेष्ठ ऐतिहासिक विवरण हाथ में नहीं था, इसलिए बाद में अधिकाधिक जानकारी लेने के बाद ही उन्होंने यह उपन्यास लिखा। उपन्यास का सार इस प्रकार है-

रामगढ़ की रानी उपन्यास का सारांश

मध्य प्रदेश के मंडला के उत्तर-पूर्व में रामगढ़ लगभग पचास मील की दूरी पर है। खरमेर नदी के किनारे रामगढ़ तीन ओर सीधा सा खड़ा है, वहाँ के पहाड़ की बनावट ही ऐसी है। चौथी ओर भी अटपटा ढाल है। ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में रामगढ़ की बस्ती के चारों ओर किले का परकोटा था और भीतर राजमहल। राज्य समाप्त हो चुका था फिर भी राजा बहुत बड़ी मालगुजारी देता था। किसी युग में राज्य का क्षेत्रफल चार हजार वर्गमील था जिसमें चौदह परगने थे । यहाँ का अंतिम राजा विक्रमादित्यसिंह था जो पागल कहा जाता था। रानी अवंतीबाई इन्हीं की पत्नी थी। इनके बड़े पुत्र अमानसिंह और छोटे शेरसिंह थे । राजा के पागलपन का लाभ उठाकर ईस्ट इंडिया कंपनी के उच्च पदाधिकारी ने रामगढ़ क्षेत्र को कोर्ट कर लिया और अब उसके पदाधिकारी रामगढ़ में बैठकर हुकूमत कर रहे हैं।

खड़देवरा के लोधी ठाकुर उमरावसिंह रामगढ़ की रानी के विश्वासपात्र प्रतिनिधि हैं। उमरावसिंह जबलपुर के डिप्टी कमिश्नर की कचहरी में कोर्ट ऑव वार्ड को रामगढ़ से हटा लेने और रानी साहब के हाथ में राज्य-प्रबंध देने की फरियाद करते हैं तथा अन्यायपूर्ण बकाया मालगुजारी के माफ करने की बात कहते हैं। डिप्टी कमिश्नर अपने बड़े साहब से छूट की सिफारिश करने को कहते हैं, पर वहाँ से छूट की मनाही हो जाती है। उमरावसिंह सारा विवरण रानी को सुनाते हैं तब रानी इन सभी को अन्यायी मानकर जबलपुर के मुखिया सरदारों की सोच के बारे में उमरावसिंह से पूछती हैं। उमरावसिंह बताते हैं कि वे एक बैठक करेंगे जिसमें क्रांति के इच्छुक सभी अगुआ इकट्ठे होंगे और हमारे लिए भी निमंत्रण भेजा गया है। रानी ने अपनी ओर से उमरावसिंह को ही भेजा ।

निर्धारित तिथि पर पुरवा में शंकरशाह राजगोंड की हवेली में बैठक के लिए उनका पुत्र रघुनाथशाह, कर्णदेव ब्राह्मण, जगतसिंह राजपूत, उमरावसिंह आदि एकत्रित हुए। बैठक का उद्देश्य यह तय करना था कि अंग्रेजों के बड़े साहब से क्या फरियाद करनी है और इसके लिए किस-किस को जाना है। सब कुछ निर्धारित होने के बाद दूसरे दिन बातचीत की तारीख निश्चित हो गई और निश्चित तारीख और समय पर सभी लोग डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर पहुँच गए। बातचीत हुई, तर्क-वितर्क हुए पर कोई नतीजा न निकला। कमिश्नर किसी तरह की छूट देना नहीं चाहते थे।

कंपनी की ओर से कोई रियायत न मिलने पर रानी अवंतीबाई ने फिरंगियों से दो-दो हाथ कर उन्हें देश से खदेड़ देने की ठान ली। इसके लिए संगठित होना और बंदूकों का प्रबंध आवश्यक था । संगठित होने के लिए उन्होंने कागज पर संदेश लिखवाया कि “देश की रक्षा के लिए या तो कमर कसो या चूड़ी पहनकर घर में बंद हो जाओ। तुम्हें धर्म-ईमान की सौगंध है जो इस कागज का सही पता वैरी को दो।" इस संदेश के साथ उन्होंने एक चूड़ी रखकर पुड़िया बना दी। इस प्रकार उन्होंने अपना संदेश अलग-अलग जिम्मेदार व्यक्तियों के पास भिजवा दिया जहाँ से उसे उन लोगों ने आगे बढ़ा दिया।

शंकरशाह और उनके पुत्र रघुनाथशाह के पास जाकर उमरावसिंह ने रानी का संदेश दिया। ये दोनों कविता और संगीत से प्रेम रखते थे अतः तय हुआ कि जगह- जगह कवि सम्मेलन के द्वारा यह संदेश गुप्त रूप से सभी तक पहुँचा दिया जाए। शंकरशाह और रघुनाथशाह जहाँ भी जाते गिरधारीदास भी वहाँ जाता, क्योंकि वह स्वयं को पूरा कवि मानता था। सरकारी कर्मचारियों को राजा शंकरशाह और राजकुमार रघुनाथशाह के षड्यंत्र की भनक मिली तो उन्होंने अपने अधिकारियों को इसकी सूचना दी। ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंसी हाऊस में मीटिंग हुई जिसमें मेजर अर्सकिन कमिश्नर, लै. क्लार्क डिप्टी कमिश्नर, जबलपुर और कई जिलों के डिप्टी कमिश्नर इकट्ठे हुए। वार्तालाप के बाद तय हुआ कि अपने-अपने जिले में किसे क्या करना है। शंकरशाह पर निगाह रखनी होगी और गिरधारीदास को लालच देकर अपने लाभ की सूचना प्राप्त करनी होगी।

क्लार्क ने दूसरे ही दिन शायरी सुनने के बहाने गिरधारीदास को बुला लिया और उनका काफी सम्मान किया। यह सिलसिला धीरे-धीरे ईनाम के कारण बढ़ता गया और इस बहाने उससे शंकरशाह की खबरें भी ली जाने लगीं। मई माह के मध्य में रामगढ़ के राजा विक्रमादित्यसिंह का निधन हो गया जिससे आस-पास के क्षेत्रों में शोक की लहर व्याप्त हो गई।

बल्देव तिवारी छिपता हुआ आया और उसने गिरधारीदास की सारी करतूतें शंकरशाह को बता दीं जिससे शंकरशाह बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने गिरधारीदास को नौकरी से निकाल दिया। गिरधारी वहाँ से सीधा कमिश्नर वाडिंगटन, क्लार्क के पास पहुँचा और उसने शंकरशाह तथा उनके पुत्र की सारी योजना बता दी। गिरधारी को फिरंगियों ने वहीं सुरक्षित स्थान पर ठहरा दिया और तुरंत घोड़े पर सवार होकर शंकरशाह, उनके पुत्र तथा तेरह-चौदह अन्य व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लाए। मुकदमा चला, पर होना वही था जो अंग्रेजों को मंजूर था । शंकरशाह और रघुनाथशाह को तोप से उड़ाने की सजा दी गई। उसी दिन उन्हें तोप से उड़ा दिया गया। बाकी तेरह - चौदह लोगों का अंत भी इसी प्रकार होना था।

इस घटना से रानी अवंतीबाई ही नहीं, बल्कि दूर-दूर तक के सामंत सरदार, राजा, प्रजा सभी हिल उठे। चारों ओर क्रांति की आग प्रज्वलित होने लगी। जबलपुर की बावन नंबर की पल्टन ने बगावत कर दी और वहाँ से बीस मील दूर पाटन की छावनी में जा धमके। वहाँ के नायक मैकग्रिगर को उन्होंने बंदी बना लिया। सूबेदार बल्देव तिवारी उन बागी सैनिकों के सेनापति की भूमिका निभा रहा था। वह अब रानी के नेतृत्व में लड़ना चाहता था। शाहपुरा के ठाकुर अपने क्षेत्र में मोर्चा लेने के लिए कटिबद्ध हैं। उमरावसिंह रानी को बताते हैं कि नागपुर कामठी की ओर से अंग्रेजी पल्टनों के आने की सूचना मिली है । बहादुरसिंह और आठ-नौ गोंड सरदार दक्षिणी क्षेत्र में मुकाबले के लिए डटे हुए हैं। जगतसिंह का कहना है कि रानी साहब मंडला पर अधिकार कर लें तो काफी सुविधा रहेगी।

जगतसिंह से सहमत होने पर रानी विचार करती हैं अगर आस-पास के क्षेत्रों को स्वतंत्र कर दिया जाए तो जबलपुर पर अधिकार करना सरल हो जाएगा। घुघरी और बिछिया के थानों को जहाँ हस्तगत कर लिया फिर मंडला में प्रवेश आसान हो जाएगा। मंडला पर धावा बोलने के पहले इन दो थानों पर पैर जमा लेना चाहिए। वहाँ से दक्षिणी मोर्चे पर भी निपटा जा सकता है। जबलपुर के फिरंगियों को नागपुर से सैनिक सहायता नहीं मिल पाएगी। पाटन की बावन नंबर उत्तर से और मैं दक्षिण से जबलपुर पर चढ़ाई करूंगी। आशा है इस योजना से विजय प्राप्त होगी। उमरावसिंह रानी साहब की योजना से सहमत था अतः युद्ध की तैयारियाँ शुरू हो गईं ।

रानी ने अपने दोनों पुत्रों को विश्वसनीय सेवक-सेविकाओं की देखरेख में करके काफी सैनिक रामगढ़ की रक्षा के लिए छोड़े और तीन सौ सिपाहियों को लेकर दो दिन बाद घुघरी की ओर कूच कर दिया। सूर्यास्त के बाद गाँव घेर लिया और बंदूकों से गोलियाँ दागी गईं। वहाँ की पुलिस ने आत्मसमर्पण कर दिया। रानी को वहाँ से ज्ञात हुआ कि घुघरी से नौ कोस की दूरी पर रामनगर में पुलिस का बड़ा दस्ता है। रानी ने वहाँ भी कब्जा कर लिया और वहाँ की पुलिस थाना छोड़कर मंडला की ओर भागी । अब बिछिया के थाने पर अधिकार करना आवश्यक हो गया क्योंकि मंडला की फिरंगी पल्टन को अतिरिक्त सहायता पहुँचाने के लिए रायपुर से बिछिया होकर ही फौज आ सकती है। रामनगर से बिछिया की दूरी 18-20 कोस थी। रानी और उनके सैनिकों ने बिछिया को भी अपने अधिकार में कर लिया।

रानी ने बिछिया के बाद अब आगे की मोर्चाबंदी आरंभ कर दी। एक सप्ताह के भीतर ही उनके पास पाँच सौ आदमी लेकर बरखेड़ा का जगतसिंह आ गया। इससे रानी की हिम्मत और बढ़ गई। जगतसिंह ने अन्य स्थानों पर अपनी विजय और फिरंगियों के अत्याचार का सारा हाल रानी को कह सुनाया। बिछिया के मोर्चे को मजबूत करके रानी मंडला की ओर बढ़ चलीं। पर दुश्मन फिरंगी भी चौकन्ने हो गए थे। डिप्टी कमिश्नर कप्तान वाडिंगटन ने अपनी सारी सैन्य शक्ति मंडला में केंद्रित कर दी।

वाडिंगटन को जब पता लगा कि रानी ने निवास थाने पर कब्जा कर लिया है तो उसने लड़ने का निश्चय किया पर उस समय उसने अपने दस्ते को विश्राम करने दिया और तीसरे पहर धावा करने का निश्चय किया । तीसरे पहर जैसे ही उसके सैनिक पहाड़ की घाटी पर चढ़े, उस पार से बंदूकों की गोलियाँ बरसने लगीं। वाडिंगटन की सेना के अग्रिम सिपाही पीछे लौट पड़े। वह चिंता में पड़ गया कि अब क्या करे। इन क्रांतिकारियों को हराये बिना वह जबलपुर पहुँच नहीं सकता था। नारायणगंज भी क्रांतिकारियों के हाथ में था। उसे सवेरे तक ठहरना पड़ा। इधर रानी ने रात में नदी पार की, पहाड़ का लंबा चक्कर काटा और भोर होते ही पीछे से आकर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों का तोपखाना तितर-बितर हो गया। रानी और वांडिगटन में तलवार युद्ध होने लगा। वाडिंगटन का तमंचा खाली हो चुका था और तलवार भी रानी के प्रबल प्रहार से हाथ से छूट चुकी थी। रानी का अगला वार वाडिंगटन के प्राण ही ले लेता पर एक सिपाही बीच में आ गया। वह सिपाही वाडिंगटन को बचाकर ले गया। अब अंग्रेज सेना पीछे हटने लगी। रानी के सैनिकों ने पीछा किया तो उन्हें एक अंग्रेज बालक पड़ा मिला जिसे वे रानी के पास ले आए।

बच्चे से पूछने पर रानी को पता चला कि वह वाडिंगटन का लड़का है। उसने बच्चे को दूध पिलाया और अपने सैनिकों को उसके पिता के पास पहुँचाने की आज्ञा दी। सैनिकों ने रानी से कहा कि अगर हमें उसने कैद कर लिया तब क्या होगा। रानी को विश्वास था कि ऐसा नहीं होगा। सैनिकों ने उस बच्चे को वाडिंगटन के पास पहुँचाया तो वह भाव-विभोर हो गया। उसने कहा कि रानी साहब को मेरा सलाम देना ओर कहना कि बगावत छोड़ दें, सरकार से हम दुआ करेंगे कि रानी को माफ कर दिया जाए और उनकी रियासत उन्हें वापस मिल जाए। उसने रानी को सावधान भी किया कि नागपुर कामठी से कंपनी साहब बहादुर की बहुत बड़ी फौज जबलपुर आ गई है। उस फौज और उसके हथियारों का कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता। रानी साहब आत्मसमर्पण कर दें, यही मेरी सलाह है, आगे उनकी मर्जी ।

सैनिकों ने लौटकर वाडिंगटन का संदेश कह सुनाया पर रानी तो अपने निर्णय पर अटल थीं। वे आस-पास के क्षेत्रों को संगठित करने में जुटी रहीं। उधर वाडिंगटन और उसके साथी अफसरों की सेना ने बिछिया, रामनगर, घुघरी, नारायणगंज अपने हाथ में कर लिए। विजयराघवगढ़ के सरयूप्रसादसिंह को गिरफ्तार कर कालेपानी की सजा दी गई। अपने देश के बाहर जाने को वह सह न सका और उसने काशी (वर्तमान वाराणसी) में आत्मघात कर लिया। रानी अब रामगढ़ आ गईं और उन्होंने निश्चय किया कि जंगलों - पहाड़ों में होकर लड़ा जाए ताकि लड़ाई लंबे समय तक चल सके। अपने दोनों पुत्रों को उमरावसिंह के साथ अपने नातेदार के यहाँ भेज दिया और मोर्चे की तैयारी में लग गईं।

वाडिंगटन ने एक टुकड़ी को रामगढ़ के बाईं ओर भेजा और स्वयं दूसरी टुकड़ी के साथ दाईं ओर गया। उसने देखा कि पीछे के पहाड़ पर रानी की सेना चढ़ती जा रही है। वाडिंगटन ने एक विस्फोटक गोला उस पहाड़ पर चलवाया। रानी की सेना और तेजी के साथ गई तथा थोड़ी ही देर में अदृश्य हो गई। वाडिंगटन और उसके साथियों ने रामगढ़ पर अधिकार कर लिया। महल की तलाशी में उसे काँच की चूड़ी और परचा मिला। परचे को पढ़कर वह समझ गया कि चारों ओर क्रांति की आग सुलगाने में इस रानी का ही योगदान रहा है। फिर उन्होंने रामगढ़ को पूर्णतया नष्ट कर दिया और रानी का पता लगाते हुए शाहपुरा की ओर बढ़े। रानी ने शाहपुरा से आठ-दस मील दूर जंगल में मोर्चा लगाया। अंग्रेजी सेना भी शाहपुरा पर टूट पड़ी अतः वहाँ के लोगों को स्थान खाली करना पड़ा।

अंग्रेजी सेना धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ रानी ने मोर्चा जमा रखा था। अंग्रेजों की सहायता के लिए रीवा की सेना भी आ पहुँची। रानी को इतनी बड़ी सेना और भारी-भरकम सैन्य सामग्री का सामना करना था पर उनका निश्चय अटल था। उनके साथ थोड़े से किसान और सामान्य सैन्य सामग्री थी। रानी की सेना को चारों ओर से घेर लिया गया। सामने की ओर बाडिंगटन, दाएँ बार्टन, बाएँ कोकवर्न के दस्ते तथा पीछे रीवा वाली सेना। इस समय भी रानी से हथियार डालने के लिए कहा गया, पर उन्होंने दृढ़ता से इनकार कर दिया। 

युद्ध आरंभ हो गया। रानी के सैनिक धड़ाधड़ गोलियाँ दाग रहे थे। यद्यपि फिरंगियों के हथियारों से निकली गोलियाँ भयंकर थीं फिर भी किसानों के रणकौशल के सामने अंग्रेजों को कई बार पीछे हटना पड़ा। रानी कभी बैठकर और कभी लेटकर बंदूक चला रही थीं पर कमर में कसी तलवार लेटकर बंदूक चलाने में बाधा डाल रही थी। उन्होंने वह तलवार उमरावसिंह को देते हुए कहा कि इसे म्यान से निकाल लो, पता नहीं कब इसकी जरूरत पड़ जाए। जीते-जी शत्रु मेरा अंग न छूने पाएँ, इस बात का ध्यान रखना। रानी आगे बढ़कर लड़ना चाहती थीं कि बाएँ हाथ में गोली लगी और बंदूक छूटकर गिर गई। रानी ने उमरावसिंह से तलवार लेकर पेट में भोंक ली और वे पृथ्वी पर गिर पड़ीं। वाडिंगटन ने तुरंत युद्ध बंद करने का बिगुल बजाया और युद्ध बंद हो गया। 

किसानों ने अपनी रानी की दशा देखकर हथियार फेंक दिए। रानी अभी मरी नहीं थी, केवल अचेत थीं। वाडिंगटन निकट आ गया, पर उमरावसिंह ने कहा कि रानी साहब की आज्ञा है विधर्मी उनका शरीर न छुएँ। वाडिंगटन बोला कि हमारे पास ब्राह्मण सिपाही हैं जो इन्हें फौजी अस्पताल में ले जाएँगे। हम इनका इलाज करेंगे। फौजी डॉक्टर ने उपचार शुरू कर दिया, तलवार पहले ही पेट से निकाल ली गई थी। थोड़ी देर में रानी को होश आया तो वाडिंगटन ने तुरंत फौजी सलाम किया और कहा कि हम लोगों ने आपको नहीं छुआ है। आपका इलाज हो रहा है शायद आप बच जाएँ। इस समय सच-सच बता दीजिए कि आपके साथ कौन-कौन से राजा, सामंत और सरदार रहे हैं। रानी ने कहा कि कोई नहीं मैं अकेली ही थी । वाडिंगटन ने कहा कि ये किसान किसके भड़काने से आपके साथ लगे। अगर आप नाम बता देंगी तो छोड़ दिया जाएगा अन्यथा कड़ी सजा दी जाएगी। हमारा फौजी कानून ही ऐसा है। मैं कुछ नहीं कर सकूँगा। रानी ने कहा कि इन्हें मैंने ही भड़काया है ये बेकसूर हैं। यह कहते ही रानी अवंतीबाई की आँखें सदा के लिए बंद हो गईं। वाडिंगटन ने जल्दी से मुँह फेरकर उँगली से आँसू पोंछ लिए। उसने उमरावसिंह के अलावा सभी को छोड़ दिया और पल्टन के उच्चवर्गीय हिंदू सिपाहियों के हाथों से रानी का दाह संस्कार कराया। इस प्रकार वीरता की अमिट छाप छोड़ने वाली रानी का शरीर धरती में समा गया।

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