नमक का दरोगा कहानी के आधार पर पंडित अलोपीदीन का चरित्र चित्रण कीजिए: नमक का दारोगा कहानी में अलोपीदीन को तत्कालीन भ्रष्ट अमीरों के प्रतिनिधि के रूप म
नमक का दरोगा कहानी के आधार पर पंडित अलोपीदीन का चरित्र चित्रण कीजिए
नमक का दारोगा कहानी में अलोपीदीन को तत्कालीन भ्रष्ट अमीरों के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित किया गया है। पंडित अलोपीदीन दातागंज के सबसे अधिक अमीर और इज्जतदार व्यक्ति थे। राजनीति व प्रशासन में अच्छी पकड़ की बदौलत वो अवैध कारोबार बेरोकटोक करते थे। वह असत्य पक्षका पक्षधर बना रहता है। अलोपीदीन के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
भ्रष्ट एवं घमण्डी
अलोपीदीन भ्रष्ट आचरण वाला व्यक्ति है। उसे अपने धन की शक्ति पर बड़ा घमण्ड है। वह एक अमीर व्यक्ति है, फिर भी वह नमक चोरी करता है जो कि निन्दनीय है। उसके आचरण से समाज में असमानता की खाई और अधिक गहरी और चौड़ी होती जाती है। उसके मन में सदा यह विचार रहता है कि मैं अपने धन की शक्ति से सबको खरीद सकता हूँ। 2. धन का गुलाम सेठ अलोपीदीन के पास बहुत धन था, किन्तु फिर भी गलत तरीकों से और अधिक धन कमाना चाहता था। उसे अपने धन की शक्ति पर बहुत भरोसा है। वह धन-लिप्सु है। वह अमीर होते हुए नमक की चोरी करके धन कमाना चाहता है। वह धन को सब कुछ मानता है। सभी लोग उसकी धन की शक्ति के सामने बिक चुके थे। उसे वंशीधर नमक का दारोगा ही ऐसा प्रथम व्यक्ति मिला जिसने उसे अपनी सत्य एवं धर्म की शक्ति से प्रभावित किया। लेखक ने उसकी धन की लालसा पर टिप्पणी करते हुए कहा है, “पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी जी पर अखंड विश्वास था । वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना की क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का राज्य है।"
व्यवहारकुशल
पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व की अन्य प्रमुख विशेषता उसकी व्यवहारकुशलता है। वह मौके के अनुसार बात करता है। अड़ियल अधिकारी के सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता है और सामान्य अधिकारी को धन का लालच देकर अपना गलत काम भी सही करवा लेता है। आवश्यकता पड़ने पर गिड़गिड़ा भी पड़ता है। वंशीधर एक कठोर वृत्ति वाला और ईमानदार अफसर था इसलिए उसे पहले धन का लालच देता है, किन्तु जब उसका यह पैंतरा नहीं चलता तो उसके सामने गिड़गिड़ाने लगता है। उसके व्यवहार कुशल होने का प्रमाण कहानी में कई स्थलों पर देखा जा सकता है।
प्रभावशाली व्यक्तित्व
पंडित अलोपीदीन भ्रष्ट व्यक्ति है। किन्तु फिर भी उसकी सारे क्षेत्र में पूरी धाक है। उसने अपने व्यक्तित्व के प्रभाव के कारण सबसे अच्छा रसूख बनाया हुआया कि वह ऐसा कार्य भी कर सकता है। कार्यालय के सब कर्मचारी, है। जब वंशीधर ने उसे नमक चोरी में हिरासत में लेकर हथकड़ी पहनाकर अदालत में पेश किया तो किसी को यकीन नहीं आया।
अदालत के वकील यहाँ तक कि न्यायालय के न्यायाधीश भी उससे प्रभावित थे। सब लोग उसे बचाने में लग जाते हैं। यह उसके प्रभावशाली व्यक्तित्व का ही परिणाम है। लेखक ने कहा है, “अदालत में पहुँचने की देर थी। पंडित अलोपीदीन इस अगाध वन के सिंह थे। अधिकारी वर्ग उनके भक्त, अमले उनके सेवक, वकील मुख्तार उनके आज्ञापालक और अरदली, चपरासी तथा चौकीदार तो उनके बिना मोल के गुलाम थे।"
परिवर्तनशील व्यक्तित्व
कहानी के प्रथम भाग में वह कितना भ्रष्ट एवं बेईमान प्रतीत होता है। उसके लिए धन ही सब कुछ है । उसको अपने धन की शक्ति पर बहुत घमण्ड है। वह स्वयं भ्रष्ट है और दूसरों को रिश्वत व धन का लालच देकर भ्रष्ट बना देता है । किन्तु वंशीधर से जब उसका सामना हुआ तो उसे पता चला कि सत्यता और धर्मनिष्ठता के सामने उसके धन की शक्ति कैसे घुटने टेक देती है। भले ही वह न्यायालय में भी रिश्वत देकर विजयी हो जाता है। किन्तु उसकी आत्मा ने भीतर-ही-भीतर कहीं हार स्वीकार कर ली और वह मानवीय गुणों, सच्चाई, धर्म व कर्त्तव्य परायणता जैसे गुणों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। वंशीधर में इन सभी गुणों को देखकर वह उसे अपनी सम्पत्ति का प्रबन्धक नियुक्त कर देता है। इससे पता चलता है कि उसका व्यक्तित्व परिवर्तनशील है।
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