मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश: मियाँ नसीरुद्दीन पाठ लेखिका की सुप्रसिद्ध 'हम हशमत' नामक रचना में संकलित है। इसमें उन्होंने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरु
मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश - Miya Nasiruddin Path ka Saransh
मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश: मियाँ नसीरुद्दीन पाठ लेखिका की सुप्रसिद्ध 'हम हशमत' नामक रचना में संकलित है। इसमें उन्होंने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्द-चित्र अंकित किया है। मियाँ नसीरुद्दीन ऐसे इंसान का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर स्वीकार करते हैं। मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश इस प्रकार है-
दोपहर का समय था। लेखिका ने दिल्ली की जामा मस्जिद के पास मटियामहल के गढ़या मुहल्ले से गुजरते हुए, आटे का ढेर सनते देखा। पूछने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई की दुकान है। अंदर मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। मौसमों की मार से पका चेहरा, आँखों में काइयाँ, भोलापन और पेशानी (माथे) पर मँजे हुए कारीगर के तेवर। बातचीत से पता चला कि मियाँ के बोलने का अनोखा अंदाज़ है।
पहले तो मियाँ चौंके कि कोई अखबारनवीस (पत्रकार) न हो। फिर तसल्ली से जवाब देने लगे। पता चला कि नानबाई का काम उनका खानदानी पेशा है। यह काम मियाँ ने अपने पिता मियाँ बरकत शाही नानबाई से सीखा है। मियाँ के दादा कल्लन भी आला नानबाई थे।
बाप-दादा की नसीहत के बारे में पूछने पर मियाँ बोले- काम करने से आता है, नसीहतों से नहीं। पहले बर्तन धोना सीखा, फिर भट्ठी बनाना और फिर भट्ठी को आँच देना- सीधे-सीधे नानबाई का हुनर कोई नहीं सीख सकता। शिक्षा देने का प्रशिक्षण बड़ी चीज है। पहले हमने खोंमचा लगाया। तब यहाँ नानबाई बनना नसीब हुआ। मियाँ ने बताया कि वे खानदानी नानबाई हैं। उनके बुजुर्गों से बादशाह सलामत ने पूछा कि मियाँ कोई नई चीज खिला सकते हो ? कोई ऐसी चीज खिलाओ, जो न आग से पके, न पानी से बने। यह पूछने पर कि वह क्या चीज थी, मियाँ नानबाई बोले, "यह हम बतायेंगे - खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है।"
उसी समय रहमत नामक व्यक्ति को पुकार लिया - मियाँ जी ने पूछा, “मियाँ रहमत, इस वक्त किधर को! अरे वह लौंडिया न आई रूमाली लेने। शाम को मँगवा लीजो।” “मियाँ नसीरुद्दीन से जब एक और प्रश्न का उत्तर देने का कष्ट करने के लिए लेखिका ने कहा, तो वे बोले, “पूछिए, अरे बात ही तो पूछिएगा - जान तो न ले लेवेंगे। उसमें भी अब क्या देर ! सत्तर के हो चुके वालिद मरहूम तो कूच किए अस्सी पर क्या मालूम हमें इतनी मोहलत मिले न मिले।"
लेखिका ने मियाँ जी से स्पष्ट रूप में प्रश्न पूछा कि उनके बुजुर्गों ने शाही बावर्चीखाने में तो काम किया ही होगा, किस बादशाह के यहाँ वे काम करते थे? मियाँ ने उत्तर देते हुए कहा-
"अजी साहिब, क्यों बाल की खाल निकालने पर तुले हैं! कह दिया न कि बादशाह के यहाँ काम करते थे सो क्या काफी नहीं ? ” जब मियाँ से कहा गया कि जरा बादशाह का नाम बता दें तो उसे वक्त से मिला लिया जाता। मियाँ खिल्ली उड़ाते हुए बोले, " वक्त से वक्त को किसी ने मिलाया है आज तक !"
यह पूछने पर कि मियाँ के यहाँ कितनी तरह की रोटियाँ पकती हैं, मियाँ ने नामों की झड़ी लगा दी - “बाकरखानी, शीरमाल, ताफतान, बेसनी, खमीरी, रूमाली, गाव-दीदा, गाज़ेबान, तुनकी।”
फिर तेवर चढ़ाकर मियाँ बोले - “तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है।" फिर मियाँ अतीत की याद में खोकर बोले, “उतर गए वे जमाने। और गए वे कद्रदान जो पकाने खाने की कद्र करना जानते थे! मियाँ अब क्या रखा है- निकाली तंदूर से - निगली और हजम ! "
अतः स्पष्ट है कि लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों का सुंदर अंकन किया है।
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