माधव का चरित्र चित्रण कीजिए: कहानी 'कफन' में माधव भी एक प्रमुख पात्र के रूप में चित्रित है, क्योंकि वह कहानी में बुधिया का पति और घीसू का बेटा है। माध
माधव का चरित्र चित्रण - Madhav Ka Charitra Chitran
माधव का चरित्र चित्रण कीजिए: उपन्यास सम्राट हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित उनकी यथार्थवादी कहानी 'कफन' में माधव भी एक प्रमुख पात्र के रूप में चित्रित है, क्योंकि वह कहानी में बुधिया का पति और घीसू का बेटा है। माधव कामचोर, आराम-तलब, निठल्ला और निष्ठुर व्यक्तित्व का स्वामी है। उसके व्यक्तित्व की निष्ठुरता तो उस समय प्रकट होती है जब उसकी पत्नी बुधिया प्रसव वेदना से तड़प रही है और वह माधव आलू खाने में तल्लीन है। न वह पत्नी के लिए दवा-दारू की व्यवस्था करता है और न डॉक्टर। लेकिन उस समय तो उसकी निष्ठुरता - निर्ममता चरम सीमा को छू जाती है जब वह उसके मरने की कामना करता है। कहानीकार ने लिखा है-
घीसू: "मालूम होता है, बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते हो गया, जा देख तो आ । "
माधव: चिढ़कर बोला- "मरना ही है, तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती ? देखकर क्या करूं ?"
घीसू: "तू बड़ा बेदर्द है। वे साल भर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई । "
तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पांव पटकना नहीं देखा जाता। इस प्रकार उक्त संवादों से उसकी निर्ममता- निष्ठुरता प्रकट होती है, क्योंकि वह कामना करता है कि उसकी पत्नी बुधिया जल्दी मर जाए ताकि वह आलू खाकर सुखपूर्वक सो सके। माधव का विवाह बुधिया के साथ पिछले वर्ष ही हुआ था और इसी नारी ने इस घर में एक व्यवस्था स्थापित की थी तथा दूसरों के घर परिश्रम करके माधव का पेट भरती थी। उसके आने से माधव और अधिक आरामतलब हो गया था तथा अकड़ने भी लगा था। यदि कोई माधव को कार्य हेतु बुलाता था तो वह निर्लज्ज भाव से दुगुनी मजदूरी मांगता।
माधव इतना कामचोर था कि आधा घण्टा काम करता तो घण्टे भर चिलम पीता। सन्तोष, धैर्य, संयम आदि उसके व्यक्तित्व के अंग थे और जीवन-भर न सम्पत्ति बटोरी और न सुख-सुविधाओं के साधनों का संग्रह किया। इसीलिए उसकी प्रकृति साधुओं से मेल खाती थी। कहानीकार ने उनकी प्रकृति के बारे में लिखा है-"अगर दोनों साधु होते तो उन्हें संतोष और धैर्य के लिए संयम और नियम की बिल्कुल जरूरत न होती। वह तो इनकी प्रकृति थी। विचित्र जीवन था इनका, घर में मिट्टी के दो-चार बर्तनों के सिवा कोई सम्पत्ति न थी। फटे चीथड़ों में अपनी नग्नता को ढाके हुए जिए जाते थे।" माधव भी दूसरों के खेतों से आलू मटर चुरा लेता और रात को भून भानकर अपने पेट की ज्वाला को शांत कर लेता या किसी के खेत से दस-पांच ऊंख उखाड़ लाता और रात को चूस लेता। इस प्रकार घीसू ने उस प्रवृत्ति से साठ साल की उम्र काट दी और माधव भी सपूत की भाँति अपने पिता के ही पद चिह्नों पर चल रहा था।
माधव कहानी में प्रसव के समय उपलब्ध होने वाले सामान के अभाव के बारे में चिन्तन करता है- "मैं सोचता हूँ कोई बाल-बच्चा हुआ, तो क्या होगा ? सोंठ, गुड़, तेल कुछ भी तो नहीं है घर में।" इसी प्रकार घर में सम्पत्ति के नाम पर दो-चार टूटे-फूटे मिट्टी के बर्तन और चीथड़ों से किसी प्रकार अपनी नग्नता को ढाँपे फिरते थे।
कहानी में माधव भी एक चिन्तनशील व विचारवान् व्यक्ति की तरह दृष्टिगोचर होता है जहां वह रूढ़ियों, पाखण्डों, ब्राह्मणों को दिए गए दान का खुलकर समर्थन करता है। कहानीकार लिखता है-माधव आसमान की तरफ देखकर बोला, मानो देवताओं को अपनी निष्पापता का साक्षी बना रहा हो "दुनिया का दस्तूर है, नहीं, लोग बेइमानों को हजारों रुपए क्यों देत हैं, कौन देखता है, परलोक में मिलता है या नहीं।" इसी प्रकार वह एक अन्यत्र स्थल पर भी कफन के पैसे खर्च कर देने से कफन न मिलने पर उपालम्भ देता हुआ कहता है-माधव को विश्वास न आया बोला- "कौन देगा ? रुपए तो तुमने चट कर दिए। वह तो मुझसे पूछेगी। उसकी मांग में तो सिंदूर मैंने डाला था।" इस प्रकार वह एक और स्थान पर भी स्वर्ग और दुःख की भी बात करता है। माधव ने फिर आसमान की तरफ देखकर कहा- "वह बैकुण्ठ में जाएगी दादा, बैकुण्ठ की रानी बनेगी।" तथा साथ ही नशे में माधव बड़बड़ाता है-"मगर दादा बेचारी ने जिन्दगी में बड़ा दुःख भोगा। कितना दुःख झेलकर मरी।" इस प्रकार वह नशे मे बुधिया का स्मरण करके रोने लगता है।
वास्तव में माधव कहानी में प्रमुख पात्र के रूप में चित्रित हुआ है और बुधिया तो कहानी में उसके चरित्र को प्रकाशित करने के लिए उपस्थित हुई है। बुधिया के निधन से ही माधव के चरित्र में निखार आता है। वह शोषित वर्ग का प्रतिनिधि है।
कफन हेतु एकत्रित की गई वह भी चन्दे की राशि से शराब पीता है, कलेजियां खाता है तथा अचार चटनी और पूरियों से युक्त सुस्वादु भोजन करता है। वह भी अपने पिता की कठपुतली बनकर कफन खरीदने के लिए एक दुकान से दूसरी दुकान पर जाता है और अन्ततः कफन न खरीदकर उस धनराशि से शराब, मछलियां, कलेजियां, अचार चटनी आदि खरीदकर जीवन में पहली बार सुस्वादु भोजन करने का गौरव प्राप्त करता है।
घीसू और माधव दोनों ही चन्दे की राशि से शराब-पान करना चाहते हैं और सुस्वादु भोजन करना चाहते हैं, लेकिन अपनी हृदयस्थ बात को एक-दूसरे के समक्ष प्रकट नहीं करते।
प्रेमचन्द जी ने माधव का चरित्र एक सफल चित्रकार की भाँति बड़ी कुशलता से चित्रित किया है।" इसी प्रकार वे एक अन्यत्र स्थल पर लिखते हैं- "कफन नामक कहानी, जो विश्व की श्रेष्ठतम कहानियों में गिनी जा सकती है। घीसू एक व्यक्ति मात्र नहीं है, वह समाज से बहिष्कृतों का प्रतिनिधि है, जिसका पीड़ित जीवन उसे भाग्यवादी, कठोर और जीवन के दुःखों की ओर से उदासीन बना देता है। उसका लड़का माधव उसका सच्चा प्रतिरूप है। वे दोनों आलसी हैं। वे बाहर न जाने के लिए आलू और मटर चुराते हैं। वे हाथ से बहुत कम क करते हैं। अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष का उनके लिए कोई मूल्य नहीं है। वे नैतिक दृष्टि से बिल्कुल गिर गए हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि माधव 'कफन' कहानी का महत्त्वपूर्ण पात्र है तथा अकर्मण्यता की भावना से आप्लावित कामचोर, आराम-तलब, निठल्ला, चोर और झूठा व्यक्ति है। लेकिन कहानी में कहीं-कहीं उसका विचारक रूप भी उभरकर आता है। कफन के पैसों की शराब पीना, सुस्वादु भोजन करना उसके नैतिक पतन की चरम सीमा है। वास्तव में बाप-बेटे माधव और घीसू में इतना अधिक साम्य है कि इनकी अपनी पहचान भी तिरोहित-सी हो गई है।
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