मदनिका का चरित्र चित्रण - Madanika Ka Charitra Chitran: मदनिका वसन्तसेना की दासी है। मदनिका और वसन्तसेना एक दूसरे को बहुत प्रेम करती हैं। वसन्तसेना च
मदनिका का चरित्र चित्रण - Madanika Ka Charitra Chitran
मदनिका वसन्तसेना की दासी है। मदनिका और वसन्तसेना एक दूसरे को बहुत प्रेम करती हैं। वसन्तसेना चारुदत्त के साथ अपने प्रणय का रहस्य मदनिका को बतलाती है। मदनिका का शर्विलक से गुप्तप्रम है। चतुर्थ अंक में मदनिका और शर्विलक की बातों से पता चलता है कि वह उनकी पहली भेंट नहीं है। मदनिका वेश्या की दासी होने पर भी सत् स्वभाव की है। जब शर्विलक चोरी के आभूषणों के साथ उससे मिलता है तो वह सत्परामर्श देती है। वह उसे आभूषण लौटा देने को कहती है। मदनिका को अवसर के अनुसार कार्य करने की सूझ है। वह शर्विलक से कहती है कि चारुदत्त का आत्मीय बनकर वसन्तसेना को आभूषण लौटा दो। मदनिका शूर और कर्मठ पुरुष की भार्या होने योग्य स्त्री है। वह शर्वि लक के कार्यों में बाधा नहीं डालती। वह जानती है कि शूर पुरुष घर में तो बैठे रहेंगे नहीं। पाणिग्रहण करके वसन्तसेना के घर के बाहर निकलते ही शर्वि लक आर्यक को कैद से छुड़ाने जाना चाहता है। मदनिका उसे रोकती नहीं। वह केवल इतना ही कहती है कि पहले मुझे गुरुजनों के पास सुरक्षित पहुँचा दो। वह उसे अपने कार्य में अप्रमत्त होने के लिये भी कहती है।
वसंतसेना की विश्वासपात्र
मदनिका पर वसंत सेना को बहुत अधिक विश्वास है। इसीलिए वसन्तसेना अपने और चारुदत्त के प्रेम बात सबसे पहले मदनिका को ही बताती है। यदि मदनिका भी कोशिश करती है कि उसकी सखी वसंतसेना को अधिक से अधिक सुख प्राप्त हो।
सुन्दर स्वभाव वाली
यह दासी होने भी सुन्दर स्वभाव स्वभाव वाली है। जब शर्विलक चारुदत्त के घर चोरी करने की बात बताता है तो वह चारुदत्त के किसी भी अनिष्ट की सम्भावना से घबरा जाती है। बाद में, यह जानकर आश्वस्त हो जाती है कि चारुदत्त का अनिष्ठ नहीं हुआ है।
सत्परामर्श देने वाली
वह सत्परामर्शदात्री है। शर्विलाक जो गहने चारुदत्त के घर चोरी से मे मो गहने चाहदत्त के घर चोरी करके लाया है, वह वसंतसेना के ही गहने है चारुदत्त के घर धरोहर के रूप में वसंतसेना द्वारा रखा गयाथा। मदनिका शार्बिलक को सत्परामर्श देती है कि इन गहनों को वसंतसेना को दे देना चाहिए। इस बात को सुनकर शर्विलाक मदनिका से अत्यधिक प्रभावित हो जाता है। शर्विलाक उसका परामर्श मानकर चारुदत्त का आत्मीय बनकर वसंतसेना को गहने दे देता है।
लालच का अभाव (निर्लोभता)
मदनिका में अल्पमात्र भी लोभ नहीं है। यदि उसमें लोभ होता, तो वह शर्विलाक से स्वयं गहने ले लेती। क्योंकि शर्विलक उसे अतिशय प्रेम करता है। वह चोरी भी मदनिका के लिए ही करता था। छिपकर सुनती हुई वसन्तसेना भी अति प्रसन्न हो जाती है और मदनिका को शर्विलाक की पत्नी बनाकर खुशी से उसे विदा कर देती है।
सुयोग्य सहभागिना और हितकारिणी
मदनिका एक सुयोग्य सहभागिनी का कर्तव्य निभाती है। विदा होकर पतिगृह जाते समय मार्ग में पता चलता है कि शर्विलाक के एक मित्र 'आर्यक' को बन्धक बना लिया गया है। शर्विलाक धर्मसंकट में पड़ जाता है कि वह पत्नी के साथ अपने घर जाय अथवा अपने मित्र 'आर्यक' को मुक्त कराने के लिए जाय। पति शर्विलाक क्यो धर्म संकट में पड़ा हुआ देखकर वह अकेले ही पतिगृह जाने को तैयार हो जाती है तथा अपने पति (शर्विलक) को उसके मित्र आर्यक की सहायता के लिए भेज देती है। इस प्रकार वह अपने पति और उसके मित्र आर्यट का हित समझकर उसमें सक्रिय सहयोग करती है।
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