हिंदी जनसंचार के माध्यम Class 11 प्रश्न उत्तर - Hindi Jansanchar ke Madhyam Class 11 Questions and Answers
हिंदी जनसंचार के माध्यम Class 11 प्रश्न उत्तर - Hindi Jansanchar ke Madhyam Class 11 Questions and Answers
प्रश्न 1. इस पाठ में विभिन्न लोक - माध्यमों की चर्चा हुई है। आप पता लगाइए कि वे कौन-कौन से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं? अपने क्षेत्र में प्रचलित किसी लोकनाट्य या लोक माध्यम के किसी प्रसंग के बारे में जानकारी हासिल कर उसकी प्रस्तुति के किसी खास अंदाज़ के बारे में भी लिखें।
उत्तर- इस पाठ में बताया गया है कि भारतवर्ष के विभिन्न भागों में बाउल, सांग, रागनी, तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्षगान आदि लोकनाट्यों का प्रयोग किया जाता रहा है। इन सबका प्रमुख लक्ष्य मनोरंजन के साथ-साथ एक क्षेत्र का संदेश दूसरे क्षेत्र तक पहुँचाना था। लोकनाट्यों द्वारा जनमत तैयार करने का कार्य भी किया जाता था। इसमें कठपुतली की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती थी। हरियाणा में सांग लोकनाट्य बहुत प्रसिद्ध रहा है। वस्तुतः सांग काव्यनाट्य शैली में रचित विधा है। उसमें एक कथात्मक सूत्र विभिन्न घटनाओं को एक सूत्र में पिरोकर कथानक तैयार करता है। उसे लेखक विभिन्न रागनियों से रोचक बनाता है। हरियाणा में अधिकांश सांग पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं पर रचे गए हैं। हीर-रांझा, नल-दमयंती, शकुंतला, मनियारा आदि के अतिरिक्त देश के विभिन्न देशभक्तों और वीरों के जीवन को आधार बनाकर भी सांगों की रचना की गई है। रामकिशन व्यास, दीपचंद, मांगेराम, पण्डित लख्मीचंद आदि प्रमुख सांगी हुए हैं। इनके सांगों में जहाँ मनोरंजन का तत्त्व विद्यमान है, वहीं आम जनता के लिए महान संदेश भी है।
प्रश्न 2. आज़ादी के बाद भी हमारे देश के सामने बहुत सारी चुनौतियाँ हैं। आप समाचार-पत्रों को उनके प्रति किस हद तक संवेदनशील पाते हैं?
उत्तर- आज़ादी से पूर्व भारतवर्ष में समाचार-पत्र का प्रमुख लक्ष्य आज़ादी - प्राप्ति के संघर्ष में योगदान था। निश्चित रूप से समाचार-पत्र अपने इस लक्ष्य में सफल रहे। फलस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को भारतवर्ष को स्वतंत्रता हासिल हुई। आज़ादी के पश्चात भारतवर्ष के सामने अनेक चुनौतियाँ थीं; जैसे आर्थिक विकास, लोकतंत्र की रक्षा, समाज सुधार, परिवार नियोजन, उद्योग की स्थापना, महँगाई, देश की सीमाओं की सुरक्षा, बेरोजगारी, बढ़ती जनसंख्या आदि। आज़ादी के पश्चात नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, हिंदू, दैनिक ट्रिब्यून, दी ट्रिब्यून आदि अनेक समाचार-पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। समाचार-पत्रों ने स्वतंत्र भारत में उभरी इन समस्याओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील रवैया अपनाया है। भले ही वह चीनी आक्रमण हो या पाकिस्तान द्वारा घुसपैठ की समस्या अथवा कोई अन्य समस्या। समाचार-पत्रों ने इन समस्याओं पर अत्यंत संवेदनशील प्रकाश डाला और जनमत तैयार किया। कारगिल की घटना को भारत के बच्चे-बच्चे की जुबान पर चढ़ाने का काम समाचार-पत्रों ने ही किया । यही कारण है कि संपूर्ण भारत इस अवसर पर एकजुट हो गया था और शत्रु को मुँह तोड़ जवाब दिया था। भारतवर्ष ने इस समस्या को शीघ्र ही हल कर दिया था अर्थात शत्रु को अपनी सीमा से मार भगाया था । इसके पीछे समाचार-पत्रों की भूमिका भी थी।
प्रश्न 3. टी०वी० के निजी चैनल अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाते हैं ? टी०वी० के कार्यक्रमों से उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर- आजकल निजी चैनलों की बाढ़ - सी आई हुई है। हर दिन किसी नए निजी चैनल के उद्घाटन का समाचार मिलता है। निश्चय ही टी०वी० मनोरंजन, ज्ञानवर्द्धन व सूचना का सर्वश्रेष्ठ साधन है। किंतु निजी चैनलों में व्यावसायिक सफलता के लिए एक जबरदस्त होड़ लगी हुई है । प्रत्येक चैनल अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए नए-नए विज्ञापन देता है। आकर्षक कार्यक्रम प्रस्तुत करता है। अवार्ड शो का आयोजन करता है। नए-नए सीरियल प्रस्तुत करता है। कभी-कभी व्यावसायिक सफलता के ‘कौन बनेगा करोड़पति' जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करता है। फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता और अभिनेत्रियों के साक्षात्कार करवाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों व खेलों को भी अपने चैनल पर दिखाता है।
व्यावसायिक सफलता की इस अंधी दौड़ में टी०वी० चैनल जनता के हित को भूल जाते हैं तथा ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं जिनका भारत के बच्चों व युवकों के मन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । अतः ऐसे कार्यक्रमों के आयोजनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। स्वस्थ एवं लोक-कल्याण के कार्यक्रमों के आयोजनों से प्राप्त व्यावसायिक सफलता ही टिकाऊ होती है।
प्रश्न 4. इंटरनेट पत्रकारिता ने दुनिया को किस प्रकार समेट लिया है, उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया और तेजी से लोकप्रिय हो रहा माध्यम है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसमें प्रिंट, मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, किताब, सिनेमा व पुस्तकालय आदि के ग्रुप सभी एक साथ पाए जाते हैं। इसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है। इस माध्यम ने दुनिया को एक ग्राम में बदल दिया है। इसकी गति का कोई जवाब नहीं है। आप इंटरनेट को खोलकर भारत के किसी गाँव में बैठे-बैठे अमेरिका के किसी भी पुस्तकालय की पुस्तक से पृष्ठ देख सकते हैं। दुनिया के किसी कोने में प्रकाशित समाचार-पत्र के विशेष कॉलम को पढ़ सकते हैं। यह एक अंतरक्रियात्मक माध्यम भी है। आप दुनिया की किसी महान् समस्या पर सवाल-जवाब कर सकते हो। भारत में बैठे-बैठे इंटरनेट के माध्यम से अमेरिका जैसे देश में नौकरी प्राप्त कर सकते हो। अतः इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि इंटरनेट पत्रकारिता ने दुनिया को अपने भीतर समेट लिया है।
प्रश्न 5. किन्हीं दो हिंदी पत्रिकाओं के समान अंकों को (समान अवधि के लिए) पढ़िए और उनमें निम्न बिंदुओं के आधार पर तुलना कीजिए- (क) आवरण पृष्ठ (ख) अंदर के पृष्ठों की साज-सज्जा ( ग ) सूचनाओं का क्रम (घ) भाषा शैली ।
उत्तर - हम ‘सरिता’ और ‘हंडिया टुडे’ पत्रिकाओं के समान अंकों को लेते हैं और तुलना करते हैं :
आवरण पृष्ठ-‘सरिता’ पत्रिका का आवरण पृष्ठ अधिक रंग-बिरंगा. चित्रमय, आकर्षक और सुंदर है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ का आवरण पृष्ठ अच्छा है, पर उतना आकर्षक नहीं।
अंदर के पृष्ठों की साज-सज्जा-‘सरिता’ के पृष्ठों की साज-सज्जा पर अधिक ध्यान दिया गया है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ के पृष्ठों पर कम। ‘सरिता’ के पृष्ठों पर चित्र अधिक हैं, जबकि ‘इंडिया टुडे’ के पृष्ठों पर कम।
सूचनाओं का क्रम-‘सरिता’ में सूचनाएँ किसी क्षेत्र-विशेष से संबंधित न होकर विविध क्षेत्रों से संबंधित हैं, जबकि ‘इंडिया टुडे” में मुख्यत: राजनीतिक खबरें एवं सूचनाएँ हैं।
भाषा-शैली– सरिता’ की भाषा सरल तथा बोधगम्य है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ की भाषा-शैली अधिक उच्च-स्तरीय है।
प्रश्न 6. निजी चैनलों पर सरकारी नियंत्रण होना चाहिए अथवा नहीं ? पक्ष-विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर-
पक्ष- आज निजी चैनलों की बाढ़ - सी आई हुई है। हर तरफ निजी चैनलों की चर्चा है। किंतु इसके साथ ही यह प्रश्न भी सामने आ खड़ा हुआ है कि क्या इन पर सरकारी नियंत्रण होना चाहिए। निजी चैनलों पर सरकारी नियंत्रण नहीं होना चाहिए, क्योंकि सरकार के नियंत्रण होने पर ये चैनल सरकार के कार्यों की निष्पक्षतापूर्वक आलोचना या निगरानी नहीं कर सकेंगे। उन्हें वही दिखाना पड़ेगा, जो सरकार की इच्छा होगी। इस प्रकार चैनलों का जो प्रमुख कर्त्तव्य है, वे उससे दूर चले जाएँगे। इसलिए निजी चैनल सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने चाहिएँ ताकि वे अपनी नीतियाँ स्वतंत्र रूप से निर्धारित कर सकें।
विपक्ष- पक्ष में कहा गया है कि सरकारी नियंत्रण से उनकी स्वायत्तता पर आघात होता है किंतु सरकारी नियंत्रण न होने पर ये चैनल मनमानी करने लगेंगे। इससे जनहित को ठेस पहुँचेगी। इसके अतिरिक्त ये व्यावसायिक सफलता के लिए गलत ढंग अपनाएँगे। इससे समाज का अहित होगा। अधिक आय के लिए निम्नस्तरीय कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे जिससे बच्चों व युवकों के मन व चरित्र पर बुरा असर पड़ सकता है। इसलिए इन चैनलों पर सरकारी नियंत्रण अवश्य होना चाहिए।
प्रश्न 7. नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। उनके सामने () या (x) का निशान लगाते हुए उसकी पुष्टि के लिए उदाहरण भी दीजिए-
(क) संचार माध्यम केवल मनोरंजन के साधन हैं। "╳"
स्पष्टीकरण: संचार माध्यम केवल मनोरंजन के साधन हैं क्योंकि संचार माध्यमों द्वारा ज्ञान, संस्कृति, जीवन मूल्यों व देश-विदेश की बातों का भी पता चलता है।
(ख) केवल तकनीकी विकास के कारण संचार संभव हुआ, इससे पहले संचार संभव नहीं था। "╳"
स्पष्टीकरण: संचार इससे पहले भी संभव था जैसे पत्र माध्यम से संचार।
(ग) समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ इतने सशक्त संचार माध्यम हैं कि वे राष्ट्र का स्वरूप बदल सकते हैं। "✅︎"
स्पष्टीकरण: क्योंकि समाचार-पत्र और पत्रिकाओं का जनता के बहुत बड़े भाग पर प्रभाव रहता है। वे जनता की सोच बदलकर प्रगति की ओर मोड़ सकते हैं।
(घ) टेलीविज़न सबसे प्रभावशाली एवं सशक्त संचार माध्यम है। "✅︎"
स्पष्टीकरण: टेलीविज़न में समाचार, रेडियो-प्रिंट सिनेमा आदि संचार माध्यमों के गुण एक साथ विद्यमान हैं। इसलिए उसे एक प्रभावशाली एवं सशक्त माध्यम कह सकते हैं।
(ङ) इंटरनेट सभी संचार माध्यमों का मिला-जुला रूप या समागम है। "✅︎"
स्पष्टीकरण: इंटरनेट में प्रिंट, मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, किताब, सिनेमा, पुस्तकालय आदि के भी गुण मौजूद हैं। इसने हमें विश्वग्राम का सदस्य भी बना दिया है।
(च) कई बार संचार माध्यमों का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। "✅︎"
स्पष्टीकरण: यथा सिनेमा व टेलीविज़न में अश्लील दृश्य या चित्र दिखाए जाते हैं। काल्पनिक दृश्य या समस्याएँ दिखाकर जनता को भ्रमित किया जाता है। अतः संचार माध्यमों के नकारात्मक प्रभाव होते हैं जिनके प्रति हमें सावधान रहना चाहिए।
हिंदी जनसंचार के माध्यम पाठ पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. संचार किसे कहते हैं ?
उत्तर- आज के युग में संचार के बिना जीवन संभव नहीं है। मानव सभ्यता के विकास में संचार का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वस्तुतः संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों व भावनाओं का आदान-प्रदान है। ‘संचार' शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। विज्ञान में ताप संचार होता है- किस प्रकार ताप या गर्मी एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक पहुँचती है। इसी प्रकार टेलीफोन के तार या बेतार के माध्यम से मौखिक या लिखित संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजे जाते हैं, उन्हें भी संचार कहा जाता है। किंतु यहाँ संचार का अभिप्राय दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, भावनाओं या विचारों के आदान-प्रदान से है। सुप्रसिद्ध संचारशास्त्री विल्बर श्रम ने संचार की परिभाषा देते हुए कहा है–“संचार अनुभवों की साझेदारी है।”
संचार में एक या दो अथवा कुछ ही लोगों के अनुभवों की साझेदारी नहीं होती, अपितु इसमें हजारों-लाखों के बीच होने वाले जनसंचार को भी सम्मिलित किया जा सकता है। अतः निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सूचनाओं और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के द्वारा सफलतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाना ही संचार कहलाता है और इस प्रक्रिया को अंजाम देने में सहायता करने वाले साधनों व तरीकों को संचार माध्यम कहते हैं।
प्रश्न 2. संचार के प्रमुख तत्त्वों का सार रूप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर- कहा जा चुका है कि संचार एक प्रक्रिया है तो इसका अभिप्राय यह है कि इस प्रक्रिया में कई तत्त्वों या चरणों का योगदान रहता है। कहने का भाव है कि संचार की प्रक्रिया में कई तत्त्व सम्मिलित हैं । हम यहाँ उनमें से प्रमुख तत्त्वों का उल्लेख करेंगे-
1. स्रोत या संचारक (व्यक्ति) - जब कोई संचारक या स्रोत एक उद्देश्य विशेष के साथ अपने विचार, संदेश, भावना आदि को किसी दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाना चाहता है तब संचार - प्रक्रिया का आरंभ होता है। कहने का भाव है कि व्यक्ति ही संचार का प्रमुख तत्त्व है जिसे हम स्रोत या संचारक कहते हैं।
2. कूटीकृत/ एनकोडिंग (भाषा) - जब संचारक या स्रोत अपने संदेश या भाव को दूसरों तक पहुँचाता है तो उसे भाषा, संकेत या गतिविधि की आवश्यकता होगी। व्यक्ति अपने संदेश को भाषा के द्वारा पहुँचाता है । अतः संचार की प्रक्रिया का यह दूसरा चरण है। सफल संचार के लिए सफल कूट या कोड का होना भी नितांत आवश्यक है। कहने का भाव है कि व्यक्ति भावों या विचारों को भाषा के माध्यम से व्यक्त करता है। इसलिए संचारक का भाषा पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए तभी वह अपने प्रभावपूर्ण भावों को व्यक्त कर सकेगा। इके साथ ही संदेश को प्राप्त करने वाला दूसरा व्यक्ति भी भाषा से परिचित हो। इसका अर्थ यह हुआ कि संचार का दूसरा तत्त्व भाषा या माध्यम है।
3. संदेश - संचार प्रक्रिया का तीसरा चरण है- संदेश। संचार का यही तत्त्व महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी के लिए दूसरे प्रयास किए जाते हैं। किसी भी संचारक का मुख्य उद्देश्य अपने संदेश को उसी अर्थ के साथ ( या उसी रूप में ) प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना है। इसलिए यह परमावश्यक है कि संचार अपने संदेश को लेकर स्वयं पूरी तरह से स्पष्ट हो। संदेश जितना स्पष्ट, सरल, सीधा होगा, प्राप्तकर्ता के लिए उसे समझना उतना ही आसान होगा।
4. माध्यम (चैनल) - हमारे पास संदेश और भाषा दोनों हैं, किंतु हमारी समस्या यह है कि हम उसे प्राप्तकर्ता के पास कैसे पहुँचाए। यदि संदेश प्राप्त करने वाला हमारे समीप या सामने है तो संदेश पहुँचाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। यदि संदेश प्राप्त करने वाला दूर होगा तो निश्चित रूप से हमें उस तक संदेश पहुँचाने का कोई साधन अवश्य ढूँढ़ना होगा। आज वैज्ञानिक युग में मानव ने टेलीफोन, समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और फिल्म आदि विभिन्न माध्यमों का आविष्कार कर लिया है। इन माध्यमों से आसानी से अपने संदेश को प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जा सकता है। कहने का भाव है कि माध्यम का प्रयोग संचार-प्रक्रिया का चौथा चरण है।
5. प्राप्तकर्ता/रिसीवर - संचार प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्राप्तकर्ता प्राप्त संदेश का कूटवाचन या उसकी डीकोडिंग करता है। डीकोडिंग से तात्पर्य है, प्राप्त संदेश में निहित अर्थ को समझने का प्रयास। इसे हम एनकोडिंग की विपरीत प्रक्रिया कह सकते हैं । प्राप्तकर्ता भाषा के चिह्नों के अर्थ निकालता है । अतः स्पष्ट है कि संचारक और प्राप्तकर्ता दोनों का उस कोड (भाषा चिह्नों) से परिचित होना नितांत आवश्यक है ।
6. फ़ीडबैक - कहा जा चुका है कि संचार - प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वह ही संदेश का अंतिम लक्ष्य होता है। प्राप्तकर्ता एक व्यक्ति, एक समूह, एक संस्था अथवा विशाल जन समूह हो सकता है । प्राप्तकर्ता को जब संदेश मिलता है तो उसके अनुकूल ही वह अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है । यह प्रतिक्रिया सकारात्मक या नकारात्मक हो सकती है। उदाहरणार्थ हम अपने मित्र से पुस्तक देने के लिए कहते हैं, वह हमारे इस संदेश को सुनकर हाँ या नहीं कहता है। उसकी हाँ या ना हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। संचार - प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की इस प्रक्रिया को फ़ीडबैक कहते हैं। फ़ीडबैक से हमें यह पता चल सकता है कि संचार प्रक्रिया में कोई बाधा तो नहीं आ रही है। फीडबैक से यह भी पता चलता है कि संचारक ने जो संदेश भेजा था, वह उसी अर्थ में प्राप्तकर्ता को मिला है या नहीं। फ़ीडबैक के अनुसार ही संचारक अपने संदेश में सुधार करता है तथा संचार की प्रक्रिया इस प्रकार आगे बढ़ती है।
7. शोर (बाधा) - संचार की प्रक्रिया में कई प्रकार की बाधा उत्पन्न हो सकती है। इस बाधा को नॉयज (शोर) कहते हैं । यह शोर भी कई प्रकार का होता है । यह मानसिक से लेकर तकनीकी और भौतिक शोर तक हो सकता है। शोर के कारण संदेश प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच सकता । अतः सफल संचार - प्रक्रिया के लिए शोर को हटाना या कम करना नितांत आवश्यक है । संचार प्रक्रिया को हम इस प्रकार दिखा सकते हैं-
प्रश्न 3. संचार के कितने प्रकार होते हैं ? सोदाहरण उत्तर दीजिए ।
उत्तर - संचार एक जटिल प्रक्रिया है। इसके कई रूप व प्रकार हैं। संचार के ये विभिन्न रूप व प्रकार विभिन्न होते हुए भी एक-दूसरे से इस प्रकार घुले-मिले हुए हैं कि इन्हें अलग-अलग करके देखना कठिन कार्य है। अध्ययन की सुविधा के लिए हम यहाँ संचार के विविध रूपों का वर्णन करेंगे-
1. सांकेतिक संचार - जब हम अपना कोई संदेश सामने वाले व्यक्ति को संकेत करके देते हैं तो उसे सांकेतिक संचार कहते हैं। जब हम अपने मित्र को इस संकेत से बुलाते हैं तो उसे सांकेतिक संचार कहा जाता है।
2. मौखिक संचार - जब हम किसी को नमस्कार कहते हैं और साथ ही हथेलियाँ जोड़कर प्रणाम का संकेत करते हैं तो उसे मौखिक संचार कहते हैं।
3. अमौखिक संचार - ऊपर के संचार में नमस्कार या प्रणाम शब्द का उच्चारण मौखिक है, किंतु हथेलियाँ जोड़कर या हाथ जोड़कर क्रिया करना, यह मौखिक के साथ-साथ संचार की अमौखिक क्रिया है। हम अनेक बार मौखिक संचार की अमौखिक क्रियाओं द्वारा सहायता करते हैं। कहने का तात्पर्य है कि मौखिक संचार की सफलता में अमौखिक संचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। हमारे जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण भावनाएँ मौखिक से कहीं अधिक अमौखिक संचार के माध्यम से व्यक्त होती हैं; यथा खुशी, दुःख, प्रेम, डर आदि।
4. अंतः वैयक्तिक संचार - जब हम अपने आप से बातें करते हैं अथवा कुछ सोच रहे होते हैं या कोई योजना बनाते हैं तो यह भी एक प्रकार का संचार ही है। इसमें संचारक संदेश भेजने वाला और संदेश प्राप्तकर्ता एक ही व्यक्ति होता है। इसे अंतः वैयक्तिक संचार कहते हैं। वस्तुतः अंतः वैयक्तिक संचार ही संचार का बुनियादी रूप है। किसी भी संचार का आरंभ यहाँ से ही होता है। हम पहले अपने मन में सोचते हैं, फिर किसी दूसरे से संवाद करते हैं। किसी विषय पर सोच-विचार करना या विचार-मंथन करना अंतः वैयक्तिक संचार है।
5. अंतरवैयक्तिक संचार - जब दो व्यक्ति आपस में आमने-सामने कोई संचार करते हैं तो उसे अंतरवैयक्तिक संचार कहते हैं। इस संचार का सबसे बड़ा लाभ है कि इसमें फीडबैक तत्काल ही प्राप्त हो जाता है। हम अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं को इसी संचार के माध्यम से पूरा करते हैं। इसके अतिरिक्त यह संचार ही हमारे पारिवारिक एवं सामाजिक रिश्तों की बुनियाद है। व्यक्तिगत जीवन की सफलता में भी अंतरवैयक्तिक संचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। अतः हमें अंतरवैयक्तिक संचार में दक्षता प्राप्त करनी चाहिए।
6. समूह संचार - अब तक हमने जितने भी संचार रूपों का वर्णन किया है, उनमें व्यक्ति की ही प्रधानता थी। किंतु जब एक समूह आपस में विचार-विमर्श करता है या चर्चा करता है तो उसे समूह संचार कहते हैं। कक्षा समूह संचार का एक अच्छा उदाहरण है। कक्षा में हम जो कुछ कहते हैं, वह एक या दो विद्यार्थियों के लिए नहीं, अपितु पूरी कक्षा के लिए कहते हैं। इसी प्रकार संसद में जब विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की जाती है, तो उसे भी समूह संचार ही कहा जाता है। गाँव की पंचायत या समिति में की गई चर्चा या लिए गए निर्णय भी समूह संचार के अंतर्गत आते हैं।
7. जनसंचार ( मास कम्युनिकेशन) - जब हम व्यक्तियों के बड़े समूह या पूरे समाज के साथ प्रत्यक्ष संवाद करने की अपेक्षा किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के द्वारा संवाद करते हैं तो उसे जनसंचार कहते हैं। इसमें एक संदेश को यांत्रिक माध्यम के द्वारा बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। अखबार, रेडियो, टी०वी० सिनेमा या इंटरनेट आदि जनसंचार के प्रमुख माध्यम हैं।
प्रश्न 4. संचार के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर - संचार की हमारे जीवन में अत्यधिक उपयोगिता है। संचार के निम्नलिखित कार्य हैं-
- संचार का प्रयोग हम दैनिक जीवन की जरूरतों की पूर्ति के लिए करते हैं, यथा अपने मित्र से पुस्तक माँगने के लिए हम संचार का प्रयोग करते हैं।
- जीवन में कुछ सूचना प्राप्त करवाने का कार्य भी संचार ही करता है। इसी प्रकार प्राप्त जानकारी को दूसरों तक पहुँचाने में भी हम संचार का प्रयोग करते हैं। सूचना प्राप्ति व सूचना देने के कार्य में संचार की प्रमुख भूमिका रहती है।
- नियंत्रण की प्रक्रिया में भी संचार प्रमुख कार्य करता है। संचार के द्वारा हम किसी के व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं; यथा कक्षा में अध्यापक विद्यार्थियों को संचार के द्वारा ही नियंत्रित करता है।
- अभिव्यक्ति संचार का अन्य प्रमुख कार्य है। संचार का उपयोग हम अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए करते हैं। हम अपनी खुशी, दुःख, निराशा, डर आदि भावों की अभिव्यक्ति विशेष प्रकार से संचार के द्वारा ही कर सकते हैं, भले ही वह मौखिक या अमौखिक संचार हो।
- सामाजिक संपर्क बढ़ाने का कार्य भी संचार बखूबी करता है। किसी भी समूह या समाज में आपसी सम्पर्कों को बढ़ाने का कार्य हम संचार के द्वारा ही करते हैं। व्यक्ति अपनी संचार कौशलता के बल पर ही सामाजिक संबंध एवं सामाजिक संपर्क बढ़ाता है।
- समस्याओं के समाधान हेतु भी हम संचार का ही प्रयोग करते हैं। व्यक्तिगत समस्या के लिए व्यक्ति अंतः वैयक्तिक संचार का प्रयोग करता है और समाज की समस्याओं को दूर करने के लिए समूह संचार काम में लाया जाता है।
- हम किसी वस्तु या विषय या संदेश के प्रति अपनी प्रतिक्रिया को संचार के माध्यम से ही अभिव्यक्त करते हैं। जब हमें कोई संदेश मिलता है तो उस पर हम सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया अभिव्यक्त करते हैं।
- भूमिका की पूर्ति का कार्य भी संचार के द्वारा ही किया जाता है। परिस्थिति की माँग के अनुसार हम अपनी भूमिका अदा करते हैं; यथा एक अध्यापक, डॉक्टर या न्यायाधीश के रूप में हम अपनी भूमिका के अनुसार संचार करते हैं।
प्रश्न 5. जनसंचार किसे कहते हैं ? संचार व जनसंचार के अंतर तथा उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- जनसंचार अंग्रेजी के Mass Communication का हिंदी पर्यायवाची है। वस्तुतः जनसंचार संचार का ही विकसित एवं विस्तृत रूप है। इसलिए इसका मूल काल्पनिक अर्थ भावों तथा विचारों का सामूहिक आदान-प्रदान है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जब किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के द्वारा समाज के विशाल वर्ग से संवाद कायम करने का प्रयास करते हैं तो उसे जनसंचार की संज्ञा दी जाती है। कहने का भाव है कि जनसंचार के श्रोताओं, पाठकों व दर्शकों की सीमा बहुत व्यापक होती है । इसके श्रोताओं, पाठकों व दर्शकों का गठन भी मिला-जुला होता है। इसमें गरीब, अमीर, शिक्षित, अशिक्षित, युवा-वृद्ध, स्त्री-पुरुष आदि हर प्रकार के इंसान होते हैं। जनसंचार माध्यमों के द्वारा प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है। इसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि अंतरवैयक्तिक या समूह संचार की तुलना में जनसंचार के संदेश सबके लिए होते हैं।
संचार एवं जनसंचार का एक प्रमुख अंतर यह भी है कि जनसंचार में संचारक और प्राप्तकर्ता का कोई सीधा संबंध नहीं होता। प्राप्तकर्ता अर्थात पाठक, श्रोता व दर्शक संचारक को उसकी सार्वजनिक भूमिका के लिए पहचानता है, व्यक्तिगत रूप से नहीं; यथा रेडियो पर समाचार पढ़ने वाले को हम उसकी समाचार पढ़ने की शैली के कारण ही जानते हैं या टेलीविज़न पर समाचार या अन्य कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले के रूप में पहचानते हैं, जबकि संचार में संचारक संदेश भेजने वाला व प्राप्तकर्ता संदेश प्राप्त करने वाला एक दूसरे को व्यक्तिगत स्तर पर जानते हैं।
जनसंचार औपचारिक संगठन के द्वारा चलाया जाता है। जैसे कोई समाचार-पत्र या रेडियो स्टेशन अथवा टी०वी० चैनल किसी विशेष संगठन के द्वारा ही चलाया या प्रसारित या प्रकाशित किया जाता है।
जनसंचार माध्यमों में बहुत-से द्वारपाल होते हैं। द्वारपाल वह व्यक्ति या समूह होता है जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित हो वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है। यथा किसी समाचार-पत्र में संपादक व सह-संपादक, सहायक - संपादक, उप-संपादक आदि यह निश्चित करते हैं कि समाचार-पत्र में क्या छपेगा, कितना छपेगा और किस प्रकार छपेगा। इसी प्रकार टी०वी० व रेडियो में भी द्वारपाल होते हैं जो उससे प्रसारित होने वाली सामग्री को निर्धारित करते हैं। इस प्रकार द्वारपाल की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है। वस्तुतः उनकी यह जिम्मेदारी होती है कि वे सार्वजनिक हित, पत्रकारिता के सिद्धांतों और आचार संहिता के नियमों के अनुसार ही सामग्री निर्धारित करें और उसके प्रसारण या प्रकाशन की अनुमति दें।
अतः उपर्युक्त विवेचन से जनसंचार एवं संचार का अंतर स्पष्ट हो जाता है कि संचार की सीमा सीमित है और जनसंचार की सीमा व्याप्त होती है। जनसंचार का उत्तरदायित्व भी बड़ा और गंभीर होता है। आज के युग में जनसंचार माध्यमों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
प्रश्न 6. जनसंचार के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर - संचार की भाँति जनसंचार के भी अनेक कार्य हैं। यहाँ हम उनमें से प्रमुख कार्यों का ही वर्णन करेंगे-
1. सूचना प्रदान करना - कोई भी संचार क्यों न हो, उसका सर्वप्रथम कार्य सूचना प्रदान करना है। हमें जनसंचार के माध्यम से ही विश्वभर में होने वाली गतिविधियों की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। हमारी जानकारी की पूर्ति जनसंचार माध्यमों के द्वारा ही होती है। हम विश्व के किसी भी कोने में घटित होने वाली घटना की सूचना जनसंचार के माध्यमों के जरिए ही प्राप्त करते हैं।
2. शिक्षित/जागरूक करना - जनसंचार माध्यम हमें विविध सूचनाएँ देकर जागरूक बनाते हैं। लोकतंत्र में जनसंचार माध्यमों की महत्त्वपूर्ण भूमिका जनसाधारण को शिक्षित करने की भी है। यहाँ शिक्षित करने से तात्पर्य उन्हें संसार की विविध गतिविधियों से परिचित करवाने या विश्व की परिस्थितियों से अवगत कराकर उनके प्रति सचेत करना है।
3. मनोरंजन करना - कहा जा चुका है कि जनसंचार के माध्यमों में समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन, संगीत के टेप, वीडियो, पुस्तकें आदि सम्मिलित हैं। इन सब माध्यमों का एक प्रमुख कार्य जनसाधारण का मनोरंजन करना है। ये सब मनोरंजन के भी प्रमुख साधन हैं। रेडियो में गीत, नाटक, कहानी आदि सुनते हैं। टेलीविजन का तो कहना ही क्या है। इसी प्रकार समाचार-पत्रों में भी मनोरंजन के लिए विशेष पृष्ठ होता है, जिसमें कथा-कहानी, चुटकुले, कार्टून आदि मनोरंजन की सामग्री होती है।
4. निगरानी (देखभाल) करना - किसी लोकतांत्रिक समाज में जनसंचार के माध्यम पहरेदारी का काम भी करते हैं। जनसंचार के माध्यम सरकार और अन्य संस्थाओं के कार्यों पर निगरानी रखते हैं कि कहीं सरकार या कोई संस्था नागरिकों के हितों के विरुद्ध कार्य तो नहीं कर रही है। यदि सरकार या कोई संगठन अनियमितता बरताता है तो उन्हें जनता के सामने लाना या जनता का ध्यान उनकी ओर आकृष्ट करना जनसंचार माध्यमों का कार्य है।
5. मुद्दा (एजेंडा) तय करना - जनसंचार के माध्यम सूचनाओं और विचारों के द्वारा किसी देश या समाज में विशेष एजेंडा या मुद्दा तय करते हैं। समाचार-पत्र या संचार चैनल किसी घटना को जनता के सामने प्रस्तुत करके उसको आम चर्चा का विषय बनाते हैं। ऐसा करके वे जनता को उसके प्रति अनुप्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य करते हैं।
6. विचार-विमर्श के मंच - निश्चय ही जनसंचार के माध्यमों का एक प्रमुख कार्य लोकतंत्र में विभिन्न विषयों पर विचारों को अभिव्यक्त करने का मंच उपलब्ध करवाना है। इस प्रकार किसी विषय या घटना के संबंध विभिन्न विचारों वाले लोगों तक पहुँचते हैं। समाचार-पत्रों में संपादकीय लेख के द्वारा यह कार्य सफलतापूर्वक किया जाता है। इसी प्रकार टेलीविजन पर विभिन्न लोगों के विचार या राय सुनाए जाते हैं। संपादक के नाम चिट्ठी स्तंभ में आम लोगों को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिलता है। अतः स्पष्ट है कि जनसंचार माध्यम विचार-विमर्श के लिए मंच का काम भी बखूबी करते हैं।
प्रश्न 7. ‘संचार दोधारी अस्त्र है' - इस कथन पर प्रकाश डालते हुए जनसंचार माध्यमों की संभावनाओं एवं खतरों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- 'संचार वस्तुतः दोधारी अस्त्र है' ये शब्द प्रो० श्यामचरण दुबे ने अपने एक भाषण में कहे थे। इस कथन में जनसंचार माध्यमों के लाभ व हानियों की ओर संकेत किया गया है। यदि जनसंचार माध्यमों पर समाज या देश के विकास के संदर्भ में दृष्टि डालें तो इस क्षेत्र में उसकी अनेक संभावनाएँ छुपी हुई हैं अर्थात इससे समाज का विकास संभव है। जनसंचार माध्यमों को सही दिशा-निर्देश देकर नए जीवन मूल्यों, नया विकास या प्रगति के मार्ग खोले जा सकते हैं। इनकी सहायता से समाज को परंपरा से आधुनिकीकरण के लक्ष्यों व कार्यक्रमों को स्वीकार करने या अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। सचेत जनमत तैयार करने में जनसंचार माध्यमों की मुख्य भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। मनोरंजन के साथ-साथ, विकास के संदेश भी बड़े सार्थक ढंग से जनसाधारण तक पहुँचाए जा सकते हैं।
यह जनसंचार माध्यम रूपी तस्वीर का एक पक्ष था। किंतु इस तस्वीर का दूसरा पक्ष भी है अर्थात् जनसंचार माध्यमों की संभावनाओं के साथ-साथ यदि इनका सही प्रयोग न किया जाए या ये गलत हाथों में पड़ जाएँ तो समाज या देश के लिए घातक भी बन सकते हैं। यह वह अस्त्र है कि इसका सदुपयोग एवं दुरुपयोग भी हो सकता है। मूल प्रश्न है कि यह अस्त्र किसके हाथ में है। कहने का भाव है कि जनसंचार माध्यम का सदुपयोग देश और जनता के हित में हो सकता है किंतु इनके दुरुपयोग से देश का ध्यान महत्त्वपूर्ण समस्याओं या प्रगति के पथ से हटाकर काल्पनिक प्रगति या कल्पनाओं के भ्रमजाल की ओर भी मोड़ा जा सकता है। अयोग्य संचारकर्ता इस माध्यम का गलत प्रयोग करके इनकी उपयोगिता को भी नष्ट कर सकता है। अतः स्पष्ट है कि जनसंचार माध्यम एक दोधारी अस्त्र के समान है । इसलिए इसका उपयोग बड़ी सावधानी से सूझबूझ से करना चाहिए।
प्रश्न 8. स्वतंत्रता से पूर्व के कुछ महान् पत्रकारों एवं समाचार-पत्रों के नाम बताते हुए उनकी भूमिका पर सार रूप में प्रकाश डालिए।
उत्तर - भारतेंदु हरिशचंद्र, महात्मा गाँधी, लोकमान्य तिलक, मदनमोहन मालवीय, गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, प्रेमचंद, महावीर प्रसाद द्विवेद्वी, बालमुकुंद गुप्त, प्रतापनारायण मिश्र, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर आदि स्वतंत्रता से पहले के प्रमुख पत्रकार हैं । उस समय के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं के नाम हैं- 'केसरी' 'हिंदुस्तान' 'सरस्वती', 'हंस', ‘कर्मवीर’, ‘आज’, ‘प्रदीप, 'प्रताप', 'विशाल भारत' आदि। आजादी से पहले के इन पत्र-पत्रिकाओं का प्रमुख लक्ष्य स्वतंत्रता प्राप्ति रहा है। इसके साथ-साथ सामाजिक जागृति व जनता को शिक्षित करना भी इनके प्रमुख कार्य रहे हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् इनके लक्ष्य व कार्य बदल गए थे।
प्रश्न 9. भारत में रेडियो के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- रेडियो का आविष्कार सन् 1895 में जी० मार्कोनी ने किया था। भारतवर्ष में भी रेडियो का आरंभ लगभग इसी समय हुआ था। यहाँ सन् 1936 में रेडियो स्टेशन (ऑल इंडिया रेडियो ) की स्थापना हुई थी। किंतु भारतवर्ष में स्वतंत्रता के पश्चात् तो रेडियो एक सशक्त जन-संचार माध्यम के रूप में उभरकर सामने आया। रेडियो ने एक धर्म-निरपेक्ष लोक-हितकारी जन माध्यम की भूमिका निभाई तथा देश के निर्माण में भी सहायक सिद्ध हुआ। रेडियो ने सूचना व मनोरंजन के साथ-साथ जनता को शिक्षित करने, देश की एकता को सुदृढ़ करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्तमान में आकाशवाणी 24 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही है। सन् 1993 में एफ०एम० के आने पर तो रेडियो की दुनिया में एक नई क्रांति-सी आ गई है। देश में सरकारी व गैर-सरकारी स्तर पर अनेक चैनल काम कर रहे हैं। देश की जनता को मुख्य धारा से जोड़ने का जो काम रेडियो ने किया है, वह कोई नहीं कर सकता।
प्रश्न 10. रेडियो का सभी जन-संचार माध्यमों में स्थान निर्धारित कीजिए।
उत्तर- जन-संचार के सभी माध्यमों में रेडियो का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह सबसे सस्ता और सुलभ साधन है। जहाँ संचार तो क्या आवागमन के साधन भी नहीं होते उन पहाड़ों की चोटियों पर भी रेडियो से मनोरंजन किया जाता है और संसार के साथ जुड़ा जा सकता है। वहाँ समाचार जानने का एक ही साधन होता है और वह है रेडियो। संसार भर में रेडियो का विस्तार अत्यधिक है। भारतवर्ष में भी रेडियो का विस्तार बहुत व्यापक है। संपूर्ण विश्व में एक इंच भी ऐसी धरती नहीं होगी जहाँ रेडियो तरंगें न पहुँचती हों। विश्व के सभी संचार माध्यमों में रेडियो सुलभ और सस्ता है। भारतवर्ष में 98 प्रतिशत जनता रेडियो से जुड़ी हुई है। अतः स्पष्ट है कि जन-संचार के साधनों में रेडियो का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 11. रेडियो की उन प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए जिनके कारण वह भारतवर्ष में अन्य संचार माध्यमों की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने में सफल रहा है।
उत्तर - भारतवर्ष में रेडियो की प्रसिद्धि व श्रेष्ठ स्थान प्राप्ति का कारण उसकी सुलभता ही है और यही उसकी सबसे बड़ी विशेषता है। रेडियो को केवल शिक्षित ही नहीं अशिक्षित व्यक्ति भी सुनते हैं। एक अनपढ़ व्यक्ति भी उसके माध्यम से देश व दुनिया भर के समाचार सुन सकता है। इसके साथ-साथ वह अपना मनोरंजन भी कर सकता है। यह सुविधा समाचार-पत्रों में नहीं है। रेडियो की तरंग सूर्य की किरणों और चंद्रमा की चाँदनी की भाँति बिना किसी भेदभाव के हर गाँव- कस्बे - नगर में पहुँचती है। वे हर समय उपलब्ध रहती है। रेडियो अन्य संचार माध्यमों की अपेक्षा सस्ता है। उसका प्रयोग कहीं भी किया जा सकता है। वह बंधनमुक्त है। उसके प्रयोग के लिए टेलीविज़न की भाँति बिचौलियों की आवश्यकता नहीं है। न ही केबल की भाँति बिल देना पड़ता है। रेडियो की अन्य बड़ी विशेषता यह है कि काम करते-करते भी हम उसे सुन सकते हैं। उसे साथ रखने व ले जाने में भी कोई कठिनाई नहीं होती। वह बड़े-बड़े महलों में पहुँच रखता है तो गरीब की झोंपड़ी भी उसके लिए अपरिचित नहीं है। रेडियो श्रोताओं की पसंद का भी ध्यान रखता है। आप उससे अपनी पसंद के कार्यक्रम सुन सकते हैं। फिल्मी गीतों के साथ-साथ आप लोकगीत भी सुन सकते हैं। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण ही रेडियो भारतवर्ष में अन्य जन - संचार माध्यमों में प्रमुख स्थान बनाए हुए है।
प्रश्न 12. “रेडियो भारतीय संस्कृति के अधिक निकट का जन-संचार माध्यम है ” – कैसे ?
उत्तर-रेडियो ने भारत के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि जीवन के पक्षों को सुधारने के साथ-साथ सांस्कृतिक पक्ष को भी उभारा है। वस्तुतः रेडियो की कार्य-प्रणाली भारतीय संस्कृति के अनुकूल है। यह भारत की हजारों वर्ष की पुरानी परंपरा का हिस्सा है। रेडियो भारत का पुराना उपयुक्त जन-संचार का साधन रहा है। भारतीय संस्कृति और उसकी सामाजिक सरंचना बोले हुए शब्दों पर आधारित है। भारत 'श्रुति - आवृत्ति - स्मृति' का देश है। यहाँ के लोग पहले किसी विचार को सुनते हैं, उसे स्मरण करते हैं और फिर उसे कार्यान्वित करते हैं। रेडियो भी ठीक इसी प्रकार कार्य करता है अर्थात् चीज़ों को सुनना, दोहराना और याद करना।
रेडियो का विकास गाँव-अलाव संस्कृति जैसा ही है। पहले लोग आग जलाकर उसके पास समूह में बैठे रहते थे और बातें करते थे। कथा-कहानियाँ भी सुनते-सुनाते थे। अब रेडियो के पास बैठकर समाचार सुनते हैं फिर उन पर विचार-विमर्श करते हैं। इससे आपसी तालमेल बढ़ता है। रेडियो के साथ-साथ गीतों का गुनगुनाना एवं मनोरंजन करना भी ऐसा ही कार्य है। आज भी रेडियो इसी संस्कृति का विकास दूर-दूर तक व्यापक स्तर पर कर रहा है।
प्रश्न 13. जन-संचार के प्रमुख साधन टेलीविज़न के विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- सन् 1927 में बेल टेलीफोन लेबोरेट्रीज ने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन के बीच प्रायोगिक टेलीविज़न पर कार्यक्रम का प्रसारण किया था। सन् 1936 में बी०बी०सी० ने भी अपना टेलीविज़न कार्यक्रम आरंभ कर दिया था। भारत में टेलीविज़न का आरंभ 15 सितंबर, 1959 को हुआ था । सर्वप्रथम दिल्ली के आस-पास दो टेलीविज़न सैट लगाए गए जिन्हें दो-सौ लोगों ने देखा था। सन् 1965 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर टेलीविज़न सेवा का विधिवत् प्रारंभ हुआ था । तब हर दिन एक घंटे का टेलीविज़न कार्यक्रम दिखाया जाता था। सन् 1975 तक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, श्रीनगर, चेन्नई, अमृतसर आदि अनेक स्थानों पर टेलीविज़न सेंटर खोल दिए गए थे। सन् 1976 तक टेलीविज़न आकाशवाणी का ही भाग था। किंतु सन् 1976 में ही इसे अलग कर दिया गया था। उसके पश्चात् तो टेलीविज़न की दिन दुगुनी और रात चौगुनी उन्नति हुई। आज के युग को टेलीविज़न का युग कहना अनुचित न होगा। गाँव-गाँव में टेलीविज़न कार्यक्रम देखे जाते हैं। आज पूरे भारत में 200 से भी अधिक टेलीविज़न चैनल काम कर रहे हैं।
प्रश्न 14. टेलीविज़न (दूरदर्शन) के प्रमुख उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए। अथवा दूरदर्शन (टेलीविज़न) के प्रमुख लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर - टेलीविज़न के विशेषज्ञों ने अग्रलिखित उद्देश्यों का उल्लेख किया है-
- सामाजिक परिवर्तन
- राष्ट्रीय एकता
- वैज्ञानिक चेतना का विकास
- परिवार कल्याण को प्रोत्साहन देना
- कृषि विकास में योगदान देना
- खेलों को प्रोत्साहन देना
- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का ज्ञान देना।
प्रश्न 15. जन-संचार के प्रमुख माध्यम सिनेमा पर लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - आज सिनेमा ने संचार के माध्यम के रूप में सबको प्रभावित किया है। यह जन-संचार का एक सशक्त माध्यम सिद्ध हुआ है। भले ही यह समाचार पत्र व रेडियो आदि की भाँति सीधी सूचना नहीं देता फिर भी इससे परोक्ष रूप में सूचना ज्ञान व संदेश अवश्य मिलते हैं। इसका प्रभाव मानव मन पर देर तक रहता है। मनोरंजन के क्षेत्र में सिनेमा सदा ही प्रथम स्थान पर रहा है। सिनेमा का आविष्कार थॉमस अल्वा एडिसन ने किया था । यह सन् 1883 में मिनेटिस्कोप की खोज से जुड़ी हुई है । विश्व में सबसे पहली फिल्म फ्रांस में बनी थी, इसका नाम था - 'द अराइवल ऑफ ट्रेन' भारत में सर्वप्रथम मूक फिल्म 1913 में 'राजा हरिशचंद्र' बनी थी । सन् 1931 में बोलने वाली प्रथम फिल्म बनी थी 'आलम आरा' । भारतीय फिल्मों को व्यावसायिक बनाने का कार्य पृथ्वीराज कपूर, महबूब खान, सोहराब मोदी, गुरुदत्त, सत्यजित राय आदि ने किया था। सत्तर के दशक में प्रेम भरी कहानियों पर आधारित फिल् में बनने में तेज़ी आ गई थी। इसी समय समानांतर फिल्में बननी आरंभ हुई थीं जिनमें 'अंकुर', 'निशांत', 'अर्ध सत्य' जैसी फिल्में प्रसिद्ध हुई थीं । बाज़ारवाद और व्यावसायिकता के सामने समानांतर या कला फिल्में अधिक पकड़ नहीं बना पाई थीं। भारतीय सिनेमा में पारिवारिक फिल्मों की भी धारा लगातार चलती रही है। आम आदमी हलके-फुलके हास्य और आम आदमी के परिवार से जुड़ी साफ-सुथरी फिल्मों को पसंद करता है। दर्शकों को बाँधने के लिए इनमें रोज़मर्रा की समस्याएँ, मधुर संगीत, पारंपरिक नृत्य और संस्कृति के अनेक पक्ष दिखाए जाते हैं। राजकपूर, गुरुदत्त, बिमल राय, ऋषिकेश मुखर्जी, बसु चटर्जी आदि ने इस क्षेत्र में ख्याति पाई है। अस्सी- नब्बे के दशक में फॉर्मूला फिल्में बनने लगीं। रोमांस, हिंसा, सैक्स और एक्शन की इनमें अधिकता रहती है। इन फिल्मों का युवा वर्ग पर बुरा प्रभाव पड़ा है। इस समय हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग 800 फिल्में बनती हैं। हमारा देश सबसे बड़ा फिल्म निर्माता देश है ।
प्रश्न 16. 'इंटरनेट' किसे कहते हैं? सार रूप में इसके विकास और उपयोग पर भी प्रकाश डालिए ।
उत्तर– इंटरनेट संचार का अति आधुनिक साधन है। इसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न पुस्तक यहाँ तक कि पुस्तकालय के गुण भी हैं। इसकी पहुँच विश्व के कोने-कोने में है। इसकी गति अति तीव्र है। इंटरनेट पर आप दुनिया के किसी भी कोने में छपने वाले समाचार-पत्र या पत्रिका की सामग्री घर बैठे-बैठे पढ़ सकते हैं । रेडियो सुन सकते हैं, सिनेमा देख सकते हैं। विश्वभर किसी भी कोने में स्थापित पुस्तकालय में रखी पुस्तक की सामग्री पढ़ सकते हैं। यह एक अंतर - क्रियात्मक माध्यम है। इसमें आप सवाल-जवाब कर सकते हैं। वाद-विवाद में भाग ले सकते हैं। नौकरी के लिए साक्षात्कार भी देख सकते हैं। इंटरनेट ने संचार की नई-नई संभावनाएँ भी जगा दी हैं। इसने शोधकर्त्ताओं के लिए भी नए कपाट खोल दिए हैं। किंतु जहाँ इसमें अनेक गुण हैं तो वहीं इसमें कुछ दोष भी हैं। इसमें लाखों अश्लीलपने भी भर दिए गए हैं जो कच्ची उम्र के किशोरों की मानसिकता को दूषित कर रहे हैं। इसका दुरुपयोग भी किया जा रहा है। लोग दूसरों की अतिगोपनीय सूचनाओं को भी पढ़ लेते हैं। हाल ही में इंटरनेट के दुरुपयोग की कई घटनाएँ सामने आई हैं।
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