अपू के साथ ढाई साल का सारांश: 'अपू के साथ ढाई साल' नामक संस्मरण सत्यजीत राय की 'पथेर पांचाली' फिल्म के अनुभवों से सम्बन्धित है। इस फिल्म का निर्माण भा
अपू के साथ ढाई साल का सारांश - Apu ke Sath Dhai Saal Summary in Hindi
अपू के साथ ढाई साल का सारांश: 'अपू के साथ ढाई साल' नामक संस्मरण सत्यजीत राय की 'पथेर पांचाली' फिल्म के अनुभवों से सम्बन्धित है। इस फिल्म का निर्माण भारतीय फिल्म जगत की एक महत्वपूर्ण घटना है। इससे फिल्म निर्माण एवं उसके व्याकरण से सम्बन्धित कई बारीकियों का पता चलता है। इस अपू के साथ ढाई साल का भाषान्तर बांग्ला मूल से हिंदी में 'विलास गिले' ने किया है।
पथेर पांचाली फिल्म की निर्माण शूटिंग ढाई साल चली थी। उस समय लेखक के पास इतने पैसे व समय नहीं था कि वह रोज इस फिल्म की शूटिंग कर पाते। वे एक विज्ञापन कंपनी में काम करते थे, नौकरी के काम से फुर्सत मिलती तथा जब पर्याप्त पैसे इकट्ठे हो जाते तब शूटिंग की जाती थी । शूटिंग आरम्भ करने से पहले कलाकारों का चयन करना एक मुश्किल कार्य था। विशेषकर अपू की भूमिका निभाने के लिए छः साल का लड़का नहीं मिल रहा था। इसके लिए अखबर में विज्ञापन दिये गए परन्तु जिस तरह का लड़का उस भूमिका के लिए चाहिए था वह नहीं मिला।
अंत में एक दिन लेखक की पत्नी को अपने पास वाले घर में रहने वाला लड़का 'सुबीर बनर्जी दिखा तथा उसका चयन अपू की भूमिका के लिए किया गया। फिल्म की शूटिंग ढाई साल चली। लेखक को इस बात का डर था कि कहीं दोनों बच्चे इस दौरान बड़े दिखाई नहीं देने लग जाए तथा फिल्म में इंदिरा ठाकरून की भूमिका निभाने वाली 80 वर्ष की उम्र की चुन्नीबाला देवी नहीं रहे। परन्तु सौभाग्य से दोनों ही बातें नहीं हुई। फिल्म की शूटिंग कोलकाता से सत्तर मील दूर पालसिट नाम के एक गाँव में रेल लाइन के पास शुरू हुई।
वहाँ काशफूलों से भरा एक मैदान था जहाँ अपू और दुर्गा पहली बार रेलगाड़ी देखते हैं। इस सीन की शूटिंग एक दिन में पूरी नहीं हो सकती थी । एक दिन में आधा सीन शूट करने के बाद, सात दिन बाद जब दुबारा शूटिंग के लिए वहाँ पहुँचे तो वहाँ फूल नहीं थे, इस कारण बाकी का आधा सीन एक साल बाद शूट हो पाया। इस सीन में तीन अलग-अलग रेलगाड़ियाँ इस्तेमाल की गई थी। परन्तु जब फिल्म आई तो यह बातें पता ही नहीं चल सकी। फिल्म की शूटिंग में एक कुत्ता जिसका नाम 'भूलो' था, वह भी आधी शूटिंग के दौरान मर जाता है, तब बड़ी कठिनाई से उसके जैसा दूसरा कुत्ता लाकर शूटिंग पूरी की जाती है। फिल्म देखने के दौरान दर्शक दोनों कुत्तों में भेद नहीं कर पाते हैं अर्थात् उन्हें वह एक ही दिखाई देता है।
फिल्म में मिठाई वाले की भूमिका निभाने वाले श्री निवास की भी मृत्यु हो जाती है। तब श्री निवास की भूमिका निभाने के लिए उसी के जैसे व्यक्ति की तलाश शुरू होती है परन्तु वह मिल नहीं पाता। अंत में उसके जैसे डीलडौल (शरीर) वाले व्यक्ति को चुनकर उसकी पीठ की तरफ से शूटिंग की जाती है। फिल्म देखने के दौरान इन दोनों अलग-अलग व्यक्तियों को भी दर्शक नहीं पहचान पाते हैं। फिल्म में बारिश का भी एक दृश्य फिल्माया जाना था, परन्तु अक्टूबर के महीने में बारिश होना संभव नहीं था। इस बात को लेकर सत्यजीत राय बहुत परेशान थे परन्तु सौभाग्य से एक दिन बारिश हो गई और अक्टूबर माह में फिल्म का वह दृश्य शूट हो गया।
फिल्म के निर्माण के दौरान सत्यजीत राय को अनेक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। गाँव के लोग जैसे 'सुबोध दा' तथा एक धोबी ने भी उन्हें बहुत परेशान किया पर अंत में सब कुछ ठीक हो गया। इस प्रकार इस संस्मरण में पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग के दौरान आने वाली कठिनाइयों एवं उनके निराकरण का वर्णन किया गया है। अनेक कठिनाइयों के बावजूद भी फिल्म की शूटिंग पूरी हुई तथा वह फिल्म दर्शकों द्वारा बहुत पसंद की गई।
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