चिड़िया और बढ़ई की कहानी - किसी पेड़ के निचे एक चिड़िया रहती थी। उसके चोंच से 'दाल का दाना' खूंटा के अंदर जा गिरा ! चिड़िया ने बढई से बोली - ' बढ़ई - बढ़
भूखी चिड़िया और बढ़ई की कहानी - Bhukhi Chidiya aur Badhai ki Kahani
भूखी चिड़िया और बढ़ई की कहानी - किसी पेड़ के निचे एक चिड़िया रहती थी। एक बार उसे वह दाल का एक दाना चुग कर ले जा रही थी। रास्ते में आराम करने के लिए वह एक खूंटे के ऊपर बैठ गयी कि तभी उसके चोंच से 'दाल का दाना' खूंटा के अंदर जा गिरा ! अब बेचारी भूख से चिड़िया' परेशान हो गयी ! सोचने लगी यदि दाल का दाना कैसे वापस मिले ? यदि दाल का दाना न मिला तो वह भूखी रह जाएगी ..इसी सोच में चिड़िया 'बढ़ई' के पास गयी !
चिड़िया ने बढई से बोली - ' बढ़ई - बढ़ई ..खूंटा चीर ..खूंटा में हमार दाल बा .का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं' ! बढ़ई कुछ देर सोचा फिर बोला - ए चिड़िया ..तुम्हारे एक दाना के लिये ..हम खूंटा नहीं चीरेंगे ..मुझे और भी जरुरी काम है ! चिड़िया और दुखी हो गयी और बढई के पास से उड़ चली।
चिड़िया रजा के पास पहुंची और बढई की शिकायत करते हुए बोली कि वो - राजा राजा ..बढई के डंडा मार् ..बढ़ई खूंटा ना चीरे ..खूंटा में हमार दाल बा ..क्या खाऊं क्या पीऊं क्या लेकर परदेस जाऊं! राजा हँसे लगा - बोला - ए चिड़िया ..तुम्हारे एक दाना के लिये हम बढ़ई को क्यों मारे ..जाओ भागो यहाँ से ..मुझे और भी जरूरी काम है !
राजा से ना सुन ..चिड़िया और भी दुखी हो गयी ! कुछ हिम्मत रख वो 'सांप' के पास गयी और सांप से बोली - सांप सांप ..राजा को डंस ले ..राजा बढ़ई को डंडा न मारे ..बढ़ई खूंटा ना चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा, क्या खाऊं क्या पीऊं क्या लेकर परदेस जाऊं ! सांप को भी अजीब लगा वो चिड़िया से बोला - तुम्हारे एक दाने के लिए मै राजा को डंसने नहीं वाला। .भागो यहाँ से .. मुझे अभी सोना है !
अब चिड़िया को गुस्सा आया और वो डंडे के पास गयी के पास गई ! लाठी से बोला - लाठी ..लाठी ..सांप मार ..सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..क्या खाऊं क्या पीऊं क्या लेकर परदेस जाऊं ! लाठी को भी अजीब लगा और उसने चिड़िया को भगा दिया !
लाठी से ना सुन ...अब चिड़िया 'आग' के पास गयी ! आग से विनती किया - आग आग ...लाठी जलाव ..लाठी ना सांप मारे ....सांप ना राजा डंस ...राजा ना बढ़ई डंडा मारे ..बढ़ई ना खूंटा चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा ..का खाई ..का पी ..का ले के परदेस जाईं ! आग को बहुत गुस्सा आया ....और वो चिड़िया को भगा दिया और बोला ..मुर्ख चिड़िया ..मै तुम्हारे एक दाना के लिए ...लाठी को जला दूँ ...ऐसा कभी नहीं हो सकता ..भागो यहाँ से ...!
अब चिड़िया सोचने लगी कि शायद बढ़ई खूंटा कभी नहीं चीरेगा और वह भूखी रह जाएगी। यही सोचते-सोचते वह अपनी सहेली 'नदी' के पास गयी ! नदी से चिड़िया का बड़ा लगाव था। रोज नदी में डूबकी लगा नहाती थी ...नदी को बोली - ' नदी ..नदी ..आग बुझाओ ..आग डंडा ना जलावे ...डंडा सांप ना मारे ....सांप राजा को ना डँसे ...राजा बढ़ई को डंडा न मारे ..बढ़ई खूंटा ना चीरे ...खूंटा में हमार दाल बा, का खाई ..का पी, का ले के परदेस जाईं !
चिड़िया की समस्या सुन नदी को दया आ गयी। अतः नदी ने सोचा कि बेचारी चिड़िया की मदद की जाए। इस प्रकार नदी चिड़िया के साथ आग बुझाने निकल पड़ी। नदी को अपनी तरफ आता देख ..आग डर गयी और बोली, "अरे नदी ..मै अभी लाठी को जला कर आता हूँ।" आग को आता देख डंडा भी डर गया और वो बोला, "रुको ..मै अभी सांप को मारता हूँ" डंडे को अपनी तरफ आता देख सांप भी डर गया। सांप राजा को डंसने के लिए तेज़ी से राजमहल की तरफ भागा। सांप को देख राजा ने बढ़ई को बुलवाया और उसे खूंटा चीरकर चिड़िया का दाना निकालने के आदेश दिया।
बढ़ई तुरंत खूंटा को चीरने को तैयार हो गया ...बढ़ई को आता देख ...खूंटा बोला ..ए भाई ..हमको क्यों चिरोगे ...बस हमको उल्टा कर दो ...दाल का दाना खुद निकल जाएगा ...बढ़ई ने खूंटा को उल्टा किया और ..दाल का दाना बाहर निकल आया ..चिड़िया ..उसको अपने चोंच से पकड़ कर ...सबको धन्यवाद करके ...फुर्र्र से उड गयी।
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