स्वर्ग और पृथ्वी कहानी की मूल संवेदना: 'स्वर्ग और पृथ्वी' कहानी में भारती जी ने कल्पना का विषय प्रस्तुत किया है कि 'कल्पना विस्मय से स्तब्ध थी।" कल्पन
स्वर्ग और पृथ्वी कहानी की मूल संवेदना - Swarg aur Prithvi Kahani ki Mool Samvedna
स्वर्ग और पृथ्वी कहानी की मूल संवेदना: 'स्वर्ग और पृथ्वी' कहानी में भारती जी ने कल्पना का विषय प्रस्तुत किया है कि 'कल्पना विस्मय से स्तब्ध थी।" कल्पना को चारों और से सजाने वाले भारती जी आकाश - पृथ्वी वर्ग का निष्पाप वातावरण आकाश का निरभ्र सौंदर्य, पृथ्वी को बाधा पहुँचाने वाली कल्पना उसमें निवास करती है । साज-श्रृंगार से सजी पृथ्वी पर अनेक प्राणियों का निवास है। भारती जी ने स्वर्ग और पृथ्वी का विषय प्रस्तुत करते समय कहा है कि स्वर्ग का वातावरण बहुत सुखमय जीवन का वातावरण है। स्वर्ग के लोग पृथ्वी पर कभी निवास नहीं करते। परंतु पृथ्वी के लोग स्वर्ग में रहने के सपने देखते हैं।
'स्वर्ग और पृथ्वी' कहानी में एक मूल भावना जो निहित है, वह है 'मानव की महानता' जीवन की सभी अच्छाइयों और बुराईयों के साथ भी मानव इतना महान् है, इतना ऊँचा है कि देवताओं तक को उसके भाग्य से ईर्ष्या होती है, यही है वह जिसे कि भारती का जागरूक कलाकार इस कहानी के माध्यम से पाठक तक पहुँचाना चाहता है। आज के विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक वादों ने मनुष्य की स्वाभाविक उच्चता को दबा - सा रखा है।
जिस प्रकार के जीवन को लेखक दुनिया में देखना चाहता है, उसका आधार है प्रेम | प्रेम अथवा रागात्मिक वृत्ति के सहारे ही जीवन अपनी सारी कठिनाइयों में भी मनोरम लगता है। मनुष्यत्व दुनिया की सबसे ऊँची सत्ता है। प्रेम ऐसी प्रबल शक्ति का आधार बनने के ही कारण लेखक मनुष्य को इतना ऊँचा स्थान देता है । देवदूत के शब्दों में- "प्रेम की इतनी भीषण प्रेरणा और जीवन की इस आधार शून्य यात्रा का भार मनुष्य ही वहन कर सकता है।” रेशम-सी सुकुमार यह कहानी हृदय को स्पर्श करती है और मस्तिष्क को कुछ सोचने के लिए भी देती है। यही इनकी सबसे बड़ी विशेषता है। कहानी के अन्त में 'कल्पना' और 'प्रेम' नर-नारी में समा जाते है। वेदना भी मनुष्य हृदय में समा जाती है। स्वर्ग तथा स्वर्ग के लोग इस वेदना को सहन करने में असमर्थ बताये गये हैं। पृथ्वी पर मनुष्य के पास कल्पना, प्रेम और वेदना होने के कारण ही स्वर्ग के देवता लालायित होते हैं पृथ्वी पर आने के लिए ।
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