स्वर्ग और पृथ्वी कहानी का चरित्र चित्रण - स्वर्ग और पृथ्वी कहानी में लेखक ने भावों को पात्र रूप में चित्रित किया है। इन पात्रों के माध्यम से मानव की म
स्वर्ग और पृथ्वी कहानी का चरित्र चित्रण - Swarg aur Prithvi Kahani ka Charitra Chitran
स्वर्ग और पृथ्वी कहानी में लेखक ने भावों को पात्र रूप में चित्रित किया है। इन पात्रों के माध्यम से मानव की महानता को कहानी में दिखाया है। कल्पना, प्रेम, वेदना और देवराज स्वर्ग में रहने वाले पात्र है और नर-नारी पृथ्वी पर रहते हैं। इन पात्रों के माध्यम से लेखक ने पृथ्वी को सर्वश्रेष्ठ बताया है।
कल्पना का चरित्र चित्रण:- कल्पना कहानी का आरम्भ 'कल्पना' नामक पात्र से होता है। "कल्पना ने आश्चर्य में भर कर वातायन के दोनों पट खोल दिये।” कल्पना अपने सूनेपन की रानी थी। चाँदनी के सागर के तट पर, स्वर्ग के एक उजाड़ कोने में हलके सुनहरे बादलों का एक प्रासाद था। शैशव से ही कल्पना उसमें निवास करती थी। वह स्वर्ग में रहते हुए भी स्वर्ग से अलग रहती। वह एकान्त पर विश्वास करती थी । उसके प्रासाद ( राजभवन) के चारों ओर का वातावरण इतना रहस्यमय और दुर्भेद्य था कि क्रीड़ारत चंचल देवकुमार भी उधर जाने का साहस न करते, वह अपने महल की खिड़की को खोलकर चाँदनी, सागर को निहारती और किसी के आने पर बंद कर देती ।
कल्पना में उत्सुकता थी। जब उसे महल में बैठे-बैठे स्वर सुनाई दिया तब वह जिज्ञासा वश वेदना से कहती है कि “यह स्वर कैसा है ?” वेदना के उत्तर न देने पर वह उत्सुकता से विकल हो जाती है ।
क्रोध और प्रेम का पुट भी कल्पना में देखने को मिलता है। स्वर्ग से निर्वासित देवकुमार जब कल्पना के महल में बिना पूछे चला आता है, तो वह क्रोधित हो उठती है। परन्तु बाद में कल्पना प्रेम वश शान्त हो, उस पर मोहित होती है। उसकी सहेली वेदना के समझाने पर कि "प्रेम का आगमन अंमंगल से पूर्ण है।" तब भी वह प्रेम को शरण देती है।
वह धैर्य और निड़रता से भरी स्त्री है। वह निर्वासित देवकुमार प्रेम को अपने महल में शरण देती है। देवराज के क्रोध का उसे भय नहीं है। देवराज कल्पना को रोष में आकर कहते है कि तुमने एक विद्रोही को आश्रय दिया है। तब वह निर्वासित राजकुमार से सहानुभूति रखते हुए देवराज और उसके शासन को अन्यायी कहती है। कल्पना प्रेम को अपनाती है और कहानी के अन्त में स्वर्ग का त्याग कर पृथ्वी पर चली आती है। "पुरुष के हृदय में समा गई कल्पना ।"
प्रेम का चरित्र चित्रण:-'स्वर्ग और पृथ्वी' कहानी में भाव के माध्यम से पृथ्वी की महत्ता को स्पष्ट किया है। देवकुमार 'प्रेम' स्वर्ग में रहने वाला एक ऐसा पात्र है, जो किसी भी बंधन को स्वीकार नहीं करता है। देवकुमार को देवराज स्वर्ग से निर्वासित कर देता है। वे देव बालाओं के अज्ञान हृदय, मृगशावकों के भोले नयन में प्रेम प्रवाह करता है। देवकुमार किसी भी झूठे बंधन को नहीं मानता, वह निडर हो अबाध गति से बहता है। यहां तक कि वह कल्पना के महल में बिना पूछे चला जाता है, यहां कोई नहीं जाता । प्रेम एक ऐसा भाव है जो शासन में रहना नहीं जानता और न ही किसी झूठे दिखावे में जीता है।" प्रेम ने न शासन में जीवित रहना सीखा है और न प्राण देना । कल्पना की शाखाओं पर किरणों की रोशनी डोर में झूलने की अपेक्षा मैं उन्मुक्त आकाश की स्वतंत्र छाया में चाँदनी की लहरों के साथ मृत्यु-क्रीड़ा करना अधिक उचित समझता हूँ।"
इसी बंधन को अस्वीकार करते हुए प्रेम स्वर्ग को त्याग कर मानव हृदय अर्थात् स्त्री के हृदय में समा गया।
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