समर की भाभी का चरित्र चित्रण - भाभी उर्फ समर के बड़े भाई धीरज की पत्नी का चरित्र एक खलनायिका का चरित्र हैं। समर का चरित्र मूल रूप में स्थिर चरित्र हैं
समर की भाभी का चरित्र चित्रण - Samar ki Bhabhi Ka Charitra Chitran
समर की भाभी का चरित्र चित्रण - भाभी उर्फ समर के बड़े भाई धीरज की पत्नी का चरित्र एक खलनायिका का चरित्र हैं। समर का चरित्र मूल रूप में स्थिर चरित्र हैं, यद्यपि उसके चरित्र में परिवर्तन होता अवश्य दिखाई देता है, किन्तु उसके चरित्र की मूल वृतियाँ ज्यों की त्यों रहती है। दूसरी तरफ प्रभा पूर्ण रूप से स्थिर पात्र हैं। परन्तु भाभी विकासशील पात्र है जो एक सह-यात्री के रूप में आदि से अन्तत क एक खलनायिका की भूमिका अदा करती दिखाई देती है। उपन्यास में भाभी की कथा पताका कोटि की प्रासंगिक कथा है जो अन्त तक चलती रहती है।
षड़यंत्र और चुगलखोर जुबान का बड़ा मीठा और बतुर होता है । समर की भाभी हमे ऐसी प्रतीत हुईं हैं। उनके विवाह को आठ वर्ष हो चुके है। घर का लगभग सारा ही खर्च उनके पति की तनखाह से ही चलता है। देखने में भाभी सामान्य हैं, पढी-लिखी भी नहीं है। परन्तु ऐसा लगता है कि उनकी शादी में समर के बाबूजी को अच्छा दहेज मिल गया था। इस बातका उन्हें हल्का सा गर्व प्रतीत होता है। परन्तु उनके मन में कहीं यह बात कचोटती रहती हैं कि उनके पति की सारी कमाई इसी घर में खर्च हो जाती है और उनके पति को अपने तथा अपने होने वाले बाल-बच्चों के भविष्य का कोई भी ख्याल नहीं है।
समर की भाभी के चरित्र की विशेषताएं
- हीनभावना और द्वेष की शिकार
- खलनायिका की भूमिका
- निरन्तर षड्यन्त्र में लगी रहने वाली
१) हीनभावना और द्वेष की शिकार - भाभी के रूपमें कोई विशेषता नहीं दिखाई पडती। उनका यह रूप एक सामान्य नारी का रूप है। परन्तु प्रमा के घर में कदम रखते ही भाभी में एक नया परिवर्तन होता दिखाई देने लगता है। प्रभा उनसे अधिक सुन्दर और पढी-लिखी है। मनचाहा दहेज न मिलने पर मी अम्मा प्रभा के इन गुणों के प्रति सन्तोष प्रकट करती हैं। लगता हैं यही बात भाभी के हृदय में कहीं गहरी चुभ जाती हैं। वे अपनी इस चुभन को को स्पष्ट रूपसे प्रकट नहीं करती। जब उन्हें पता चलता है कि सुहागरात को समर प्रभा से नहीं बोला तो जैसे उन्हें मनचाही मुराद मिल जाती हैं। इसके बाद मामी जिस कुचक्र का श्रीगणेश करती है, वह समर और प्रभा के बीच पड़ी गई खाई को निरन्तर और गहरी तथा चौड़ी बनाता चला जाता है। समर को प्रभा से विमुख कर वे अपनी इस हीन भावना को सन्तुष्ट करती प्रतीत होती हैं कि प्रभा उनसे अधिक सुन्दर और पढ़ी-लिखी है। उन्हीं के माध्यम से यह खबर घर में तथा पास-पडोस में चारों ओर फैल जाती है।
२) खलनायिका की भूमिका - भाभी का खलनायिका रूप ऊपर से कोमल, मधुर और शुभचिन्तक का-सा परन्तु भीतर से जहरीली नागिन के समान घातक और विषैला रहता है। और एक और तो समर के प्रति गहरी हमदर्दी दिखाती हैं, साथ ही प्रभां को घमण्डिन सिद्ध करती रहती हैं। उनके इस दुहरे अभिनय की एक बानगी(नमुना) प्रस्तुत है:- समर खाना खाने बैठा हैं, मुन्नी परोस कर खिला रही है। उसी समय भाभी भागी-भागी आती है और समर के प्रति अपनी सम्पूर्ण सहानुभूति का प्रदर्शन करती हुई कहती है-- ओह, आज तो मुन्नी बीबी खाना दे रही हैं। मैं तो इसलिए भागी आयी कि लाला जी तो चुपचाप बैठे होंगे कि कोई खाना दे दे तो खालें। फिर उठकर चले जायेंगे बिना खाए-पिए। हमारे लालाजी को तो जाने क्या हो गया है। फिर मुन्नी को वहां से टाल अपनी असली बात पर आती - तुम्हारा ब्याह भी क्या हुआ लालाजी। क्या क्या अरमान थे, सब पर पानी फिर गया। लेन-देन की तो खर कोई बात नहीं... लेकिन वह महारानीजी तो जिन्दगी भरके लिए बंध गई।
प्रभा पहली बार खाना बनाती है, और रूढी के अनुसार समर को पहला भोजन करना है, लेकिन दाल में ज्यादा नमक होनेसे वह उठकर चला जाता है। भाभी इसी बातका फायदा उठाती है। इस बात पर जब समर उन्हें उल्हाना देता है कि तुम्ही तो पहले उसकी तारीफ करती, तो भाभी कहती हैं - लो सुनो लालाजी की बातें। मैं क्या उसके पेट में घुसके देख आई, सुनी सुनायी बात मैने कह दी। और तो और, हद हैं घमण्ड की भी। आने-जाने के नाम खाक धूल नहीं, और घमण्ड ऐसा। ..
मैंने ऐसी मण्डिन औरत अपनी जिन्दगी में नहीं देखी।... जिस आदमी को सबसे पहले खाना हैं, पहले वह खाएगा। तुम बखने वाली होती हो कौन। भाभी के इस कथन में प्रभा के प्रति उनकी भयंकर द्वेष भावना पूर्ण रूपेण स्पष्ट हो रही हैं कि वे इससे पूर्व ही पहले दिन प्रभा द्वारा पकाई गई दालमें चुपचाप मुट्ठीभर नमक डालकर उसे बुरी तरह से जलील करती है।
प्रभा और समर में मेल हो जाना यह भाभी से देखा नहीं जाता। अब समर से तो कुछ कहने की उनकी हिम्मत नहीं होती, मगर प्रभा के लिए समर एक धोती मांगता है तो स्वयं धोती न होने का बहाना बना उसे अम्मा के पास भेज देती है और अम्मा इस बात को लेकर चीखने-चिल्लाने लगती है। जब समर फेल हो जाता हैं, तो भाभी ऊपर से तो सहानुभूति दिखाती है, परन्तु अकेले में पति से कहती हैं अच्छा अन्धेर है इस घर में। एक तो हड्डे पेल पेलकर इन मुस्टण्डों को पालो-पढाओ और इनको इतना तक ख्याल नहीं है कि अगले के भी तो बाल-बच्चे है। उसके आगे भी तो जिन्दगी पड़ी है।
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