महानगर की मैथिली कहानी का सारांश: 'महानगर की मैथिली' कहानी में लेखिका ने वर्तमान महानगरीय जीवन की त्रासदी को दर्शाया है। कहानी के प्रमुख पात्र दिवाकर
महानगर की मैथिली कहानी का सारांश
महानगर की मैथिली कहानी का सारांश: 'महानगर की मैथिली' कहानी में लेखिका ने वर्तमान महानगरीय जीवन की त्रासदी को दर्शाया है। कहानी के प्रमुख पात्र दिवाकर और चित्रा हैं। उनकी चार साल की बेटी है मैथिली। रोजमर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए दोनों को नौकरी करनी पड़ती है। चित्रा शिक्षिका है तो दिवाकर एक दफ्तर में काम करता है। काम की वजह से मैथिली की और ठीक तरह से ध्यान नहीं दे पाते। मैथिली को ताराबाई के यहाँ रोज छोड़ते हैं। दोनों को अलग-अलग दिन छुट्टी रहती है। आज रविवार छुट्टी का दिन था। दोनों ने अंग्रेजी फिल्म देखने का प्रोग्राम बनाया था। इसलिए मैथू को वह ताराबाई के यहाँ छोड़ना चाहते थे । ताराबाई झोपडपट्टी में रहती थी। जहाँ पर मैथू को अच्छा नहीं लगता था। छुट्टी का दिन वह अपने माता—पिता के साथ गुजारना चाहती थी। इसलिए आज मैथू नाराज होती है तो वे उसे कहते हैं, हमें चर्चगेट के एक अस्पताल में बीमार आंटी को देखने जाना है। ताराबाई को मैथू को सौंपकर वे फिल्म देखने चले जाते हैं। परंतु शाम को आते वक्त उन्हें देर हो जाती है। जब वे लौटते हैं, तब मैथू बुखार में तप रही थी। रातभर उसका बुखार नहीं उतरा। दूसरे दिन दोनों को भी काम पर जाना था। राम में दोनों भी तय नहीं कर पाए कि मैथू के पास कल कौन रूकेगा। चित्रा के स्कूल में परीक्षा है तो दिवाकर के दफ्तर में इंस्पेक्शन है। आखिर तय हुआ कि चित्रा स्कूल जाएगी और कोई बंदोबस्त कर जल्दी वापस आ जाएगी। तब दिवाकर ऑफीस जाएंगे। सुबह मैथू कहती है आप दोनों को रूकने की जरूरत नहीं है। हम ताराबाई के घर जाएँगे और पलंग से उतरती है और मैथू फिर से बेहोश हो जाती है।
महानगर की मैथिली कहानी का उद्देश्य
महानगर की मैथिली कहानी का उद्देश्य : महानगर की मैथिली कहानी के माध्यम से लेखिकाने महानगरिय जीवन की त्रासदी को दिखाया है। माता और पिता दोनों ही नौकरी करते हैं तो उसका असर बच्चों पर किस प्रकार पड़ता है यह लेखिकाने बताया है। कहानी में स्त्री का संघर्ष एवं मातृत्व का बहुत ही हृदयस्पर्शी चित्र अंकित किया है।
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