लोक साहित्य की उपयोगिता पर निबंध: लोक साहित्य विभिन्न विषयों के अध्ययन एवं समाज के स्वरूप को जानने-समझने में भी उपयोगी सिद्ध होता है। धर्मशास्त्र धार्
लोक साहित्य की उपयोगिता पर निबंध
लोक साहित्य की उपयोगिता पर निबंध: लोक साहित्य विभिन्न विषयों के अध्ययन एवं समाज के स्वरूप को जानने-समझने में भी उपयोगी सिद्ध होता है। धर्मशास्त्र धार्मिक गाथाओं का शास्त्र है। हमारे महान संतों ने धर्म के विषय में जो भी ज्ञान उपलब्ध कराया है- धर्मशास्त्र उसका भंडार है। हमारे ऋषियों की अमृतवाणी इसमें समाहित है। धर्मशास्त्रों ने हमें और हमारे समाज का सदैव दिशा - दर्शन किया है, किंतु यह विस्मृत नहीं किया जाना चाहिए कि प्रत्येक धर्म के मूल में लोक- विश्वास निहित रहते हैं और लोक विश्वास ही लोक साहित्य के भी मूलाधार हैं।
पुराण कथाएं जो धार्मिक संस्कार प्रदान करती हैं उसका मूल लोक परंपरा एवं लोक विश्वास, लोक मान्यताओं, व्रतों त्योहारों, उत्सवों, मेलों पर आधारित होता है। विभिन्न देवी-देवताओं, पितरों की पूजा-उपासना का धर्म के साथ सीधा संबंध होता है और चूंकि लोक साहित्य में भी लोक संस्कृति का चित्रण रहता है, इसलिए धार्मिक विश्वासों, पूजा-उपासना पद्धतियों के उल्लेख लोक साहित्य के अभिन्न अंग हैं। इसी कारण लोक साहित्य में धर्मशास्त्र के अध्येता को अनेक दुर्लभ तथ्य मिल जाते हैं। इसी प्रकार लोक साहित्य के विद्यार्थी या शोधकर्ता को भी धर्मशास्त्रों की सहायता से अनेक समस्याओं के निराकरण का अवसर मिल जाता है। लोक साहित्य और धर्मशास्त्र का घनिष्ठ संबंध है। लोक साहित्य का संग्रह कर धर्मशास्त्र के स्वरूप को समझने में आसानी होती है। डॉ. उप्रैती ने कहा है कि – “लोक संस्कृति का धर्मतत्व से घनिष्ठ संबंध है। लोक संस्कृति के प्रमुख लोक तत्व-एनीमिज्म, एन्सेस्टर वरशिप तथा मैजिक आदि आदिम मूल विश्वास धर्म की भी मूल प्रवृत्तियां हैं। लोक संस्कृति द्वारा ही धर्म को सरलता से समझा जा सकता है।"
प्रागैतिहासिक काल और उससे भी पुराने आदिम युगीन जीवन और संस्कृति के संकेत लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति में भी निहित रहते हैं। इसलिए पुरातत्वविद् जो कार्य उत्खनन द्वारा करते हैं, वहीं कार्य लोक संस्कृति एवं लोक साहित्य का गहन अध्ययन करके भी किया जा सकता है। लोक साहित्य की कथाएं, गाथाएं जिन तथ्यों को अपने में समाहित किए हुए हैं, उनको आधार मानकर पुरातत्ववेता अनुसंधान कार्य करते हैं और अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक निष्कर्षो तक पहुंचते हैं। अतः लोक साहित्य पर पुरातत्ववेत्ता को भी निर्भर रहना पड़ता है। लोक साहित्य में अनेक तथ्यों, घटनाओं एवं मानव-संस्कृति-विषयक तथ्यों की पुष्टि करने हेतु पुरातात्विक विज्ञान अनेक रहस्यों का उद्घाटन करता है। इस प्रकार के माध्यम में लोक साहित्य संग्रहण महती भूमिका निभाता है।
लोक साहित्य के अध्ययन से भाषा वैज्ञानिकों को भी मदद मिलती है। लोक साहित्य का अध्ययन करके भाषा-वैज्ञानिक को किसी जनपद की भाषा या बोली का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए सबसे प्रामाणिक आधार प्राप्त हो जाता है। भाषा विज्ञान की एक शाखा है - बोली विज्ञान इस बोली विज्ञान के अध्ययन के लिए तो लोक साहित्य सामग्री का भंडार ही जुटा देती है। बोली का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले शोधार्थी को यत्र-तत्र भटकना नहीं पड़ता और न अधिक क्षेत्रीय कार्य की ही आवश्यकता शेष रहती है। लोक बोली में प्रयुक्त अनेक शब्दों की नियुक्ति का पता लगाने पर भाषा - विज्ञान विषयक अनेक समस्याओं का हल खोजा जा सकता है। लोक बोली में प्रयुक्त हजारों अर्थवान अभिव्यक्तियों, क्रियाओं, पारिभाषिक शब्दों, कहावतों, मुहावरों आदि से भाषा का भंडार समृद्ध किया जा सकता है। भाषा के अतीतकाल तक जाने के लिए लोक बोलियों में प्रचुर सामग्री मिल जाती है। अतः भाषा विज्ञान के लिए लोक साहित्य की उपादेयता स्वतः सिद्ध है।
लोक साहित्य समाजशास्त्रियों के लिए भी उपयोगी है, इसमें ऐसी प्रचुर सामग्री प्राप्त हो जाती है, जिसे समाजशास्त्री अपने अध्ययन के लिए उपयोगी पाते हैं। अनेक जंगली, असभ्य, पर्वतीय एवं आदिम जातियों के जीवन के विविध पक्षों के परिचय के आधार प्रायः लोक साहित्य ही रहा है।
प्राचीन प्रथाओं, परंपराओं, सामाजिक संगठन आदि से संबंधित अपेक्षित विवरण वस्तुतः लोक साहित्य से ही प्राप्त होता है। किस समय, किस जाति या देश के निवासियों का सामाजिक आचरण कैसा रहा होगा, इसका ज्ञान प्रदान करने का कार्य लोक साहित्य ही करता है। व्रत, त्योहार, अनुष्ठान, संस्कार, रीति रिवाज आदि की जानकारी हमें लोक साहित्य ही से प्राप्त होती है। यह कथन सर्वथा सत्य है कि "वेद मंत्रों के अभाव में भांवरें पड़ सकती हैं, परंतु लोकगीतों के बिना नहीं ।"
लोकगीतों, गाथाओं और कथाओं में समाज के रहन-सहन, आचार-विचार, खान-पान और रीति-रिवाजों का सच्चा चित्र देखने को मिलता है और समाज शास्त्र में इन सभी का अध्ययन किया जाता है।
इसके अलावा शिष्ट साहित्य के निर्माण में भी लोक साहित्य उपयोगी सिद्ध होता है। लोक कथाएं, लोकगीत, लोकगाथा आदि क्रमशः शिष्ट साहित्य में कला साहित्य, काव्य एवं महाकाव्य की सर्जना के प्रेरक एवं कारणभूत बन जाते हैं। रामायण एवं महाभारत जैसे ग्रंथों के बीज हमको लोकवार्ता में ही उपलब्ध होते हैं। अतः शिष्ट साहित्य की अनेक प्रवृत्तियों का परिचय हमको लोक साहित्य की प्रवृत्तियों के संदर्भ में प्राप्त हो सकता है। इतना ही नहीं, लोक साहित्य की अनेक सहज, मार्मिक प्रभावी उक्तियों एवं अभिव्यंजना पद्धतियों द्वारा शिष्ट साहित्य की यही उपयोगिता कही जा सकती है। इस प्रकार शिष्ट साहित्य के संबंध में इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता ।
इस प्रकार हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि लोक साहित्य का संग्रह कई विषयों अध्ययन और समाज के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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