लोककथाओं का भारतीय वर्गीकरण - यहाँ हम प्राचीन विद्वानों द्वारा लोककथाओं के किये गए वर्गीकरण पर विचार करेंगे। प्राचीन विद्वानों ने कहानी के अग्रलिखित द
लोककथाओं का भारतीय वर्गीकरण - Lok Kathaon Ka Bhartiya Vargikaran
लोककथाओं का भारतीय वर्गीकरण - यहाँ हम प्राचीन विद्वानों द्वारा लोककथाओं के किये गए वर्गीकरण पर विचार करेंगे। प्राचीन विद्वानों ने कहानी के अग्रलिखित दो भेद माने हैं (1) कथा तथा (2) आख्यायिका।
उनके अनुसार कथा वह रूप है जो कवि की कल्पना पर आधारित है और आख्यायिका का आधार ऐतिहासिक तथ्य होते हैं। यह वर्गीकरण प्राचीनतम वर्गीकरण जा सकता है और संभवतः संस्कृत साहित्य में प्राप्त कथा-साहित्य के दृष्टिपथ में रखकर ही यह वर्गीकरण किया गया है और ऐसा लगता है कि कादंबरी तथा दशकुमारचरित ही कथा रूप निर्धारित करते समय दृष्टिपथ में रहे हों या आख्यायिका का रूप निर्धारित करते समय बाण भट्ट का हर्ष चरित उनकी दृष्टि में रहा होगा। इस प्राचीन वर्गीकरण को प्रस्तुत करने वाले विद्वानों का नामोल्लेख नहीं मिलता है।
इस प्राचीन वर्गीकरण के बाद हमारा ध्यान आनंदवर्धनाचार्य के उस वर्गीकरण की ओर जाता है, जिसमें निम्नलिखित तीन कोटियां निर्धारित की गई हैं - (1) परि- कथा ( 2 ) सकल - कथा तथा (3) खंड - कथा
आनंदवर्धन के अनुसार परिकथा वह श्रेणी है, जिसमें वर्णन का वैचित्र्य ही प्रधान रूप से देखा जाता है और रस परिपाक जैसी वस्तु के लिए उसमें कोई स्थान शेष नहीं रहता। इसी प्रकार सकल - कथा वह रूप है, जिसमें कथा का आद्योपांत वर्णन रहता है। तीसरी कोटि में गिनाई गई खंड- कथा का लक्षण यह होता है कि वह किसी प्रदेश विशेष की विशिष्टताओं को प्रदर्शित करती है। आधुनिक युग के कथा साहित्य में जिसे हम आंचलिक तत्व कहते हैं, वह किसी खंड-कथा का प्रतिनिधित्व करता है। इस वर्गीकरण के संबंध में डॉ. सत्येंद्र का निम्न उद्धरण प्रस्तुत किया जाता है -
आनंदवर्धनाचार्य ने कथा के 3 भेद और माने हैं - 1. परि - कथा, जिसमें इतिवृत मात्र हो, रस- परिपाक के लिए जिसमें विशेष स्थान न हो 2. सकल- कथा, 3. खंड- कथा | अभिनवगुप्त ने परि-कथा में वर्णन वंचित्रययुक्त अनेक वृत्तांतों का समावेश आवश्यक है। सकल - कथा में बीज में फलपर्यंत तक की पूरी कथा रहती है, खंड-कथा एक देश - प्रधान होती है। हेमचंद्र ने सकल - कथा को चरित का नाम दिया है। उदाहरण में समरादित्य कथा का उल्लेख किया है, उपकथा में चरित के अंतर्गत किसी प्रसिद्ध कथान्तर का वर्णन रहता है, चित्रलेखा को हेमचंद्र ने उपकथा माना है।
आनंदवर्धनाचार्य के वर्गीकरण के उपरांत एक अन्य वर्गीकरण हरिभद्राचार्य के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इस वर्गीकरण में एक नवीन दृष्टि से कार्य किया गया है। इसलिए यह वर्गीकरण अपने से पूर्व वर्गीकरणों की प्रतिच्छाया न होकर मौलिक वर्गीकरण हो सकता है। हरिभद्राचार्य के अनुसार कथाओं की निम्न कोटियां निर्धारित की गई हैं-
अर्थ कथा - जिसमें अर्थ (धन) की प्राप्ति पर विशेष दृष्टि रहती है।
काम कथा - जिसका मूल विषय काम विषयक अनुभूतियां होती है।
धर्म कथा - जिसमें धार्मिक आख्यानों का बाहुल्य होता है। धर्मप्रिय व्यक्तियों के द्वारा ये कथाएं कही सुनी जाती हैं।
संकीर्ण कथा - ये कथाएं उन लोगों से संबंधित होती हैं, जो पारलौकिक उद्देश्य के स्थान पर लौकिक उपलब्धियों पर बल देते रहते हैं।
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