लोककथा की परिभाषा: लोककथा शब्द मुख्यतः लोक - प्रचलित उन कथानकों के लिए व्यवहृत होता रहा है, जो मौखिक या लिखित परंपरा से क्रमशः एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
लोककथा की परिभाषा बताइये।
मानव के जन्म के साथ ही लोककथा का जन्म हुआ है। लोक में कहानी कहने की कला सर्वाधिक प्राचीन है। आदिम युग से ही मानव ने अपनी अनुभूतियों को कथा के रूप में कहा। उसने अपने अस्पष्ट जीवन-दर्शन को भी लोककथाओं के माध्यम से कहा। यह अभिव्यक्ति दो रूपों में हुई -
- पौराणिक कथाओं के रूप में,
- लोककथाओं के रूप में।
जिस कथा में कथावस्तु और उसकी कथन - प्रणाली साहित्यिक सौंदर्य प्राप्त कर लेती है, वह लोककथा कहलाती है। लोककथा में लोकजीवन के सुख-दुख, रीति-रिवाज, आस्थाएं, विश्वास, परंपराएं अभिव्यक्त होती हैं। विद्वानों ने अपने मतानुसार लोककथा की परिभाषाएं दी हैं।
लोककथा की परिभाषा
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, "लोककथा शब्द मुख्यतः लोक - प्रचलित उन कथानकों के लिए व्यवहृत होता रहा है, जो मौखिक या लिखित परंपरा से क्रमशः एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को प्राप्त होता है।"
लोककथाओं के संबंध में एक मत यह है कि ये मूलतः धर्मगाथाएं ही हैं। समय के प्रभाव और मूल स्रोत से दूर होकर इन्होंने धर्मगाथाओं के नाम, स्थान त्याग दिए हैं। लेकिन यह मत आज मान्य नहीं है। 'लोककथा' शब्द अंग्रेजी के 'फोक टेल' के पर्यायवाची शब्द के रूप में प्रयोग होता है। अंग्रेजी में इस शब्द के बहुत व्यापक अर्थ हैं। इसमें अवदान, लोककथा, धर्मगाथा, पशु-पक्षियों की कहानियां, नीतिकथाएं आदि लोक प्रचलित वार्ताएं सम्मिलित की जा सकती हैं।
स्टैंडर्ड डिक्शनरी ऑफ फोक लोर में लोककथा के संबंध में इस प्रकार लिखा है- "लोककथा की सुनिश्चित परिभाषा देने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। सामान्यतः इस शब्द के अंतर्गत समस्त परंपरागत आख्यानों और उनके विभेदों को स्वीकार किया गया है।"
वास्तव में, 'लोककथा शब्द की परिभाषा देना अत्यंत कठिन है। अतः लोककथा संज्ञा को एक साधारण अर्थवाचक संज्ञा के रूप ही प्रयोग किया गया है। जिसका प्रयोग परंपरागत, वृत्तात्मक, विविध व्यंजना- रूपों के लिए किया जाता है। इसमें मौलिकता का अभाव होता है। यह सुनी जाती हैं और बार-बार कही जाती हैं। कभी-कभी कंठस्थ की गई लोककथा में नए कथक्कड़ के द्वारा कुछ परिवर्तन और परिवर्द्धन कर दिए जाते हैं।
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