लहनासिंह का चरित्र चित्रण- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का मुख्य पात्र लहनासिंह है। उसके माध्यम से लेखक ने अपूर्व त्याग, बलिदान एवं वि
लहनासिंह का चरित्र चित्रण - Lahna Singh ka Charitra Chitran
लहनासिंह का चरित्र चित्रण- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का मुख्य पात्र लहनासिंह है। उसके माध्यम से लेखक ने अपूर्व त्याग, बलिदान एवं विशुद्ध प्रेम का निरूपण किया है। लहनासिंह के चरित्र का क्रमिक विकास दिखाते हुए लेखक ने उसे सर्वप्रथम एक भोले भाले किशोर बालक के रूप में चित्रित किया है। वह अमृतसर के बाजार में चौक की एक दुकान पर एक लड़की से मिलता है। दोनों में परिचय होता है और दोनों के हृदय में आकर्षण के साथ-साथ प्रेम का अंकुर फूटने लगता है। एक महीने तक बराबर दोनों मिलते रहते हैं परन्तु एक दिन अचानक लड़की अपनी सगाई हो जाने की बात कहकर भाग खड़ी होती है। उसके बाद वह नहीं मिल पाते।
लहनासिंह के बड़े हो जाने पर फौज में जमादार हो जाने पर उसके चरित्र की कितनी ही असाधारण विशेषताओं का चित्रण इस कहानी में हुआ है। वह अनुशासन में रहने वाला और बड़ों को आदर देने वाला सैनिक है। सूबेदार के घर जाकर वह सूबेदारनी को 'मत्था टेकना' कहकर पूरा आदर देता है। यह वही लड़की थी जिसे वह 25 वर्ष पहले अमृतसर में मिला था।
लहनासिंह अत्यन्त विनोदी स्वभाव का हँसमुख सैनिक है। फ्रांस - बेल्जियम के रणक्षेत्र में खन्दक के अन्दर पड़े हुए सैनिकों के साथ हास्य-विनोद में भाग लेता है, वजीरासिंह के साथ हँसी-मजाक करता है, फिरंगी मेम के बारे में भी चुटकी लेता है और अपने कर्त्तव्य का भी पूरा ध्यान रखता है। वह बीमार बोधासिंह को रात भर अपने दोनों कम्बलों से ढके रहता है और स्वयं सिगड़ी के सहारे रात काट देता है।
वह अत्यन्त सचेत, जागरूक, कुशाग्र बुद्धि - सम्पन्न और धीरपुरूष है। वह कपट - व्यवहार एवं धूर्तता को समझने की सूझबूझ रखता है। आकस्मिक दुर्घटना के समय उसमें अपूर्व धैर्य एवं साहस के साथ अपने कर्त्तव्य को निश्चय ही पूरा करने की शक्ति है और दुश्मन के चंगुल में फँसने पर भी अधीर व्यग्र एवं अस्त व्यस्त नहीं होता। मुठभेड़ में उसके दो गहरे घाव लगते हैं परन्तु अपनी जान पर खेलकर एक ओर तो सूबेदार को वापिस बुलाकर उनकी प्राण रक्षा करता है।
लहनासिंह एक ऐसा कर्त्तव्यनिष्ठ सैनिक है, जो आदर्श के लिए सर्वस्व अर्पण करने की क्षमता रखता है। सूबेदारनी ने उसे जो कुछ कहा था उसको वह पूरा करने में ही सुख का अनुभव करता है। सूबेदार के बार-बार कहने पर भी वह घायल सैनिकों के साथ गाड़ी में बैठकर स्वयं अस्पताल नहीं जाता, वरन पहले बीमार बोधासिंह को गाड़ी में भेजने का आग्रह करता है और फिर बोधा और सूबेदारनी की सौगन्ध दिलाकर सूबेदार को उसी गाड़ी में चले जाने के लिए यह कहकर विवश कर देता है कि वहाँ पहुँचकर मेरे लिए फिर गाड़ी भेज देना । वह सूबेदार से कहता है, “और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था वह मैंने कर दिया"। इस तरह अपनी भूतपूर्व प्रेमिका के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं श्रद्धा प्रकट करता हुआ यह वीर सैनिक अपने कर्त्तव्य को पूरा करके ही वीरगति को प्राप्त होता है।
संक्षेप में कह सकते हैं कि लहनसिंह का चरित्र त्याग, बलिदान और पवित्र प्रेम का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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