जोखन बहू का चरित्र चित्रण: जोखन बहू मेहनती स्त्री है। वह महतों के खटाल पर साफ-सफाई का काम करती थी। वह गोबर कढ़न थी। वह छोटी जाति की थी। साँवला लंबोतरा
जोखन बहू का चरित्र चित्रण
मेहनतकश: जोखन बहू मेहनती स्त्री है। वह महतों के खटाल पर साफ-सफाई का काम करती थी। वह गोबर कढ़न थी। वह छोटी जाति की थी। साँवला लंबोतरा चेहरा, छरहरा बदन औसत कद की जोखन बहू मूँज की नक्काशीदार बेहतरीन चीजें बना लेती है। ऊपले बनाने में उसकी किसी से भी तुलना नहीं की जा सकती है। साफ-सफाई के काम में उसका कोई जोड़ नहीं है। वह मेहनत कर रोटी कमाने वाली स्त्री है।
मितभाषी एवं सम्मान देने वाली: जोखन बहू कम बोलने वाली महिला है। वह अपने जीवन के प्रति ही केन्द्रित है। उसे दुनिया से कुछ लेना नहीं है। इस प्रवृति के कारण वह अपने पति को बहुत प्रिय है। वह निःशब्द मुस्कुराती या फिर निःशब्द रोती है। गाँव के प्रत्येक व्यक्ति को आदर सम्मान की दृष्टि से देखती है- "हल्का घूँघट काढ़कर मूड़ी गड़ाकर आती, काम करती और मूड़ी गड़ाकर वापस लौट जाती । महतो - महताइन की आहट पाते ही आड़ में हो लेती। सुकुलजी को प्रणाम करना होता तो दूर से अँचरा (आँचल ) से गोड़ धरती । मैं सामने पड़ जाता तो दायाँ हाथ उठाकर सलाम करती । उसे बोलते मैंने कभी सुना नहीं।"
संतान पैदा करने में असहाय: जोखन बहू सहनशील एवं मित्तभाषी स्त्री होने के साथ-साथ वह असहाय भी है। विवाह के पाँच साल तक भी बाल-बच्चे नहीं हो पाते हैं। इस तरह वह संतान पैदा करने में असहाय थी। इस कारण से वह धीरे-धीरे गाँव वालों के लिए मनहूस बनती जाती है। शुरू-शुरू में किसी रोते हुए बच्चे को देखती तो दुलार के मारे उसे उठा लेती लेकिन बाद में उससे बच्चे छीने जाने लगते हैं- "बहुत देर तक पुती रहती यह उदास मुस्कराहट उसके चेहरे पर। फिर सूख जाती जैसे रेत में पानी बिला जाता है। धीरे-धीरे वह खुद को बचाने लगी थी दूसरों के सामने पड़ने से।”
गाँव की दृष्टि में अपशकुनि: संतान पैदा न कर पाने के कारण वह धीरे-धीरे गाँव के लोगों के लिए अभागिन एवं मनहूस बनती जाती है। वह गाँव के लिए अपशकुन का कारण बन जाती है। गाँव में घूँघट ओढ़कर ही चलती है। ईश्वर में आस्था रखने वाली जोखन बहू दुःख की स्थिति में मन्दिर नहीं जा सकती थी । सर्वमंगला देवी के मन्दिर चोरी से जाना उसके जीवन का सबसे बड़ा अपराध था। लोगों ने उस पर आरोप लगाना आरम्भ कर दिया- "मन्दिर भरस्ट कर दिया, देवी को भरस्ट कर दिया, अभी पूछते हो, किया क्या ! सुकुलजी ने समाहार करते हुए कहा- "अरे तुझे और कोई मन्दिर न मिला कि और कोई देवी-देवता न मिले ? तू कहीं और पूजा कर लेती। देवी को ही पूजना था तो दूर से गोड़ धर लेती! क्या तुझे मालूम नहीं कि यह मन्दिर महतो - महताइन ने खास अपने पैसे से अपने परिवार और गाँव के कुशल मंगल के लिए बनवाया था ? .. एक पल में तूने माटी कर दिया !"
आत्मदाह करने पर मजबूर: आर्थिक रूप से कमज़ोर जोखन बहू आत्मदाह करने के लिए मजबूर थी। एक बाँझ होने के कारण वह गाँव वालों के लिए अपशकुनि थी लेकिन पति की मृत्यु का कारण भी उसे ही माना जाता है। धर्म के अनुयायियों से डरकर वह आत्मदाह करती है। "चिता फूँककर लोग दूर पीपल की छाँव में जा बैठे कि जल जाए तो चिता बुझाकर लोग अपना-अपना काम-धन्धा देखें। तभी अचानक जाने कहाँ से बवण्डर की तरह वह दौड़ती हुई आई और औंधे मुँह चिता पर जा भहराई। अरे..! अरे ! कब्ल इसके कि लोग चिता तक पहुँचते । वह झुलस चुकी थी।” आत्मदाह के उपरान्त वह मौन हो जाती है लेकिन गाँव वालों के लिए वह सती मैया बन जाती है। दुनिया ने उसे खुद ही अपशकुनि माना और स्वयं ही देवी बना दिया। गाँव वालों का दृष्टिकोण - "न किसी से बोलना, न किसी से चालना। मूड़ी गाड़कर आना, मूडी गाड़कर जाना। इस कलियुग में देखी है ऐसी औरत ? ... हमें तो लगता है कि हमारी परीक्षा लेने आई थी। जाते जाते आँख में उँगली डालकर दिखा गई कि देखो, मैं क्या हूँ ... बोलो बोलो, सती मैया की जै।"
'राख' कहानी में जोखन बहू का चरित्र समाज के दोयम दर्जे की सोच को बेनकाब करता है।
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