जीप पर सवार इल्लियाँ व्यंग्य का उद्देश्य: ‘जीप पर सवार इल्लियाँ' नामक व्यंग्य के माध्यम से शरद जोशी जी ने एक तरफ देश के विकास की बागडोर सम्भाले हमारे
जीप पर सवार इल्लियाँ व्यंग्य का उद्देश्य लिखिए।
जीप पर सवार इल्लियाँ व्यंग्य का उद्देश्य: ‘जीप पर सवार इल्लियाँ' नामक व्यंग्य के माध्यम से शरद जोशी जी ने एक तरफ देश के विकास की बागडोर सम्भाले हमारे राजनेताओं व सरकारी अधिकारियों की कार्यपध्दति का पर्दा फाश किया है तो दूसरी तरफ किसानों की यथार्थ स्थिति को अभिव्यक्त किया है। तीसरी ओर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया की भी पोल खोलकर रख दी है।
व्यंग्यकार बताना चाहते हैं कि आज देश के जिम्मेदार लोग किस प्रकार अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ लेने व किसानों की आड़ में समाज का पैसा चट करने की योजनाएँ बना लेने में माहिर हो जाते हैं। व्यंग्यकार बताना चाहते हैं कि आजकल अखबारों में चने पर इल्ली नामक कीड़े का लगना सुर्खियों पर है। यहाँ तक की चने के पौधे पर बैठी इल्ली की तस्वीर भी छपकर आ गई है। इसके चलते सरकार व सरकारी महकमे की पोल खुलकर रह गई है। यह पूरा एक नाटकीय प्रकरण के समान चलता है।
इसी बीच लेखक अपने एक बुध्दिमान मित्र से मिलता है और उनके बीच इल्ली को लेकर चर्चा होती है। वे इला और इल्ली में अंतर बताते हुए कहते हैं कि ‘इला’ अन्न की अधिष्ठात्री देवी है अर्थात पृथ्वी। 'इल्ली' अन्न की नष्टार्थी देवी। साथ ही यह भी बताया कि ये इल्ली इसी इला की बेटियाँ हैं। और अपनी माँ की कमाई खा रही हैं। तभी लेखक की पुत्री इल्ली संबंधी ज्ञान का परिचय देते हुए कहती है कि ‘प्राकृतिक विज्ञान' भाग चार में बताया गया है कि इल्ली से तितली बनती है। तितली जो फूलों पर मडराती हैं रस पीती हैं और उड़ जाती हैं।
अब अखबारों के शोर के चलते नेताओं के भाषण शुरू हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप सरकार जागी, मंत्री जागे, अफसर जागे और फाइलें खुलने लगी। नींद में झूमते अधिकारी व कार्यकर्ता घर से बाहर निकल आए और गावों की ओर बढ़ने लगे। इस प्रकार इल्ली का मामला दिल्ली तक पहुँच गया। दिल्ली से आदेश पहुँचते ही खेतों में दवा का छिड़काव करने के लिए हवाई जहाजों की व्यवस्था की गई। हेलीकॉप्टर मॅडराने लगे। किसान आश्चर्य चकित हुए। विपक्ष ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि यदि खेतों में हवाई जहाज द्वारा इसी प्रकार दवा का छिड़काव होता रहा तो उनकी जड़ें साफ होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। लेकिन कुछ समझदार लोगों पर इस चहलकदमी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। वे जानते है कि इलेक्शन के दौरान इस तरह की चहल कदमी होती ही रही है।
कुछ समय पश्चात एक दिन इल्ली - उन्मूलन की प्रगति हेतु कृषि अधिकारी आते हैं। इस दौर में लेखक के मित्र ने लेखक को भी साथ ले लिया। लेखक को भी अपनी शंका का समाधान करना था कि चने के खेत होते हैं या पेड़। रास्ते भर मनुष्य की प्रकृति के अनुकूल लेखक का मित्र आगंतुक अधिकारी से अपने विभाग के अन्य अधिकारियों की बुराइयाँ करता है। जब वे चने के खेत पर पहुँचते हैं तो
देखते हैं कि चने के खेत के पास एक छोटा अफसर इनका इंतजार कर रहा है। तब लेखक देखता है कि चने के पेड़ नहीं बल्कि खेत होते हैं। इसके बाद बड़ा अधिकारी छोटे अफसर से खेतों का मुआइना करते हुए जो भी प्रश्न पूछता है वह उसकी हा में हा मिलाता रहता है। जैसे इस खेत में तो इल्लियाँ नहीं हैं ? बड़े अफसर ने पूछा।
जी नहीं हैं। छोटा अफसर बोला। कुछ तो नजर आ रहीं हैं।
जी हाँ, कुछ तो हैं। आदि। इसी तरह की बातों के पश्चात बड़ा अधिकारी हुक्म देता है मुझे चना चाहिए हरा। छोटा अफसर जी हाँ कहते ही एक किसान को डराते धमकाते हुए कहता है कि जरा हरा - हरा चना छाँटकर साहब की जीप पर रखवा दे। कुछ ही देर में जीप पर चने का ढेर बन गया और हमारे रवाना होते ही किसान ने राहत की साँस ली और हम तीनों चना खाने लगे। तब एकाएक मुझे लगा जीप पर तीन इल्लियाँ सवार हैं जो खेतों की ओर से चली जा रही हैं। तब लेखक को एहसास होता है कि देश में ऐसी ही लाखों इल्लियाँ हैं जो सिर्फ चना ही नहीं खा रही है बल्कि देश का सब कुछ डकार लेना चाहते हैं।
इस प्रकार लेखक का उद्देश्य देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के विविध आयामों की ओर आम जनता का ध्यान आकृष्ट करना है। वह देशवासियों के समक्ष समाज की यथार्थ स्थिति को रखने का प्रयास करता है। साथ ही हमारे भ्रष्ट राजनेता, अधिकारी व कर्मचारियों की कार्य पध्दति की पोल खोलकर रख देता हैं।
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