जीप पर सवार इल्लियाँ का सारांश - 'जीप पर सवार इल्लियाँ' में व्यंग्यकार शरद जोशी ने नौकरशाही व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होंने इसके अंतर्गत ब
Jeep par Sawar Illian Summary in Hindi: इस लेख में हमने शरद जोशी द्वारा रचित कहानी जीप पर सवार इल्लियाँ का सारांश का वर्णन किया है। जिसे पढ़कर पाठक जीप पर सवार इल्लियाँ की Summary जान पाएंगे।
जीप पर सवार इल्लियाँ का सारांश - Jeep par Sawar Illian Summary in Hindi
जीप पर सवार इल्लियाँ का सारांश - 'जीप पर सवार इल्लियाँ' में व्यंग्यकार शरद जोशी ने नौकरशाही व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया है। उन्होंने इसके अंतर्गत बताया है कि सरकार द्वारा तरह-तरह की योजनाएँ बनाई जाती हैं। जिन पर लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किए जाने होते हैं। इनमें से कुछ योजनाएँ किसानों व फसलों के विकास से संबंधित होती है। जिन्हें समय रहते किसानों तक पहुँचाना सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की जिम्मेदारी है।
व्यंग्यकार बताना चाहते हैं कि आजकल अखबारों में चने पर इल्ली नामक कीड़े का लगना सुर्खियों पर है। यहाँ तक की चने के पौधे पर बैठी इल्ली की तस्वीर भी छपकर आ गई है। इसके चलते सरकार व सरकारी महकमे की पोल खुलकर रह गई है। इसी बीच लेखक अपने एक बुध्दिमान मित्र से मिलता है और उनके बीच इल्ली को लेकर चर्चा होती है। वे इला और इल्ली में अंतर बताते हुए कहते हैं। कि 'इला' अन्न की अधिष्ठात्री देवी है अर्थात पृथ्वी । 'इल्ली' अन्न की नष्टार्थी देवी। साथ ही यह भी बताया कि ये इल्ली इसी इला की बेटियाँ हैं। और अपनी माँ की कमाई खा रही हैं। तभी लेखक की पुत्री इल्ली संबंधी ज्ञान का परिचय देते हुए कहती है कि ‘प्राकृतिक विज्ञान’ भाग चार में बताया गया है कि इल्ली से तितली बनती है। तितली जो फूलों पर मडराती हैं रस पीती है और उड़ जाती हैं।
इसी दौरान अखबारों के शोर के चलते नेताओं के भाषण शुरू हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप सरकार जागी, मंत्री जागे, अफसर जागे और फाइलें खुलने लगी । नीद में झूमते अधिकारी व कार्यकर्ता घर से बाहर निकल आए और गाँवों की ओर बढ़ने लगे। इस प्रकार इल्ली का मामला दिल्ली तक पहुँच गया। दिल्ली से आदेश पहुँच ही खेतों में दवा का छिड़काव करने के लिए हवाई जहाजों की व्यवस्था की गई। हेलीकॉप्टर मॅडराने लगे। किसान आश्चर्य चकित हुए। विपक्ष ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि यदि खेतों में हवाई जहाज द्वारा इसी प्रकार दवा का छिड़काव होता रहा तो उनकी जड़ें साफ होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। लेकिन कुछ समझदार लोगों पर इस चहलकदमी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हैं। वे जानते है कि इलेक्शन के दौरान इस तरह की चहल कदमी होती ही रही है।
आगे लेखक बताते हैं कि एक दिन इल्ली - उन्मूलन की प्रगति हेतु कृषि - अधिकारी आते हैं। इस दौरे में लेखक के मित्र ने लेखक को भी साथ ले लिया। लेखक को भी अपनी शंका का समाधान करना था कि चने के खेत होते हैं या पेड़। रास्ते भर मनुष्य की प्रकृति के अनुकूल लेखक का मित्र आगंतुक अधिकारी से अपने विभाग के अन्य अधिकारियों की बुराइयाँ करता है। जब वे चने के खेत पर पहुँचते हैं तो देखते हैं कि चने के खेत के पास एक छोटा अफसर इनका इंतजार कर रहा है। आज लेखक को पता चलता है कि चने के पेड़ नहीं बल्कि खेत होते हैं।
इसके बाद बड़ा अधिकारी छोटे अफसर से खेतों का मुआइना करते हुए जो भी प्रश्न पूछता है वह उसकी हा में हा मिलाता रहता है। जैसे
इस खेत में तो इल्लियों नहीं हैं? बड़े अफसर ने पूछा ।
जी नहीं हैं। छोटा अफसर बोला ।
कुछ तो नजर आ रहीं हैं।
जी हाँ, कुछ तो हैं। आदि।
इसी तरह की बातों के पश्चात बड़ा अधिकारी हुक्म देता हैं मुझे चना चाहिए हरा । छोटा अफसर जी हाँ कहते ही एक किसन को डराते धमकाते हुए कहता है कि जरा हरा - हरा चना छाँटकर साहब की जीप पर रखवा दे। कुछ ही देर में जीप पर चने का ढेर बन गया और हमारे रवाना होते ही किसान ने राहत की साँस ली और हम तीनों चना खाने लगे। तब एकाएक मुझे लगा जीप पर तीन इल्लियाँ सवार हैं जो खेतों की ओर से चली जा रही हैं। तब लेखक को एहसास होता है कि देश में ऐसी ही लाखों इल्लियाँ हैं जो सिर्फ चना ही नहीं खा रही हैं बल्कि देश का सब कुछ डकार लेना चाहते हैं । इस प्रकार लेखक ने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को व्यंगात्मक प्रस्तुति के साथ देशवासियों के समक्ष रखने का प्रयास किया है। साथ ही समस्त राजनेता, अधिकारी व कर्मचारियों की कार्य पध्दति की पोल खोलकर रख दी है।
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