गबन उपन्यास की कथावस्तु - कथावस्तु उपन्यास का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसे उपन्यास का मूल आधार तथा प्राण भी माना जाता है। ‘गबन' उपन्यास में प्रेमचन्द
गबन उपन्यास की कथावस्तु - Gaban Upanyas ka Kathavastu
गबन उपन्यास की कथावस्तु - कथावस्तु उपन्यास का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इसे उपन्यास का मूल आधार तथा प्राण भी माना जाता है। कथावस्तु के बिना किसी भी उपन्यास की रचना संभव नहीं है । उपन्यास की कथावस्तु का चयन इतिहास, पुराण जीवन के विस्तृत आयामों आदि कहीं से भी किया जा सकता है। एक अच्छी कथावस्तु से ही एक अच्छे उपन्यास की रचना होती है। कथावस्तु में मौलिकता, रोचकता, सुसंगठिता, संभाव्यता आदि गुण विद्यमान होने चाहिए ।
‘गबन' उपन्यास में प्रेमचन्द ने मूल रूप से मध्यवर्गीय परिवार की इच्छा-आकांक्षाओं, प्रदर्शनप्रियता तथा उससे उत्पन्न कई कठिनाइयों तथा समस्याओं को चित्रित किया है। रमानाथ तथा जालपा के माध्यम से उपन्यासकार ने मध्यवर्गीय परिवार का बड़ा मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। जालपा दीनदयाल तथा मानकी की इकलौती पुत्री है। दीनदयाल पाँच रुपये मासिक वेतन की एक छोटी नौकरी के बावजूद अपना जीवन बड़ी ठाठ तथा शानोशौकत से जीता है। लाड़-प्यार में पली जालपा बचपन से ही बड़ी महत्वकांक्षिणी हो जाती हे। उसे आभूषणों से अत्यंत प्रेम था । माता-पिता तथा सखियों द्वारा उसके मस्तिष्क में यह बात बिठा दी जाती है कि विवाह में उसे ससुराल से चंद्रहार की प्राप्ति होगी । परन्तु जब उसे ससुराल से चंद्रहार नहीं मिलता तो वह निराश हो जाती है और पति को 'गबन' तक के लिए विवश कर देती है। उसे अपनी भूल का एहसास तब होता है जब रमानाथ कलकत्ता भाग जाता है।
रमानाथ दयानाथ का पुत्र है । दयानाथ एक ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति है। अपनी इसी ईमानदारी के चलते उसे अभाव का जीवन व्यतीत करना पड़ता है । परन्तु रमानाथ इसके विपरीत मध्यवर्गीय प्रदर्शनप्रियता से प्रभावित है । वह पढ़ाई लिखाई से अधिक फेशन को महत्व देता है। अपने विवाह पर कर्ज लेकर पत्नी के लिए गहने खरीदता है और कर्ज न चुकाने की स्थिति में गबन तक करता है । वह पत्नी को बिना कुछ बताए कलकत्ता भाग जाता है। जहाँ पुलिस के चक्रव्यूह में फंस जाता है और झूठी गवाही देने के लिए राजी हो जाता है। अंत में पत्नी जालपा तथा जोहरा की सहायता से जज को सब कुछ बता देता है और अपनी भूल का पश्चाताप करता है।
उपन्यासकार ने मुख्य कथा को गति देने के लिए रतन, देवीदीन तथा जोहरा से सम्बन्धित कई प्रासंगिक कथाओं को बड़ी कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है। साथ ही आभूषण के दुष्परिणाम, कर्ज, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं को बड़ी सफलतापूर्वक उजागर किया है।
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