दोनों ओर प्रेम पलता है कविता का भावार्थ : प्रस्तुत काव्यांश 'साकेत' ने नवम् सर्ग से लिया गया है। दोनों ओर प्रेम पलता है कविता में दीपक और पतंग दोनों ह
दोनों ओर प्रेम पलता है कविता का भावार्थ लिखिए।
दोनों ओर प्रेम पलता है कविता का भावार्थ
कविता का भावार्थ : प्रस्तुत काव्यांश 'साकेत' ने नवम् सर्ग से लिया गया है। दोनों ओर प्रेम पलता है कविता में दीपक और पतंग दोनों ही प्रेम के प्रतीक हैं। कवि ने दीपक और पतंगे के माध्यम से उर्मिला और लक्ष्मण के उदात्त प्रेम का वर्णन किया है। प्रेम दोनों ओर पलता है।
इसमें पतंग भी जलता है और दीपक भी जलता है। सीस हिलाकर दीपक पतंग से कहता है, बंधु तुम व्यर्थ ही क्यों जल रहे हो ? फिर भी पतंग जलता ही है। अगर जीवन में मिलन ही नहीं है तो पतंग जीवन जी कर क्या करेगा ? अगर दीपक का उसे प्यार नहीं मिलता तो उसका जीवन मरण के समान है। वह जीवन में असफल है। पतंग दीपक से कहता तुम मुझसे महान हो। तुम्हारे सामने मैं बिल्कुल छोटा हूँ । परंतु क्या अपना मरण भी मेरे हाथ में नहीं है ? क्या मैं अपनी मर्जी से नहीं मर सकता ?
हे सखी, फिर भी दीपक के जीवन में आनंद है। परंतु पतंग की भाग्य लिपि काली है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने उर्मिला और लक्ष्मण के प्रेम का वर्णन किया है। लक्ष्मण राम के साथ वन चले गए। त्याग के कारण उनका नाम हो गया। लेकिन उर्मिला उपेक्षित ही रह गई। कवि कहता है आज निस्वार्थी प्रेम नहीं दिखाई देता । इसमें व्यापार की वृत्ति आ गई है। जहाँ पर हमें लाभ दिखाई देता है उससे लोग प्रेम करते हैं, यह बात अच्छी नहीं है।
दोनों ओर प्रेम पलता है कविता का उद्देश्य : दोनों ओर प्रेम पलता है कविता में कवि ने दीपक और पतंग के माध्यम से उर्मिला और लक्ष्मण के प्रेम तथा विरह व्यथा का वर्णन किया है। कवि बताना चाहता है कि प्रेम की आग दोनों ओर समान रूप से रहती है। उसमें किसी का समर्पण भी संभव है। उससे प्रेम की उदात्तता स्पष्ट होती है।
कवि परिचय : आधुनिक हिंदी कविता में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का नाम प्रसिद्ध है। आपकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति के प्रति गहरा प्रेम और उपेक्षित नारी के प्रति सहानुभूति व्यक्त होती है। आपको भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' पुरस्कार से सम्मानित किया है।
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