दो बैलों की कथा कहानी की समीक्षा - प्रेमचंद द्वारा लिखित 'दो बैलों की कथा' जानवरों के मनोविज्ञान और स्नेहभाव को दर्शाती है। हीरा और मोती बैलों की सुन्
दो बैलों की कथा कहानी की समीक्षा - Do Bailon ki Katha Kahani ki Samiksha
दो बैलों की कथा कहानी की समीक्षा - प्रेमचंद द्वारा लिखित 'दो बैलों की कथा' जानवरों के मनोविज्ञान और स्नेहभाव को दर्शाती है। हीरा और मोती बैलों की सुन्दर जोड़ी है। प्रेमचंद कहानी की शुरुआत में लिखते हैं- "झूरी के पास दो बैल थे- हीरा और मोती। देखने में सुन्दर, काम में चौकस, डील में ऊँचे...दोनों आमने-सामने या आसपास बैठे हुए एक दूसरे से मूक भाषा में विचार-विनिमय किया करते थे। एक-दूसरे को चाटकर सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे, विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से ... जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गर्दन हिला-हिलाकर चलते, उस समय हर एक की चेष्टा होती कि ज्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गर्दन पर रहे।" यानी इस जोड़ी में दोस्ती की गहरी भावना है। पाठकों को उनकी परस्परता, आत्मीयता, संघर्षशीलता व स्निग्धता अभिभूत करती है। कहानी के नायक हीरा और मोती भारतीय किसान के आँगन, उसके प्रेम, उसकी सादगी और उसके खेतों की पहचान हैं। वे हमारे कृषक के जीवन- भावों का प्रामाणिक प्रतिनिधित्व करते हैं।
यह कहानी किसान और उसके बैलों का ही नहीं बल्कि हमारे लोक का भी चरित्र-अंकन करती है। प्रेमचंद अपने कहन से दिल जीत लेते हैं। 1931 में लिखी गई यह कहानी आज भी उतनी ही नई लगती है। आज जब क्रूर व्यवस्था द्वारा किसानी और बैल का सम्बन्ध खत्म किया जा रहा है, ऐसे में यह कहानी और भी ज़रूरी है। यह अपने परिवेश को बखूबी दर्शाती है। इसमें एक तरफ मानव व पशु प्रेम है, पशुओं का मनोविज्ञान है, अनाथ बच्ची का स्नेहभाव है तो दूसरी और विद्रोह, संघर्ष और आज़ादी की शाश्वत कथा है। यहाँ तत्कालीन शोषित समाज व राजनीतिक चेतना साफतौर पर देखी जा सकती है। आलोचक इसे स्वतन्त्रता संग्राम से जोड़कर यूँ ही नहीं देखते, सच तो यह है कि प्रेमचंद ने इस कहानी के माध्यम से आमजन को संघर्ष व सामूहिकता के लिए प्रेरित किया है।
इस कहानी का कथ्य उपरोक्त संदर्भित बैलों यानी हीरा और मोती के इर्द-गिर्द घूमता है। बैलों को उनका मालिक झूरी बहुत प्यार से रखे हुए है। बैल अपने घर में खूब खुश हैं। एक दिन 'झूरी' का साला 'गया' हीरा-मोती को काम करने के लिए अपने घर ले जाता है। बैल सोचते हैं कि हमें मालिक ने क्यों बेच दिया, हम कम खाकर अधिक मेहनत कर लेते परन्तु अपने घर में ही रह पाते। यहाँ प्रेमचंद ने उनकी मनोदशा का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। वे रास्ते में गया को परेशान करते हैं। नई जगह, नए लोग उन्हें नहीं भाते। इधर गया ने उनसे डटकर काम लेना शुरू किया, इस बीच दोनों में विद्रोह पनपता है। वे मुक्ति पाने और अपने घर जाने के लिए मचल जाते हैं। रात में अपनी ताकत व बुद्धि से वे गया के घर से भागने में सफल हो जाते हैं और अपने घर पहुँच जाते हैं। उनकी इस तरह घर वापसी को गाँवभर में सराहा जाता है। गाँव के लड़कों ने तालियाँ पीट-पीटकर उनका स्वागत किया, क्योंकि उनके लिए यह घटना अभूतपूर्व थी। उन्होंने दोनों बैलों को गुड़, रोटी, भूसी, चोकर आदि खिलाकर उनका अभिनंदन किया। झूरी से उन्हें स्नेह मिलता है जबकि उसकी पत्नी से डांट और सुखी भूसी मिलती है। फिर भी वे खुश होते हैं। उनकी यह प्रसन्नता जल्दी ही दु:ख में बदल जाती है क्योंकि गया उन्हें फिर से ले जाता है। इस बार वह उन्हें मोटी-मोटी रस्सियों से बाँधता है। उनकी नांद में रूखा-सूखा डाल देता है। अपमानित व प्रताड़ित होने पर वे खाना न खाकर अनशन करते हैं। जानवरों के इस अनशन में तत्कालीन परिवेश की प्रामाणिकता को देखा जा सकता है। दूसरे दिन वे जानबूझ कर हठी बन जाते है, वे जोत के लिए पाँव ही नहीं हिलाते । गया उन्हें खूब मारता है तो मोती को क्रोध आ जाता है। वह भागता है और जुए और हल को तोड़ देता है। हीरा अपने साथी मोती को 'बैल-धर्म' समझाता है, उसे शांत रहने को कहता है।
इस तरह रोज़ उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। उस घर में एक छोटी बच्ची है जिसकी माँ गई है और उसकी सौतेली माँ उसे मारती है। वह बच्ची हर रात चुपके से आकर दोनों बैलों को दुलारती है, स्नेह से दो रोटियाँ खिला जाती है। दरअसल प्रेमचंद यहाँ यह बताना चाहते हैं कि प्रतिकूलताओं व दारुण स्थितियों में भी कहीं न कहीं अच्छाई व आशा बनी ही रहती है, दो दु:खी आदमियों या समाजों में एक नाता होना चाहिए। दोनों बैलों में बच्ची के दुःख की चर्चा होती है। इस संवाद में बच्ची के प्रति प्रेम और उसकी माँ के लिए क्रोध है। मोती कहता है- "तो मालकिन (बच्ची की माँ) को फेंक दूँ, वही तो इस लड़की को मारती है।" इस पर हीरा कहता है- "लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो। " यहाँ जानवरों में नैतिकता व उच्च मूल्य दिखाकर प्रेमचंद ने मानव समाज को आईना दिखाया है। अंतत: उसी बच्ची की प्रेरणा व सहायता पाकर वह फिर से भाग जाते हैं। उन्हें रास्ते में एक सांड़ से भिड़ना पड़ता है। जिसे वे हिम्मत व सामूहिक ताकत से हरा देते हैं। दरअसल प्रेमचंद 'साँड़ में अंग्रेज़ी सत्ता को दिखा रहे थे। वे उसकी ताकत को आम भारतीयों की एकता व संघर्ष के सामने घुटने टेकते देख चुके थे। मोती उसे मार देने की बात करता है तो हीरा कहता है- "गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए।" पूरी कहानी में आदर्श की स्थिति बनी रहती है। हीरा-मोती भारत की उस परम्परा का पालन करते हैं जिसमें निहत्थे पर हमला करना कायरता माना जाता है।
घर का रास्ता भटके हीरा और मोती किसी के खेत से मटर खाते हुए पकड़ लिए जाते हैं, उन्हें कांजीहौस में कैद कर लिया जाता है। कांजीहौस की दीवार तोड़ने के प्रयास में हीरा को खूब डंडे रसीद होते हैं। हीरा का यह कहकर - 'ज़ोर तो मारता ही जाऊँगा, चाहे कितने ही बंधन पड़ गए।' में मुक्ति और सफलता का मूल मंत्र है। अंतत: वे दोनों मिलकर दीवार तोड़ देते हैं और कैद में फंसे अन्य जानवरों को आज़ाद करवाने में कामयाब हो जाते हैं, परन्तु एक के मोटी रस्सी से बंधे होने के कारण दूसरा साथी भी वहाँ से भागता नहीं है। यह दोस्ती की मिसाल है। मोती अपने दोस्त हीरा को कहता है- "तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो? हीरा हम और तुम इतने दिन एक साथ रहे हैं। आज विपत्ति में पड़ गए तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊँ।" इस पर हीरा उत्तर देता है कि बहुत मार पड़ेगी। मोती गर्व से कहता है- "इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।" यहाँ व्यक्त आत्मसंतुष्टि से बड़ा हासिल और क्या हो सकता है। यह जीवन अपने लिए ही तो नहीं है। दूसरों की सहायता करके या जान बचाकर हम सार्थक हो सकते हैं। इस गुण को हम हीरा - मोती के चरित्र में देख सकते हैं। जानवरों को आज़ाद करवाकर वे इसकी क़ीमत देते हैं। उन्हें खूब मारा जाता है, भूखे रखा जाता है और अंत में एक कसाई के हाथों बेच दिया जाता है । परन्तु अंत में वह अपने घर के रास्ते को पहचान कर कसाई से छूट भागते हैं, झूरी से पनाह पाते पाकर खुश हो जाते हैं। झूरी कसाई को हड़का देता है। बैलों को वापस घर में पाकर झूरी की पत्नी भी उनका माथा चूम लेती है।
दरअसल प्रेमचंद इस कहानी के माध्यम से पाठकों को नैतिक मूल्यों का संदेश देते हैं, अन्याय से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। वे यह भी बताते हैं कि किसी संघर्ष का कदापि यह अर्थ नहीं कि हिंसा की ही जाए। यह कहानी गांधी युग में लिखी गई है। इस कहानी पर गांधीवाद का प्रभाव देखा जा सकता है। कांजीहौस प्रसंग में सांकेतिक रूप से अंग्रेज़ों द्वारा झूठे केसों में फांस लिए गए निरीह भारतीयों का वर्णन है। यहाँ जेलों में की जाने वाली बदसलूकी को देखा जा सकता है। हीरा-मोती ने शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाई, इसकी क़ीमत भी चुकाई। उन्हें प्रताड़ित किया गया। क्रांतिकारियों के साथ भी ऐसा ही होता था। हीरा और मोती के स्वभाव में नरम व गरम दल का घोषणापत्र देखा जा सकता है, उनके चरित्र में दोनों दलों की विचारधारा का सुन्दर संयोजन देखा जा सकता है। इस कहानी में मित्र भाव, कृतज्ञता, सहनशक्ति, धैर्य, जिजीविषा, संघर्ष, आत्म व दूसरों का सम्मान, क्षमाशीलता, स्वामी-भक्ति जैसे जीवन के उदात्त मूल्य देखे जा सकते हैं।
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