चीनी फेरीवाला' रेखाचित्र का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। एक चीनी फेरीवाला लेखिका के द्वार पर पहुँचकर मइया, माता, जीजी, दिदिया, बिटिया आदि ऐसे शब्दों का प्र
चीनी फेरीवाला' रेखाचित्र का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
चीनी फेरीवाला' रेखाचित्र का उद्देश्य: प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पेट की आग बुझाने के लिए कुछ-न-कुछ कार्य करना होता है लेकिन उसे इस बात का ध्यान रखना होता है कि उसके कार्यो से किसी का कोई अहित न हो। ऐसे कार्य सकारात्मक कार्य कहलाते हैं। ठीक इसी तरह एक चीनी फेरीवाला लेखिका के द्वार पर पहुँचकर मइया, माता, जीजी, दिदिया, बिटिया आदि ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जो लेखिका को प्रिय हैं। इसी कारण लेखिका उसे अपने द्वार से निराश नहीं भेजना चाहती है। पहले तो लेखिका विदेशी वस्तुओं को देखकर विचलित हो जाती है किंतु बच्चे का यह जवाब कि हम क्या फारन हैं? हम तो चइना से आता है। जो लेखिका को अपने पड़ोसी होने का बोध करा देता है। इससे भावुक होकर जब लेखिका उससे भाई का संबंध जोड़ देती है। तभी लेखिका को याद आता है कि बचपन में उसे उसकी छोटी आँखों के कारण चीनी कहकर पुकारा जाता था। इसके बाद स्थितियाँ एक नई करवट ले लेती हैं। अब लेखिका न चाहते हुए भी उससे एक मेजपोश खरीद लेती है।
चीनी फेरीवाले की कहानी भी बड़ी ही मर्म स्पर्शी है। जिसे सुनाने के लिए वह बड़ा ही व्याकुल रहता है। इस वक्त उसे इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं रहती कि उसकी भाषा को कोई समझ पा रहा हैं या नहीं। वह बताता है कि उसकी माँ उसके जन्म लेते ही इसका सारा बोझ इसकी सात साल की बहन पर छोड़कर चली गई। पिता ने दूसरी शादी कर ली। इसी के साथ इन मातृहीनों की करुण कहानी आरंभ होती होती है। अभी वह पाँच साल का ही हुआ था कि एक दुर्घटना में उसके पिता भी इस संसार से चल बसे।
इसके पश्चात वह देखता है कि उसकी किशोर बहन के समक्ष विमाता द्वारा रखे गए प्रस्ताव को लेकर जब वैमनस्य बढ़ता था तो इसका बदला उससे न लेकर उसके अबोध भाई को कष्ट देकर चुकाया जाता था। उसकी बहन आस-पड़ोस से माँग-माँगकर अपना व अपने भाई का पेट भरने लगी। एक रात वह देखता है कि उसकी विमाता बहन की मैली कुचैली देह का काया पलट करने में लगी हुई है। तत्पश्चात उसे लेकर अंधकार में खो जाती है। और जब प्रातः आँख खुली तो बहन गठरी की तरह भाई के मस्तक पर मुख रखकर सिसकियाँ रोक रही थी। उस दिन से उसे अच्छा भोजन, कपड़े व खिलौने मिलने लगे बहन का संध्या होते ही कायापालट, फिर उसका आधी रात को भारी पैरों लौटने तत्पश्चात विशाल शरीर वाली विमाता का जंगली बिल्ली की तरह बिछौने से उछलकर उसके हाथों से बटुवा छीन लेना आदि क्रम चलने लगा। एक रात जब बहन घर नहीं लौटती तो वह बहन की खोज में घर से निकल पड़ता है। जगह-जगह खोजने के बावजूद उसे बहन तो नहीं मिली किन्तु स्वयं वह गिरहकटों (जेबकतरों ) के गिरोह के हाथ लग गया। यहाँ इसे जेब कतरने के सभी गुण सिखाए गए। इस दल में बर्मी, चीनी और स्यामी आदि सभी शामिल थे। जब वह यहाँ से दी गई शिक्षा को व्यवहार में लाने के लिए घर से बहर निकलता हैं तो उसकी भेंट उसके पिता के परिचित एक व्यापारी से हो जाती है। इस संयोग ने उसके जीवन की दिशा ही बदल दी। अब वह कपड़े की दुकान पर व्यापार से संबंधित गुरों को सीखने लगा। इस कला में वह इस प्रकार दक्ष हुआ कि जिसकी कल्पना कर पाना भी मुश्किल है। आज वह इस छोटी सी उम्र में ही समझ गया है कि धन संचय से संबंध रखने वाली सभी विद्याएँ एक सी हैं। कोई इसका संचय प्रतिष्ठापूर्वक कर रहा है तो कोई छिपकर।
एक दिन वह लेखिका से कहता है कि वह लड़ने के लिए चाइना जाएगा। वहाँ से बुलवा आया है। जब लेखिका ने उससे पूछा कि तुमने तो कहा था वहाँ तुम्हारा कोई नहीं है फिर बुलावा किसने भेजा तब वह बड़ी सहजता से कहता है कि हम कब बोला हमारा चाइना नहीं है ? यह सुन लेखिका स्वयं के प्रश्न पर ही लज्जित हो जाती है और उसके जाने के लिए कुछ पैसों का प्रबंध कर उसे दे देती है। चीनी फेरीवाला खुशी के मारे अपना कपड़ों से भरा गज वहीं छोड़कर चला जाता है।
इस प्रकार लेखिका ने उसके बहन को कभी नहीं देखा था किंतु चीनी फेरीवाले गज व कपड़ो को लेखिका ने उसकी निशानी के रूप में अपने घर पर सहेजकर रखा हुआ है।
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