चरित्र चित्रण के गुण बताइए। एक पात्र के चरित्र चित्रण में विभिन्न गुण विद्यमान होने चाहिए जिन्हें हम निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से समझेंगे।
चरित्र चित्रण के गुण बताइए।
एक पात्र के चरित्र चित्रण में विभिन्न गुण विद्यमान होने चाहिए जिन्हें हम निम्नांकित शीर्षकों के माध्यम से समझेंगे।
(1) अनुकूलता : इसके अनुसार पात्र को कथानक के अनुकूल होना चाहिए। जिस उपन्यास का कथानक जिस प्रकार का हो, उसी प्रकार के पात्रों का प्रणयन भी उसमे होना चाहिए। यदि उपन्यास के पात्र कथानक के प्रतिकूल होते है, तो उसमें विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि कथानक का झुकाव और विस्तार एक और रहता है और उसके पात्रो को दूसरी ओर। पात्रों के चारित्रिक विकास की दृष्टि से दोनों को एक दिशा में बढ़ना चाहिए।
(२) स्वाभाकिता : यह चरित्र-चित्रण का विशष्टि गुण है, क्योंकि किसी भी कथा कृति के पात्रोका यही गुण उसके पाठकों पर किसी प्रकार का प्रभाव डाला सकता है और उन्हें अपने विचार प्रवाह के साथ बहा ले जा सकता है। पाठक किसी पात्र की अनुभूति के प्रति तभी समवेदना रख सकेगा, जब उसकी परिस्थिति उसे विश्वसनीय प्रतीत होगी ।
(३) सप्राणता : चरित्र-चित्रण का यह गुण उसका संयुक्त गुण हैं, जो अन्य से सम्बध्द रहता है। यदि पात्र में अनुकूलता, , स्वाभाकिता आदि अन्य गुणों का अभाव नहीं होता, तभी उसमें सप्राणता की आशा भी की जा सकती है, क्योंकि यह पात्र के अनुकूल व्यक्तित्व के आधार पर निर्धारित होता है।
(४) सहृदयता - उपन्यास में पात्रों को अधिक से अधिक मानवीय होना चाहिए। उन्हें एक दूसरे के सुख-दुःख से प्रभावित होना चाहिए तथा अपने सुख-दुख में दूबरो की सहानुभूति और संवेदना की अपेक्षा रखनी चाहिए।
(५) मौलिकता - मौलिकता पात्रों का ऐसा गुण है कि जिसके अभाव में वे अनेक विशेषताओ युक्त होते हुए भी प्रभाव रहित हो सकते है। कम-से-कम प्रत्येक पात्र व्यवहार, विचार और आदर्श में मौलिकता का होना अनिवार्य है।
उपर्युक्त सभी गुणों के कारण पात्र काल्पनिक नहीं प्रतीत होते है और बे अधिक व्यावहारिक होने का भी आभास देते है। वास्तव में कलापूर्ण चित्रण ही पात्र को प्राणवान बनाता है, जिसके कारण वह पाठकों पर अपने प्रभाव डाल सकने में समर्थ होते हैं।
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