बीजगुप्त का चरित्र चित्रण: बीजगुप्त चित्रलेखा उपन्यास का नायक है। लेखक के उद्देश्य प्राप्ति का वही आधारस्तंभ है। बीजगुप्त के माध्यम से उपन्यासकार ने प
बीजगुप्त का चरित्र चित्रण - Bijgupt ka Charitra Chitran
बीजगुप्त का चरित्र चित्रण: बीजगुप्त चित्रलेखा उपन्यास का नायक है। लेखक के उद्देश्य प्राप्ति का वही आधारस्तंभ है। बीजगुप्त के माध्यम से उपन्यासकार ने पाप और पुण्य जैसी व्यापक समस्या को अपनी परम्परा से अलग हटकर एक नवीन दृष्टिकोण देने का कार्य किया है। प्रेम की पवित्रता के साथ - साथ उसमें पर्याप्त साहस भी है जिसके बल पर वह चित्रलेखा को अपनी पत्नी के रूप में सम्मान दिलवाना चाहता है।
बीजगुप्त भोगी है, उसके हृदय में यौवन की उमंग है और आंखों में मादकता की लाली। उसकी विशाल अट्टालिकाओं में भोग-विलास नाचा करते हैं। वैभव और उल्लास की तरंगों में वह केलि करता है। ऐश्वर्य की उसके पास कमी नहीं है और उसके हृदय में संसार की समस्त वासनाओं का निवास । ईश्वर पर उसे विश्वास नहीं, आमोद और प्रमोद ही उसके जीवन का साधन है तथा लक्ष्य भी है। यही कारण है कि योगी रत्नाम्बर अपने शिष्य श्वेतांक को बीजगुप्त के पास भेजा यह जानने के लिए कि “पाप क्या है?" बीजगुप्त का हृदय विशाल है, वह श्वेतांक की गुरुभाई के रूप में स्वीकार कर लेता है। बीजगुप्त “चित्रलेखा' के एक नर्तकी होने के बाद भी उससे सच्चा प्रेम करते है। समाज के विरुध्द जाकर वह चित्रलेखा को अपनी पत्नी मानता है। चित्रलेखा के लिए वह अपने विवाह का प्रस्ताव तक ठुकरा देता है चित्रलेखा भी बीजगुप्त के लिए अपने प्रेम का त्याग कर कुमारगिरि के आश्रम दीक्षित होने चली जाती है। बीजगुप्त को जब यह ज्ञात होता है तो वह चित्रलेखा को समझाने उसकी कुटी पर पहुंचता है परंतु उसे निराश होकर लौटना पड़ता है।
वह परिस्थितियों से निकलने का प्रयास करता है परंतु सफल नहीं हो पाता। अतः काशी प्रस्थान करने का निश्चय कर लेता है। अंत में यह जानकर कि उसके गुरुभाई श्वेतांक को यशोधरा से प्रेम हो गया है वह अपनी सारी धन-संपत्ति श्वेतांक को सौंप कर उन दोनों का विवाह करा देता है। चित्रलेखा के क्षमा याचना करने पर वह उसे क्षमा भी कर देता है। बीजगुप्त समाज में रहकर सभी चीजों का भोग-विलास करते हुए भी एक 'पुण्य आत्मा' है।
बीजगुप्त के चरित्र में विरोधी वृत्तियों का समन्वय स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। एक तरफ उसमें प्रेम और वासना है तो दूसरी ओर त्याग और भोग भी है। यशोधरा और श्वेतांक के सम्बन्ध में वह जिस त्याग का परिचय देता है वह उसकी महानता का परिचायक है। अपनी प्रेमिका चित्रलेखा द्वारा अनेक अक्षम्य अपराध करने के बाद भी वह उसका सम्मान करता है और उसके घर जाता है। वह दृढ विचारधारा वाला व्यक्ति है। उपन्यास के अंत में जब चित्रलेखा उसे संसार में पुनः खीचना चाहती है तो वह कहता है- मैंने वैभव छोड़ा है अपनाने के लिए नहीं, उसे सदा के लिए छोड़ने के लिए। मैं तुम्हें भी एक भिखारी के रूप में स्वीकार करना चाहता हूँ।
इस प्रकार बीजगुप्त के व्यक्तित्व में प्रेम और त्याग में जिस सात्विकता का संचार लेखक द्वारा किया गया है वही उसके व्यक्तित्व को श्रेष्ठता प्रदान करता है। उसका त्याग क्षणिक नहीं, किसी आवेश में लिया हुआ भी नहीं बल्कि जीवन के विविध अनुभवों में तपा हुआ त्याग है। सबको भोगते हुए उसने इस संसार की असारता का अनुभव किया है। सबको नश्वर मानते हुए ही वह सबका त्याग भी करता है। उसके लिए यदि जीवन में कोई वस्तु पूज्य है तो वह है सद्भावना और प्रेम और, बीजगुप्त में ये दोनों गुण स्पष्टता पूर्वक देखे जा सकते हैं। यही कारण है कि बीजगुप्त का चरित्र इस उपन्यास के पात्रों में श्रेष्ठता का हकदार कहा जा सकता है।
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