भोर हो गई कविता का भावार्थ : कवि ने नए युग की सुबह का वर्णन करते हुए कहा है कि भोर हो गई है। मलय पर्वत से शीतल हवा बहने लगी है। उस हवा के झोंकों से दी
भोर हो गई कविता का भावार्थ और उद्देश्य
कवि परिचय : नरेंद्र शर्मा छायावादोत्तर हिंदी काव्यधारा के प्रसिद्ध कवि हैं। 'भोर हो गई' कविता में कवि ने समय की महत्ता को प्रतिपादित किया है। आज हम विज्ञान के आधार पर कितनी ही प्रगति कर ले पर हम समय पर विजय नहीं प्राप्त कर सकते। कवि ने प्रकृति और मनुष्य के उदाहरण देकर समय की महत्ता को स्पष्ट करते हुए नए युग की सुबह का वर्णन किया है।
भोर हो गई कविता का भावार्थ
भोर हो गई कविता का भावार्थ : कवि ने नए युग की सुबह का वर्णन करते हुए कहा है कि भोर हो गई है। मलय पर्वत से शीतल हवा बहने लगी है। उस हवा के झोंकों से दीपक बुझ गया है। मतलब मनुष्य के जीवन का अंधकार खत्म होकर नए दिन का सूर्योदय हुआ है।
परिवर्तन सृष्टि का नियम है। हर मनुष्य के जीवन में समय सदा एक-सा नहीं होता। यह नया दिन किसी मनुष्य के जीवन में भोर (आनंद) बनकर आता है, तो किसी के जीवन में शाम । अर्थात समय किसी के लिए मरण किसी के लिए जीवन बनकर आएगा।
कवि कहता है कि दीपक और फूल से मनुष्य को कब बुझना और कब खिलना चाहिए यह सीखना चाहिए। दीपक दूसरों के जीवन का अंधकार दूर करके जलता है। उनके जीवन में प्रकाश लाता है। उसी प्रकार फूल भी अपने क्षणभंगुर जीवन में रूप रंग और गंध से दूसरों के जीवन में आनंद भर देता है। दोनों को भी मिट्टी में या सूर्य किरण में विलीन होना पड़ता है। इसी प्रकार मनुष्य ने भी जीवन का प्रत्येक दिन अंतिम मानकर दूसरों को सुख देना चाहिए।
धरती के उर में दिग्गजों को दहलानेवाला कंप होता है। समय आने पर ही वह भूकंप या ज्वालामुखी के रूप में उद्रेक करती है। इतना कंप उर (हृदय) में होने के बावजूद धरती हमें चंदन जैसी शीतल हवा, फल, फूल आदि देती है। हम मनुष्यों को भी छोटी-छोटी बातों पर गर्व न करके दूसरों को आनंद देना चाहिए।
मनुष्य सत्ता का लोभी है। एक बार हम सत्ता पर आसीन होते है तो वहाँ हटने का नाम भी नहीं लेते। अगर इस सिंहासन को कोई हिलाने की कोशिश करता है तो वे बेगुनाह लोगों के खून से होली खेलते हैं। साम-दाम-दंड भेद की नीति अपनाकर अपने सिंहासन की रक्षा करते हैं। आज भी हम इस प्रकार की राजनीति का अनुभव कर सकते है।
जब–जब मनुष्य ने समय को चुनौती दी है तब-तब मनुष्य का विनाश हुआ है। पौराणिक कथा का आधार लेकर कवि कहता है कि हिरण्यकश्यपु ने समय को चुनौती दी तो भगवान ने नरसिंह का अवतार लेकर उसका वध किया। और मनुष्य से पूछा कि समय मनुष्य का वाहन है, या मनुष्य समय का वाहन ? कवि कहते हैं कि फसल तैयार होने में छह महीने का समय लगता है। पर किसान उसे एक दिन में ही काँट लेता है। उस मेहनत करने वाले किसान के हाथ हत्यारे नहीं हैं। अगर मनुष्य का जन्म हुआ है तो एक दिन उसकी मृत्यु होने ही वाली है। किसी की मृत्यु पहले हो जाएगी तो किसी की बाद में घिरी घटा को बरसना ही है किसी भी जीव की मृत्यु अटल है।
शर्मा जी अंत में कहते हैं कि समय को छोड़कर बाकी सभी खेल खत्म हो जाते हैं। समय नश्वर हैं। हर मनुष्य का समय बदलता रहता है। दिन ढलता है, रात बीतती है और नया सवेरा होता है। यह नया सवेरा नव जीवन, नया उत्साह, नई उम्मीद लेकर अवतरित होता है।
भोर हो गई कविता का उद्देश्य
भोर हो गई कविता का उद्देश्य : इस कविता में कवि ने समय की महत्ता प्रतिपादित की है। कवि ने प्रकृति और मनुष्य के उदाहरण देकर यह समझाया है कि जब-जब मनुष्य ने समय को चुनौति दी तब-तब मनुष्य की हार हुई है। समय बलवान होता है। समय का मनुष्य पर नियंत्रण होता है
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