भीष्म साहनी की कहानियों की मूल संवेदना: 'संवेदना' शब्द आज मनोविज्ञान और साहित्य, दोनों क्षेत्रों में विशेष प्रचलित शब्द है। दोनों क्षेत्रों में इस शब्
भीष्म साहनी की कहानियों की मूल संवेदना
भीष्म साहनी की कहानियों की मूल संवेदना: 'संवेदना' शब्द आज मनोविज्ञान और साहित्य, दोनों क्षेत्रों में विशेष प्रचलित शब्द है। दोनों क्षेत्रों में इस शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ लिए जाते हैं। मनोविज्ञान में संवेदना का अर्थ – 'ज्ञानेन्द्रियों का अनुभव' ऐसा होता है। साहित्य में इस शब्द का अर्थ 'मानव-मन की गहराइयों में हिन्दी उदात वृत्तियाँ ऐसा एक विशाल अर्थ लिया जाता है यह वृत्तियाँ ही मूलतः मनुष्य की अनुभूति हैं जो ज्ञानेन्द्रियों की अनुभूतियों तक ही सीमित नहीं हैं। संस्कृत शब्दकोश में संवेदना का अर्थ-जीवन का व्यापक अनुभव, ज्ञान या अनुभूति ही संवेदना है। अतः संवेदना व्यापक अर्थ में 'अनुभूति' का भी व्यंजक शब्द है। हिन्दी शब्दकोश में डॉ. हरदेव बाहरी ने संवेदना का अर्थ – 'सुख-दुःख की अनुभूति या प्रतीति माना है।
मनुष्य मूलतः संवेदनशील प्राणी है। संवेदना मानव के अंतर्मन की सर्वाधिक पवित्र भावना है। व्यक्ति के व्यक्तिगत अनुभव को उसकी वैयक्तिक संवेदना कह सकते हैं। यदि जीवन में संवेदना न हो तो मनुष्य पाषाण हो जाता है। दूसरों के सुख-दुःख को कोमलता से महसूस करनेवाला हृदय ही न रहा तो मनुष्य के पास मनुष्य कहलाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। संवेदना मानवहृदय की अमूल्य संपदा है। संवेदना मनुष्य की पहचान है।
साहित्य की संवेदना से सीधा अभिप्राय हम उस अनुभूति से लेते हैं जो परिस्थिति विशेष में सर्जक के हृदय को द्रवीभूत करती है और परिवेश की भयावह स्थितियों को दूर करने के लिए प्रेरित करती है। मूलतः साहित्य मनुष्य की भावात्मक अभिव्यक्ति है। मनुष्य की यही भावात्मक संवेदना या मनुष्यगत संवेदना साहित्य में संवेदना कही जा सकती है। बिना संवेदना के साहित्य सृजन नहीं होता। संवेदनशील मनुष्य का ज्ञान, चिंतन, दर्शन, विज्ञान सब जीवन में आत्मसात होता है, फिर वह मानव संवेदना का अंग बनकर शक्तिशाली साहित्य के रूप में उभरता है। साहित्य मानव हृदय से सम्बन्धित होता है, क्योंकि साहित्यकार की संवेदना हृदय से निकलती है और पाठक के हृदय तक पहुँचती है। एक हृदय से दूसरे हृदय तक की इस यात्रा में संवेदना की अहम भूमिका रहती है । हृदयगत अनुभूति के विस्तार का माध्यम साहित्य है।
भीष्म साहनी संवेदनशील कहानीकार हैं। वह एक ऐसे प्रगतिशील विचारक हैं जो प्राचीन और नवीन पीढ़ी के बीच खड़े हैं। अनुभूत सत्यों को लेकर चलने वाली उनकी कहानियों में सामाजिक और वैयक्तिक स्तर पर मानवीय सम्बन्धों की पहचान व्यक्त हुई है। इनकी कहानियों के पात्र अपनी पीड़ा, अभावों और आकाक्षाओं को बखूबी छ हुए सामान्य जन के बहुत करीब पहुँच जाते हैं। इनकी कहानियाँ न सिर्फ हमें जीवन के दर्शन कराती हैं बल्कि साथ-साथ में हमें सचेत भी करती जाती हैं। हमारे भीतर दायित्व बोध की भावना को जाग्रत करती चलती हैं। हमारी अनुभूतियों को और संवेदनशील बनाती हैं। चीफ की दावत, वाङ्चू और तस्वीर अत्यधिक संवेदनशील कहानियाँ हैं। यह तीन कहानियाँ व्यक्ति को भीतर तक झंकृत करती हैं।
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