भगवतीचरण वर्मा का जीवन परिचय: भगवतीचरण वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गाँव में ३० अगस्त, सन १९०३ को हुआ था। वर्माजी ने इलाहाबाद स
भगवतीचरण वर्मा का जीवन परिचय - Bhagwati Charan Verma ka Jeevan Parichay
भगवतीचरण वर्मा का जीवन परिचय: भगवतीचरण वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गाँव में ३० अगस्त, सन १९०३ को हुआ था। वर्माजी ने इलाहाबाद से बी.ए., एवं एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपने काव्य लेखन का प्रारंभ मात्र १४ - १५ वर्ष की अवस्था में कर दिया था। छायावादोत्तर हिन्दी कविता की त्रयी में रामधारी सिंह दिनकर और हरिवंश राय बच्चन के बाद तीसरा नाम भगवतीचरण वर्मा का ही लिया जाता है। अपने प्रथम उपन्यास ‘पतन' के बाद १९३४ चित्रलेखा के प्रकाशित होने के बाद उनकी पहचान एक उपन्यासकार के रूप में भी बन गई। सन १९३६ के आस-पास उन्होंने फिल्म कॉरपोरेशन, कलकत्ता में कार्य किया। कुछ दिनों तक 'विचार' नामक साप्ताहिक का प्रकाशन, संपादन, इसके बाद बंबई में फिल्म - कथालेखन तथा दैनिक 'नवजीवन' का सम्पादन, फिर आकाशवाणी के कई केंद्रों में कार्य करते हुए सन १९५७ से वे पूर्ण रूप से लेखन कार्य से जुड़ गए और जीवन के अंतिम दिनों - सन १९८१ तक निरंतर लेखन कार्य करते रहे। उन रचना 'भूले-बिसरे चित्र' को साहित्य अकादमी प्रस्कार से सम्मानित किया गया। भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और राज्यसभा के मानद सदस्य का गौरव भी उन्हें प्राप्त हुआ।
नाम | भगवतीचरण वर्मा |
जन्म | ३० अगस्त, सन १९०३ |
पुरस्कार | पद्मभूषण |
मृत्यु | 5 अक्टूबर 1981 |
व्यवसाय | लेखक |
भगवतीचरण वर्मा जी का व्यक्तित्व भावनाप्रधान था। उन्होंने अपने जीवन के प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण मोड़ों पर अपने निर्णय भावना के आधार पर लिये, बुध्दि के आधार पर नहीं। वे स्वयं स्वीकार करते थे कि 'मैं कलाकार या साहित्यकार इसलिए बन गया कि मेरे अन्दर अपने को ठीक से अभिव्यक्त करने की प्रवृत्ति थी। मुझमें भावनात्मक अभिव्यक्ति की प्रेरणा जन्मजात थी ।' उनका प्रसिध्द उपन्यास चित्रलेखा इसी भावनात्मक अभिव्यक्ति की उपज है। उनका प्रथम उपन्यास 'पतन' (१९२८) ऐतिहासिक पर आधारित है जिसमें वाजिदअली शाह की विलासिता का वर्णन है। चित्रलेखा (१९३४) उनका दूसरा उपन्यास है। इस उपन्यास में मानव जीवन को और उसकी अच्छाइयों- बुराइयों को देखने-परखने का लेखक का एक नया दृष्टिकोण उभर कर आता है। हिन्दी में स्पष्ट व्यक्तिवादी चिंतन का प्रारंभ अनेक विद्वानों ने चित्रलेखा से ही माना है। इस रचना का उद्देश्य ही समाज की रूढ़ नैतिक मान्यताओं से असहमति कर व्यक्ति की विचारधारा को महत्त्व देना है। इस रूप में चित्रलेखा हिन्दी उपन्यास साहित्य का प्रथम व्यक्तिवादी घोषणा पत्र है जो संस्कारों के बोझ से दबी हुई दृष्टि को यह उपन्यास एक नया आकाश देता है। पाप और पुण्य के स्वरुप को स्पष्ट करने के लिए रचित इस उपन्यास में लेखक का कला कौशल और उसकी काल्पनिकता का सुन्दर समन्वय दिखाई देता है।
'चित्रलेखा' न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलाने वाला पहला उपन्यास है बल्कि हिंदी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता बराबर काल की सीमा को लाँघती रही है। चित्रलेखा की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है ? उसका निवास कहां है? इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए रत्नाम्बर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमशः सामंत बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। इनके साथ रहते हुए श्वेतांक और विशालदेव नितान्त भिन्न जीवनानुभवों से गुजरते हैं और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नाम्बर की टिप्पणी यह है कि, “संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम हैं। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।” यही निचोड़ इस उपन्यास का संदेश भी है। 'चित्रलेखा' उपन्यास पर दो बार फिल्म निर्माण हो चुका है।
भगवती चरण वर्मा की प्रमुख रचनाएं
- कहानी संग्रह- मोर्चाबंदी;
- कविता संग्रह - मधुकण, प्रेम संगीत, मानव;
- नाटक- वसीहत, रुपया तुम्हें खा गया;
- संस्मरण- अतीत के गर्भ से;
- साहित्यालोचन - साहित्य के सिध्दांत, रस;
- उपन्यास - पतन, चित्रलेखा, तीन वर्ष, टेढ़े मेढ़े रास्ते, अपने खिलौने, भूले बिसरे चित्र, वह फिर नहीं आई, सामर्थ्य और सीमा, थके पाँव, रेखा, सीधी सच्ची बातें, युवराज चूण्डा, सबहिं नचावत राम गोसाई; प्रश्न और मरीचिका, धुप्पल, चाणक्य इत्यादि।
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