आचार्य शीलभद्र का चरित्र चित्रण - आचार्य शीलभद्र का महात्मा बुद्ध में आगाध विश्वास है। वह महात्मा बुद्ध के दिखाए रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति है। बुद्ध
आचार्य शीलभद्र का चरित्र चित्रण - Acharya Sheelbhadra ka Charitra Chitran
महात्मा बुद्ध के प्रति आस्था :- आचार्य शीलभद्र का महात्मा बुद्ध में आगाध विश्वास है। वह महात्मा बुद्ध के दिखाए रास्ते पर चलने वाला व्यक्ति है। बुद्ध के लिए वह अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाला व्यक्ति है। वह बुद्ध की धरती पर भारत में रहकर जीवन का निर्वाह करने में प्रसन्न है। वह बौद्ध विहार को संवारने का पक्षधर है और इस दृष्टि से वह तन और मन से बौद्ध विहार को विकसित करने की योजनाएँ बनाता है। शीलभद्र बौद्ध बिहार के पुजारी है, इसलिए वह बौद्ध विहार के लिए तरह-तरह की योजनाओं में निमग्न रहते हैं- "सबसे ज्यादा चर्चा मन्दिर को लेकर होती है- कैसा, क्या और कहाँ! कभी पूरब में रखते हैं, कभी पश्चिम में... अन्ततः विहार के केन्द्र में एकमुखी नहीं, चतुर्मुखी! मन्दिर को चारों और राहे फूटेंगी जैसे भगवान के प्रभामण्डल से फूटती किरणें । मन्दिर को घेरकर चारों ओर परिक्रमा पथ जैसे भगवान का ज्योतिवलय हो। पथ कितने होंगे चार.?...।” शीलभद्र महात्मा बुद्ध को मन्दिर में विराजमान करने का सपना संजोता है और उसे पूरा करने के लिए वह मुख्यमन्त्री से मिलने की कोशिश में भी रहता है .....भिक्षु को पूजा-पाठ के अलावा दूसरे पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए। बस एक बार विहार खड़ा हो जाए तो सब ठीक हो जाएगा। आचार्य शीलभद्र का असली नाम 'ने-येन' था। वह मूल रूप से बर्मा के किसी लेपचा गाँव का था । बर्मा से प्रभु बुद्ध के प्रति आस्था भाव ही उसे भारत में खींच लाता है।
अहिंसा के रास्ते में चलने वाला :- आचार्य शीलभद्र अहिंसा के रास्ते पर चलने वाला है। वह वाद-विवाद में विश्वास बिल्कुल नहीं करता है। वह शान्त रहता है और सबको शान्त देखने की उम्मीद करता है। वह हिंसा से डरता है । वह किसी भी समस्या का हल बुद्ध में खोजता है। शीलभद्र अयोध्या और गुजरात के दंगों का हिंसात्मक रूप देखकर भयभीत हो जाता है। वह शान्ति का प्रचार-प्रसार करता है, लेकिन वह देखता है कि समाज में किसी भी समस्या को हिंसा का रूप देकर हल निकालने की कोशिश की जा रही है। शीलभद्र शिष्य दंगों की खबर प्रतिदिन देते रहते हैं और आचार्य शीलभद्र शिष्यों से खबरें सुनकर भयभीत होते जाते । सच्चाई को जानते हुए भी शीलभद्र खुद को सांत्वना देता रहता है- ' मन्दिर के बनते ही लौट आएँगे। भगवान के लौटते ही सारी हिंसा रूक जाएगी। ऐसा भव्य मन्दिर बनेगा कि.... ।" वह समाज का हिंसात्मक व्यवहार देखकर चिन्तित है। वह वातावरण को शान्त बनाने का पक्षधर है, लेकिन वह समाज में धर्म के नाम पर हिंसा का फैलाव देखकर भयभीत हो जाता है।
संवेदनशील :- शीलभद्र संवेदनशील पात्र है। वह दूसरों को दुःख नहीं पहुँचाता है। इस भिक्षु की रूचि केवल बौद्ध विहार का निर्माण करने की है। वह कुछ भी ऐसा कार्य नहीं करता है जो किसी दूसरे व्यक्ति के हृदय को ठेस पहुँचाये। हिंसा की आग में जल रही जनता को देख आचार्य के हृदय को ठेस पहुँचती है। वह समाज में हो रही मारकाट के प्रति उदास होता है और गाँवों के लोगों की समस्याओं को सुनकर खिन्न हो उठता है वह हर एक समस्या का निदान बुद्ध का पथ ही मानता है।
भावुक :- आचार्य शीलभद्र भावुक पात्र है। लेकिन वह शान्ति का पथ सुझाने वाला धर्म के नाम पर लड़ने वाले दंगाईयों का शिकार हो जाता है। किसी के धर्म में कोई दखलन्दाजी न करने वाला शीलभद्र दंगाईयों की भीड़ का शिकार हो जाता है। "खींचो-खींचो लुंगी खींचो। देखो यह कौन है ! किसी ने कपड़े खींचे, चीरफाड़ डाले गए। वह सब जैसे कुत्तों का हुजूम था। जो कुछ हुआ वह इतना असहनीय था कि उन्हें गश आ गया और वे गिर पड़े।" आचार्य की इस दुःखमयी स्थिति को पूरा गाँव जानकर उनके पास आता है। आचार्य जी गाँव के लोगों की सहानुभूति पाकर भावुक हो उठता है और कहता है- "कुछ भी तो नहीं किया था हमने, लेकिन पता नहीं उन्हें मुझ पर क्यों शक हुआ कि मैं स्पाई हूँ। आपबीती बताते हुए आचार्य बूँद-बूँद पिघल रहे थे।"
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