आपका बंटी की शिल्पगत विशेषताएँ- आपका बंटी उपन्यास का शिल्प सहज और सपाट है। उसमें विश्लेषण और संवाद दोनों माध्यमों से कथानक का विकास किया गया है। उपन्य
आपका बंटी की शिल्पगत विशेषताएँ - Aapka bunty ki Shilpgat Visheshtayen
आपका बंटी की शिल्पगत विशेषताएँ- आपका बंटी उपन्यास का शिल्प सहज और सपाट है। उसमें विश्लेषण और संवाद दोनों माध्यमों से कथानक का विकास किया गया है। उपन्यासकार ने अधिकतर एकालाप शैली का प्रयोग ही किया है, जिसमें बंटी अपनी मनोग्रन्थियों के भीतर आन्तरिक जीवन की यात्रा से गुजरता है। बहुत सारी भावनाएँ और प्रतिक्रियाएँ उसके अवचेतन में ही पनपती रहती हैं। इसी प्रकार उसकी ममी भी अकेले ही यातनाओं का भार ढोती हैं।
इस उपन्यास का शिल्प अधिक प्रवाहशील नहीं है, क्योंकि कथानक घटनाओं में नहीं, विचारों में चलता है। मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में यह स्वाभाविक ही है । घटनाएँ तो किसी मनोविज्ञान को उभारने के लिए ही प्रसंग का काम करती हैं, जैसे अजय और शकुन का तलाक बंटी की यातना बन जाता है और यह प्रतिक्रिया के रूप में शकुन को डॉ. जोशी से विवाह की प्ररेणा देता है। और इस विवाह के प्रति विद्रोह ही बंटी को उसकी ममी से अलग कर देता है। यहाँ तलाक एक समाजिक समस्या इसलिए नहीं है कि इसका सम्बन्ध पति-पत्नी के अहंवादी व्यक्तित्वों से अधिक है। उनकी कोशिश एक साथ रहने की नहीं, एक दूसरे को झुकाकर रखने की कोशिश है। वे आपस में 'एडजस्ट' नहीं करते पर अपने दूसरे विवाहों में 'एडजस्ट कर लेते हैं।
मनोवैज्ञानिक उपन्यास के अनुसार ही इसके शिल्प में जीवन के उन सन्दर्भों को रिफ्लेक्शन्स' के रूप में चित्रित किया गया है जो उपन्यास में प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं आये है पर जिनका आभास भर मिलता है। जैसे शकुन और अजय के पूर्व सम्बन्ध। इसी प्रकार पात्रों की मनोग्रन्थियों को व्यक्त करने के लिए आत्मदृष्टि आत्ममथन की प्रणालियों का सहारा लिया गया है। इस उपन्यास में सभी पात्रों में विशेष कर बंटी और ममी में एक भावशक्ति है। और कभी-कभी तो प्रसंग में आयी घटनाओं को भी विकारों के माध्यम से वर्तमान का रूप दिया गया है।
इसमें समूचा शिल्प पात्रों की मानसिक स्थितियों का परिचय कराने के लिए पर्याप्त है। उपन्यासकार ने वस्तुतः मानसिक दृष्टि से 'कटबैक— प्रणाली का उतना प्रयोग नहीं किया जितना कि 'इन्साइड व्यू का । बंटी अपनी मानसिक क्रिया में, अपनी आन्तरिकता का सदैव परिचय देता है ।
उपन्यास को एक ही लम्बी कहानी का रूप मानना चाहिए। केवल संख्या क्रम के मध्यवर्ती अंतर्गत से अवांतर स्थितियों को ही अलग किया गया है। वस्तुतः कथानक की अनेक स्थितियाँ जुड़कर एक बिम्ब की रचना करती हैं। शकुन और अजय के सम्बन्ध, बंटी का शकुन और अजय के बीच विभाजित व्यक्तित्व, शकुन और अजय का दोहरा समाजिक जीवन, इन सबसे मिलकर पारिवारिक विसंगति के बीच विमुक्त माँ-बाप के सन्दर्भ से कटा, बंटी का त्रासद जीवन, यह चित्र उभरता है। उपन्यास के शिल्प में इतनी सहजता है कि वह ऊपर से थोपा हुआ नहीं लगता।
यह भी माना जा सकता है कि 'आपका बंटी' उपन्यास का शिल्प कुछ है ही नहीं। यह एक शिल्पविहीन रचना है। इस भ्रम का कारण यह हो सकता है कि इस उपन्यास का शिल्प इसके कथानक से ही उभरा है और वह समूचे कथानक में फैल गया है। उपन्यासकार ने एक अनवरत मानसिक प्रवाह को अंकित करने की कोशिश की है।
उपन्यास की भाषा सपाट और सम्प्रेषणीय है। वह मन के अनुकूल, सार्थक शब्दों से नियोजित है। उसमें किस एक भाषा के शब्दों के प्रयोग का आग्रह नहीं है । अंग्रेजी के शब्द भी अनेक बार आये हैं। इस तरह उपन्यासकार ने आधुनिक मध्यमवर्गीय बौद्धिक समाज की भाषा का प्रयोग किया है।
कथा परिवेश में यह एक एकल आधुनिक परिवार की कथा है, जिसमें पति-पत्नी अपनी अधिकार भावना और व्यक्तिपरक सामाजिक चेतना के कारण एक-दूसरे से पृथक् रहते हैं। इस परिवार में इन दोनों की एक सन्तान है जो ममी के पास रहकर ममी से अनुराग की एक मनोग्रन्थि का निर्माण करती है। इसमें पापा का अभाव उसकी सामाजिक यातना का कारण बनता है। आधुनिक परिवेश में पति-पत्नी एक नए परिवार की तलाश कर लेते हैं। पत्नी के नए परिवार के साथ उसकी सन्तान का 'एडजस्टमेंट' नहीं होता । 'एडजस्टमेंट' की यह समस्या केवल बंटी तक ही सीमित नहीं है। इसके आनुवंशिकी और परिवेशगत कारण हैं। उसने पिता के गुण वंश परम्परा से प्राप्त किए हैं और वातावरण ममी के परिवेश से ले लिया है इसलिए वह न वातावरण में एडजस्ट' होता है और न स्वभाव से ही किसी संगति का निर्वाह कर पाता है। बंटी इसलिए 'नार्मल' नहीं है कि वह जिन परिस्थितियों में बड़ा हुआ है वे भी 'नार्मल' नहीं है। इसलिए उसका अपने परिवार में कोई स्थान नहीं रह पाता । और अन्त में अपनी समूची मनोग्रन्थियों के साथ होस्टल चला जाता है। उपन्यास मनोवैज्ञानिक है इसलिए पात्र केन्द्रित है, घटना केन्द्रित नहीं । "आपका बंटी" ही कथानक की रीढ़ है। वह बंटी आपका ही है । इस अर्थ में शीर्षक साभिप्राय है, क्योंकि यह कहानी एक विशेष बालक की होकर भी आज के अनेक बालकों की है। उपन्यास की पात्र रचना उतार-चढ़ाव पूर्ण नहीं है। संघर्ष और अन्तविरोध की समतल सतह की तरह पात्र 'इन्डिवीजुअल' कम है, 'टाइप' अधिक हैं।
सारांश : उपन्यास का शिल्प "काम्पेक्ट" है, क्योंकि वह कथानक से ही उभरा है। उसमें एकालाप अधिक है। सम्वाद और विश्लेषण दोनों माध्यमों का प्रयोग भी किया गया है। उपन्यास की भाषा आधुनिक समाज की भाषा है और इसीलिए उसकी सम्प्रेषणीयता का दायरा व्यापक है। कथानक संयोजन, पात्र - रचना ओर शिल्प - गठन में उपन्यासकार ने यथार्थ-वादी दृष्टि का प्रयोग किया है।
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