आहार आयोजन की परिभाषा तथा महत्व बताइए। भोजन को प्रतिदिन सुचारुरूप से पौष्टिक के सिंद्धान्तो को देखते हुए प्रस्तुत करने को ही आहार आयोजन कहते है। रुचि
आहार आयोजन की परिभाषा तथा महत्व बताइए।
आहार आयोजन की परिभाषा
भोजन को प्रतिदिन सुचारुरूप से पौष्टिक के सिंद्धान्तो को देखते हुए प्रस्तुत करने को ही आहार आयोजन कहते है। रुचिपूर्ण तैयार किया गया भोजन परिवार को संतोष, तृप्ति, तथा जीवन के समस्त सूख एवं पौष्टिकता प्रदान करता है। संतुलित आहार एवं पौष्टिक भोजन जिसमे सभी खाद्य पदार्थों को व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार आहार तालिका में सम्मिलित किया जाए, आहार नियोजन है। संतुलित एवं पौष्टिक भोजन शरीर को स्वस्थ तथा मस्तिष्क को प्रसन्नचित रखता है।
आहार आयोजन का महत्व
परिवार के सदस्यों के लिए उत्तम स्वास्थ्य करना अति आवश्यक है। आहार आयोजन का महत्त्व निम्न कारणों से है :
निर्धारित बजट में सभी के लिए संतुलित एवं रुचिकर आहार - आयोजन करते समय परिवार की निर्धारित आय की राशि को इस प्रकार खाद्य सामग्री में वितरित किया जाता है जिससे प्रत्येक व्यक्ति के उचित आहार का चुनाव संभव हो सके। आहार आयोजन में प्रत्येक व्यक्ति की रुचि तथा अरुचि को भी ध्यान में रखा जाता है। आहार आयोजन से ही प्रत्येक व्यक्ति को संतुलित आहार किया जा सकता है। आहार आयोजन के बिना परिवार की आय-व्यय का बजट असंतुलित हो सकता है।
समय, श्रम, तथा ऊर्जा की बचत - आहार आयोजन में आहार के पूर्व ही उसकी योजना बनाई जाती है | इससे समय, श्रम तथा ऊर्जा की बचत होती है। एक बार बाजार जाकर सभी समान लाया जा सकता है। प्रत्येक समय का भोजन बनाने हेतु सोचना नहीं पड़ता है की क्या बनाया जाये।
आहार में विविधता एवं आकर्षण - आहार आयोजन के द्वारा आहार में विविधता आसानी से लायी जा सकती है | आहार में सभी भोज्य वर्गों का समायोजन करने से आहार में विविधता तथा आकर्षण उत्पन्न हो जाता है |
बच्चों में अच्छी आदतों का विकास - आहार तालिका में सभी खाद्य वर्गों की सम्मिलित करने से बच्चों को भी खाद्य पदार्थों को खाने की आदत पड़ जाती है।
आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले तत्व
आहार आयोजन के सिद्धातों से परिचित होने के बावजूद ग्रहणी परिवार के सभी सदस्यों के अनुसार भोजन का आयोजन नहीं कर पाती। क्योंकि आहार आयोजन को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं-
1. आर्थिक कारक- गृहणी भोज्य पदार्थों का चुनाव अपने आय के अनुसार ही कर सकती है। चाहे कोई भोज्य पदार्थ उसके परिवार के सदस्य के लिये कितना ही आवश्यक क्यों न हो, किन्तु यदि वह उसकी आय सीमा में नहीं है तो वह उसका उपयोग नहीं कर पाती । उदाहरण- गरीब गृहणी जानते हुए भी बच्चों के लिये दूध और दालों का समावेश नहीं कर पाती।
2. परिवार का आकार व संरचना- यदि परिवार बड़ा है या संयुक्त परिवार है तो गृहणी चाहकर भी प्रत्येक सदस्य की आवश्यकतानुसार आहार का आयोजन नहीं कर पाती।
3. मौसम - आहार आयोजन मौसम द्वारा भी प्रभावित होता है। जैसे मौसम में ही उपलब्ध हो पाते हैं। जैसे गर्मी में हरी मटर या हरा चना का उपलब्ध न होना। अच्छी गाजर का न मिलना। अतः गृहणी को मौसमी भोज्य पदाथों का उपयोग ही करना चाहिये। सर्दी में खरबूज, तरबूज नहीं मिलते।
4. खाद्य स्वीकृति - व्यक्ति की पसंद नापसंद, धार्मिक व सामाजिक रीति-रिवाज आदि कुछ ऐसे कारक हैं। जो कि व्यक्ति को भोजन के प्रति स्वीकृति व अस्वीकृति को प्रभावित करते हैं। जैसे परिवारों में लहसुन व प्याज का उपयोग वर्जित है। लाभदायक होने के बावजूद गृहणी इनका उपयोग आहार आयोजन में नहीं कर सकती।
5. भोजन संबंधी आदतें - भोजन संबंधी आदतें भी आहार आयोजन को प्रभावित करती हैं। जिसके कारण गृहणी सभी सदस्यों को उनकी आवश्यकतानुसार आहार प्रदान नहीं कर पाती। जैसे- बच्चों द्वारा हरी सब्जियाँ, दूध और दाल आदि का पसंद न किया जाना।
6. परिवार की जीवन-शैली- प्रत्येक परिवार की जीवन-शैली भिन्न-भिन्न होती है। अत: परिवार में खाये जाने वाले आहारों की संख्या भी भिन्न-भिन्न होती है। जिससे आहार आयोजन प्रभावित होता है।
7. साधनों की उपलब्धता - गृहणी के पास यदि समय, शक्ति बचत के साधन हो तो गृहणी कम समय में कई तरह के व्यंजन तैयार करके आहार आयोजन में भिन्नता ला सकती है अन्यथा नहीं।
8. भोजन संबंधी अवधारणायें- कभी-कभी परिवारों में भोजन संबंधी गलत अवधारणायें होने से भी आहार आयोजन प्रभावित होता है। जैसे- सर्दी में संतरा, अमरूद, सीताफल खाने से सर्दी का होना।
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