पूस की रात कहानी की कथावस्तु और उद्देश्य पर प्रकाश डालिये? पूस की रात' की कथावस्तु ग्रामीण परिवेश में श्रमिक किसान के जीवन की विवशता से परिपूर्ण कहान
पूस की रात कहानी की कथावस्तु और उद्देश्य पर प्रकाश डालिये?
'पूस की रात' प्रेमचन्द की श्रेष्ठतम मानी जाने वाली कहानियों में से एक प्रमुख कहानी है। पूस की रात' की कथावस्तु ग्रामीण परिवेश में श्रमिक किसान के जीवन की विवशता से परिपूर्ण कहानी है। आर्थिक विषमता को इस कहानी का आधार बिन्दु कहा जा सकता है। ग्रामीण समाज के इर्द-गिर्द घूमती कथावस्तु श्रमिक वर्ग की समूची परिस्थितियों को उजागर करती है। यथार्थ को उजागर करती कहानी की कथावस्तु मानव-सभ्यता के विषम सत्यों से परिचित करवाने वाली है।
कहानी की कथावस्तु मात्र इतनी है कि हल्कू ने मजदूरी से एक-एक पैसा काट कर तीन रुपये इसलिये जमा किये थे कि वह सर्दियों में कम्बल खरीद लेगा। खेतों पर सर्दियों की रात में पहरा देने में सुविधा रहेगी। परन्तु लेनदार सहना तीन रुपये ले गया और बेचारे हल्कू को वही फटी - पुरानी चद्दर ओढ़कर पूस की ठिठुरती और तेज हवा से दहकती सर्दी वाली रात में खेत - रखवाली के लिए जाना पड़ा। सर्दी की उस रात में जबरा कुत्ता उसका साथी बना और रात भर गला फाड़-फाड़ कर भौंकता रहा और खेत में घुस आये नील गायों के झुण्ड को भगाने का प्रयत्न करता रहा परन्तु गर्म राख पर थक-हार कर सोया हल्कू जागा नहीं। सुबह उसकी पत्नी मुन्नी ने उसे जगाया तब तक सारा खेत उजड़ चुका था । मुन्नी उदास हो गई थी परन्तु हल्कू यह सोचकर प्रसन्न था कि रात की ठण्ड में यहाँ सोना तो न पड़ेगा, इतने से कथानक को हल्कू की क्रिया-प्रतिक्रियाओं और कुत्ते जबरे की प्रतिक्रियाओं द्वारा एक मार्मिक एवं प्रभावशाली कहानी की रचना की गई है। इस कहानी की कथावस्तु अत्यधिक मार्मिक है। मानवीय मूल्यों की त्रासद स्थिति पूर्ण रूप से उभर कर सामने आई है। इस कहानी की कथावस्तु को सभी प्रकार से सम्पुष्ट, सुसंगठित, सुसम्बद्ध, जिज्ञासा एवं कुतूहलवर्द्धक कहा जा सकता है।'
'पूस की रात' कहानी का मूल उद्देश्य है व्यवस्था दोष को उजागर करते हुए आम जन की निरीहता और विवशता को दिखाना। हल्कू और जबरा के क्रिया-कलाप, मुन्नी का आक्रोश और सहना का व्यवहार सभी इसी उद्देश्यमूलक तथ्य की ओर संकेत करते हैं। जबरे की मौत वस्तुतः पशुवत मनुष्य की मौत की प्रतीक है । व्यवस्था की विषमता रूपी नीति ने आम जन को शोषित होने के लिए विवश तो किया ही है दूसरी तरफ खेतों के उजड़ जाने पर हल्कू का खुश होना आम जन में व्यवस्था दोष के कारण आ गई पलायन की प्रवृत्ति को भी उजागर किया है।
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