यमुना की दुर्दशा पर दो मित्रों के बीच में संवाद लेखन कीजिए : In This article, We are providing यमुना प्रदूषण पर दो मित्रों के बीच संवाद लेखन and Yamun
यमुना की दुर्दशा पर दो मित्रों के बीच में संवाद लेखन कीजिए : In This article, We are providing यमुना प्रदूषण पर दो मित्रों के बीच संवाद लेखन and Yamuna Nadi Ki Durdasha Par Do Mitro ke Beech Samvad Lekhan for Students and teachers.
यमुना की दुर्दशा पर दो मित्रों के बीच में संवाद
पहला मित्र : मित्र देखो, हमारी यमुना कितनी गंदी और दूषित हो चुकी है।
दूसरा मित्र : हाँ मित्र, लेकिन यमुना के ये हालात एक दिन के नहीं बल्कि पिछले दो दशक से यमुना प्रदूषित हो रही है।
पहला मित्र : एक के बाद एक कई नाले यमुना में गिरते हैं। जिससे इसका पानी नाले के पानी के समान काला हो जाता है।
दूसरा मित्र : हाँ मित्र,नालों की गंदगी से न केवल यमुना का पानी दूषित होता है बल्कि उसमें दुर्गंध भी आने लगती है।
पहला मित्र : यमुना के पानी पर प्रदूषण की सफेद चादर इस झाग के रूप में तैरती रहती है।
दूसरा मित्र : सरकार द्वारा यमुना की सफाई के लिये कितनी योजनायें बनती रहती हैं कि लेकिन कोई फायदा नही होता।
पहला मित्र : सरकारी लालफीताशाही के कारण सारी योजनायें सफल नही हो पाती और कागज पर रह जाती हैं।
दूसरा मित्र : हाँ ये बात तो सही है।
पहला मित्र : पता नही हमारी यमुना कब तक साफ होगी।
दूसरा मित्र : हर नदी चाहे वो कितनी भी प्रदूषित क्यों न हो, साल में एक बार बाढ़ के वक्त खुद को फिर से साफ़ करके देती है, पर इसके बाद हम फिर से इसे गंदा कर देते है, तो हमें नदी साफ़ करने की बजाय इसे गंदा करना बंद करना पड़ेगा।
यमुना प्रदूषण पर दो मित्रों के बीच संवाद लेखन
संजय : नमस्कार भाई साहब, शायद आप दिल्ली के बाहर से आए हैं।
कमल : नमस्कार भाई, ठीक पहचाना तुमने, मैं हरियाणा से आया हूँ।
संजय : मैं भी अलवर से आया हूँ। तुम यहाँ कैसे?
कमल : दिल्ली आया था। सोचा सवेरे-सवेरे यमुना में स्नान कर लेता हूँ पर
संजय : कल मेरा यहाँ साक्षात्कार था और आज कुछ और काम था। मैं भी यहाँ स्नान के लिए आया था।
कमल : इतनी गंदी नदी में कैसे नहाया जाए?
संजय : मैंने भी यमुना का बड़ा नाम सुना था, पर यहाँ ती उसका उल्टा निकला।
कमल : इसका पानी तो काला पड़ गया है।
संजय : फैक्ट्रियों और घरों का पानी लाने वाले कई नाले इसमें मिल जाते हैं न।
कमल : देखो, वे सज्जन फूल मालाएँ और राख फेंककर पुण्य कमा रहे हैं।
संजय : इनके जैसे लोग ही तो नदियों को गंदा करते हैं।
कमल : सरकार को नदियों की सफ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।
संजय : केवल सरकार को दोष देने से कुछ नहीं होने वाला। हमें खुद सुधरना होगा।
कमल : ठीक कहते हो। यदि सभी ऐसा सोचें तब न।
संजय : यहाँ की शीतल हवा से मन प्रसन्न हो गया। अब चलते हैं।
कमल : ठीक कहते हो। अब हमें चलना चाहिए।
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