घायल सैनिक की आत्मकथा हिंदी निबंध : In This article, We are providing घायल सैनिक की आत्मकथा हिंदी निबंध and Ek Ghayal Sainik ki Atmakatha Hindi Niband
एक घायल सैनिक की आत्मकथा हिंदी निबंध : In This article, We are providing एक घायल सैनिक की आत्मकथा हिंदी निबंध and Ek Ghayal Sainik ki Atmakatha Hindi Nibandh / Essay for Students and teachers.
एक घायल सैनिक की आत्मकथा हिंदी निबंध
मैं एक घायल सैनिक हूं। एक सैनिक के रूप में मेरी आत्मकथा बड़ी ही रोचक है। मैं अपने देश की सुरक्षा करते-करते घायल हो गया हूं लेकिन मुझे गर्व है मैंने रणभूमि में दुश्मन सेना के दांत खट्टे किये। दुश्मन देश के सैनिक हमारे देश की भूमि पर आक्रमण कर रहे थे मैंने अपनी जान की बिल्कुल भी परवाह नहीं की और उनसे मुकाबला करके उनको भगा दिया भले ही इसमें मैं घायल हो गया हूं लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मैं देश के लिए अपने आपको समर्पित समझता हूं.
मैं जब छोटा था तभी से मैं एक सैनिक के रूप में देश को अपनी सेवाएं देना चाहता था। मेरे परिवार का सेना से गहरा रिश्ता रहा है। मेरे बड़े भाई साहब, मेरे पिताजी और दादा जी सभी ने भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी हैं। मेरे दादा जी ने 1971 का इंडो-पाकिस्तान वॉर में हिस्सा लिया था। वे मानते थे कि युद्ध हमेशा जीतने के लिए लड़ना चाहिए। उनके अनुसार एक सैनिक के लिए युद्ध में वीरगति सर्वश्रेष्ठ बलिदान है, लेकिन युद्ध में जीतना देश की सबसे बड़ी सेवा होती है। उनके विचारों ने ही हमारे परिवार में सभी को सेना में शामिल होने की प्रेरणा दी।
एक विद्यार्थी के रूप में हम सभी के कुछ सपने होते हैं। कोई भविष्य में डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर या बड़ा व्यापारी। एक बालक के रूप में मैं हमेशा यही सोचा करता था कि एक दिन मैं भी सैनिक बनकर अपना जीवन देश को समर्पित करूँगा। मैं कभी भी युद्ध में पीठ नहीं दिखाऊंगा। चूँकि मेरा जन्म एक सैनिक परिवार में हुआ था इसलिए मेरी पढ़ाई भी सैनिक स्कूल में ही हुई। जब मैं बड़ा हुआ तो मैंने एनसीसी ट्रेनिंग में भी हिस्सा लिया जिससे मुझे एक बेहतर सैनिक बनने में मदद मिली। मैं अपने आपको बहुत ही खुशनसीब समझता हूं की मैं आज देश का सैनिक बन पाया।
मैंने स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही मैंने एनडीए की तैयारी शुरू कर दी। रोजाना शाम को 5 किलोमीटर की दौड़ का अभ्यास मेरी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा था। मैंने पुलिस की परीक्षा भी निकाली परन्तु मैं एक सैनिक बनना चाहता था इसलिए उसे ज्वाइन नहीं किया। आखिरकार वह दिन आया जब मैंने एनडीए की परीक्षा उत्तीर्ण की और मुझे एसएसबी का बुलावा आया। अंततः मैं एक लेफ्टिनेंट के रूप में सेना में शामिल हुआ। जब मैं सैनिक बना तो मुझे बहुत खुशी हुई थी क्योंकि मैं अपने पिताजी और दादाजी की की तरह अपने देश के लिए कुछ कर सकता था। मेरे मन में सदैव एक ही बात थी कि चाहे देश की सुरक्षा करते-करते मैं शहीद हो जाऊं लेकिन अपने देश पर आंच न आने दूंगा।
जब मैं एक सैनिक के रूप में घर वापस लौटा तो मेरे परिवार का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। परिवार से विदाई के समय मैं भावुक हो गया परन्तु पिता जी नई मुझे परिवार की परंपरा को आगे बढ़ने की हिम्मत दी। उन्होंने मुझे सीख दी की एक सैनिक के लिए देश ही उसका परिवार होता है। और अब इस परिवार की जिम्मेदारी मुझ पर थी। वह भी चाहते थे कि मैं अपने देश की सुरक्षा करु।
एक सैनिक एक रूप में मेरी जगह-जगह पोस्टिंग हुयी। कुछ साल मैं जम्मू-कश्मीर में भी तैनात रहा। फिर मेरी पोस्टिंग राजस्थान में हुयी। तत्पश्चात मेरी पोस्टिंग अरुणाचल प्रदेश में हुयी। एक दिन खबर आयी कि चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश की कुछ भूमि पर अवैध कब्ज़ा करके बस्ती बना ली है। उसका मुकाबला करने के लिए हमारी डिवीजन को वहाँ भेजा गया। जैसे ही हम वहां पहुंचे, चीनी सेना ने हमारी डिवीजन पर हमला कर दिया। हमें आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित हजारों चीनी सैनिकों का सामना करना था। मैंने उस दिन अपने प्राण हथेली पर रखकर अकेले करीब पच्चीस सैनिकों का काम तमाम कर दिया। हालाँकि इस लड़ाई में हम विजयी रहे और चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा, परन्तु इस लड़ाई में मैं बुरी तरह घायल हो गया।
जब मेरे बीवी बच्चे, बूढ़े मां बाप को जब ये पता लगेगा तो दुख अवश्य होगा होगे कि मैं घायल हो गया हूं। परन्तु मुझे इस बात की ख़ुशी है कि घायल होकर भी मैं अपनी भारत माँ की रक्षा करने में सफल रहा। मैं अपने पूरे देशवासियों से बस यही कहना चाहूंगा की भले ही एक सैनिक बॉर्डर पर लड़ता हो परन्तु देश का हर एक नागरिक भी एक सैनिक ही है इसलिए जरुरत पड़ने पर सदैव अपने देश की रक्षा के लिए तत्पर रहना। और यदि मुझे कुछ हो जाये तो दुखी मत होना क्योंकि भला इससे श्रेष्ठ और क्या होगा कि एक पुत्र अपनी माँ की रक्षा करते हुए शहीद हो। प्रेम से बोलो वंदे मातरम्! भारत माता की जय!
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