अनुशासन का महत्व पर निबंध लिखें : In This article, We are providing छात्रों में अनुशासनहीनता पर निबंध, विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध and Anushasan ka
अनुशासन का महत्व पर निबंध लिखें : In This article, We are providing छात्रों में अनुशासनहीनता पर निबंध, विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध and Anushasan ka Mahatva Essay in Hindi for Students and teachers.
अनुशासन का महत्व पर हिंदी निबंध
Anushasan ka Mahatva Essay in Hindi छात्र जीवन में अनुशासन बहुत आवश्यक है। अनुशासनयुक्त वातावरण बच्चों के विकास के लिए नितांत आवश्यक है। बच्चों में अनुशासनहीनता उन्हें आलसी व कामचोर और कमज़ोर बना देती है। वे अनुशासन में न रहने के कारण बहुत उद्दंड हो जाते हैं। इससे उनका उचित विकास नहीं हो पाता। एक बच्चे के लिए यह उचित नहीं है। अनुशासन में रहकर साधारण से साधारण बच्चा भी परिश्रमी बुद्धिमान और योग्य बन सकता है। समय का मूल्य भी उसे अनुशासन में रहकर समझ में आता हैए क्योंकि अनुशासन में रहकर वह समय पर अपने हर कार्य को करना सीखता है। जिसने अपने समय की कद्र की वह जीवन में कभी परास्त नहीं होता है।
छात्रों को अनुशासन सिखाना शिक्षक का दायित्व है। कक्षा में ध्यान न देने, पढ़ाई में ठीक न होने या कक्षा और स्कूल में अनुपस्थित रहने पर किसी छात्र को डांटना कोई असामान्य बात नहीं है। अनुशासन शिष्यों का एक महत्त्वपूर्ण गुण माना गया है। अनुशासन के बिना शिष्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पहले शिष्य सहनशील, गुरु का सम्मान करने वाला एवं आज्ञाकारी होता था। आज छात्र ऐशो आराम व सुखमय जीवन जीना चाहते हैं।अध्यापकों द्वारा उन्हें अच्छे के लिए डाँटना भी उन्हें बुरा लगता है और वे बहस करने लग जाते हैं। कुछ अभिभावक भी अपने बच्चों का पक्ष लेकर उन्हें बिगाड़ रहें हैं। छात्रों में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है।
व्यक्तित्व विकास में अनुशासन की अनुपालना उतनी ही उपयोगी है, जितनी हमारे जीवन के लिए प्राणवायु-आक्सीजन की उपयोगिता है। अनुशासन का सीधा सा अर्थ हैं-नियमों का सम्मान करते हुए जीवनयापन करना। अनुशासन की बंदिशें हमें जीवन में नीचे की ओर ले जाने के स्थान पर, ऊंचाइयों को छूने में सहायक होती हैं। अनुशासन के अभाव में हमारा व्यक्तित्व वैसे ही बिखर कर रह जाता है जैसे किनारों के बीच बहने वाली नदी किनारों से बाहर होकर बहने से अपने व्यक्तित्व को खो देती है।
आज के भागदौड़ वाले जीवन में माता पिता के पास बच्चों की देखभाल के लिए पर्याप्त समय नहीं है। बच्चे घर में नौकरों या क्रैच में महिलाओं द्वारा संभाले जा रहे हैं। माता पिता की छत्र-छाया से निकलकर ये बच्चे अनुशासन में रहने के आदि नहीं हैं। विद्यालयों का वातावरण भी अब अनुशासनयुक्त नहीं है। इसका दुष्प्रभाव यह पड़ रहा है कि बच्चों के अंदर अनुशासनहीनता बढ़ रही है। वह उद्दंड और शैतान हो रहे हैं। दूसरों की अवज्ञा व अवहेलना करना उनके लिए आम बात है। परिवार के छोटे होने के कारण भी बच्चों की देखभाल भलीभांति नहीं हो पा रही है। माता-पिता उनकी हर मांग को पूरा कर रहे हैं। इससे छात्रों में स्वच्छंदता का विकास होने लगा है और वे अनुशासन से दूर होने लगे हैं। अनेक आपराधिक व असभ्य घटनाओं का जन्म होने लगा है। अल्पवयस्क छात्र-छात्राएं अनेक गलत कार्यों में संलग्न होने लगे हैं।
अत: हमें चाहिए कि बच्चों को प्यार व दुलार के साथ अनुशासन में रखें। जैसा कि कहा भी गया है कि "अति की भली न वर्षा, अति की भली न धूप" अर्थात अति हमेशा खतरनाक एवं नुकसानदेह होती है। इसलिए अभिभावकों को बच्चों के साथ सख्ती के साथ-साथ बच्चों को समझाना चाहिए। शिक्षकों का सही मार्गदर्शन भी छात्र-छात्राओं में नैतिक एवं भावनात्मक बदलाव तथा जागृति लाता है। अभिभावको तथा शिक्षकों का संयुक्त योगदान बच्चों के विकास हेतू आवश्यक है।
हमारे जीवन मे 'अनुशासन' एक ऐसा गुण है, जिसकी आवश्यकता मानव जीवन में पग-पग पर पड़ती है। इसका प्रारंभ जीवन में बचपन से ही होना चाहिये ओर यही से ही मानव के चरित्र का निर्माण हो सकता है। अनुशासन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है - अनु और शासन। विशेष रूप से अपने ऊपर शासन करना तथा शासन के अनुसार अपने जीवन को चलाना ही अनुशासन है। अनुशासन राष्ट्रीय जीवन का प्राण है। यदि प्रशासन, स्कूल समाज, परिवार सभी जगह सब लोग अनुशासन में रहेंगे और अपने कर्त्तव्य का पालन करेंगे, ज़िम्मेदारी समझेंगे तो कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी या अशांति नहीं होगी।
देश के सुरक्षा-बल व सेना की गिनती कड़े अनुशासन के कारण ही विश्व के प्रमुख संगठनों में होती है। बेहतर अनुशासन के कारण ही निजी क्षेत्र की कुछ कम्पनियाँ श्रेष्ठ संस्थाओं के सशक्त उदाहरण हैं। प्रकृति में प्रतिदिन घटित होने वाली विभिन्न घटनाएं जहाँ अनुशासन के उदहारण हैं, वहीं बाढ़, अकाल, भूकंप, भारी बर्फबारी व प्रलय जैसे भारी विनाशक घटनाएं प्रकृति में बिगड़ते अनुशासन के उदाहरण हैं। अत: बच्चों को संयत व अनुशासित जीवनशैली को अपनाकर जीवन के लक्ष्य को सुगमता से पाने का प्रयास करना चाहिए।
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