खिड़की और दरवाजे में संवाद लेखन : In This article, We are providing "खिड़की और दरवाजे में संवाद", "Khidki aur Darwaje ka Samvad" and Conversation Betw
खिड़की और दरवाजे में संवाद लेखन : In This article, We are providing "खिड़की और दरवाजे में संवाद", "Khidki aur Darwaje ka Samvad" and Conversation Between Door and Window in Hindi for Students and teachers.
खिड़की और दरवाजे में संवाद लेखन
खिड़की - वाह! क्या बात है दरवाज़े भाई ? आजकल बड़ी शोर मचा रहे हो।
दरवाजा - क्या कहूँ बहन, खुलते बंद होते मेरे तो कब्ज़े हिल गए हैं। दर्द से चीख निकल जाती है।
खिड़की - कल तक तो आप ठीक थे।
दरवाजा - बहन क्या कहूँ, यह सब नटखट बच्चे की करतूत है। इतनी जोर से धक्का मुझे मारा कि मैं सर से पाँव तक हिल गया और बड़े जोर की चोट आई।
खिड़की - बच्चा है भाई! क्या करोगे?
दरवाजा - अरे, मेरा क्या दर्द कम होगा और किसे परवाह है मेरे दर्द की ?
खिड़की - भैया, तुम तो लगता है ज्यादा ही बुरा मान गए।
दरवाजा - बुरा मानने की बात ही है।
खिडकी - हिम्मत रखो। सब ठीक हो जाएगा।
Khidki aur Darwaje ka Samvad Lekhan
खिड़की - दरवाजे भैया, क्या बात है आज तो आपको बात करने की फुर्सत नहीं है।
दरवाजा - क्या बताऊँ, सुबह से ये रंग-रोगन वालों ने परेशान कर रखा है।
खिड़की - अरे भाई, ऐसा क्यों बोल रहे हो? इससे आप चमक उठोगे।
दरवाजा - हर साल ये लोग मेरा रंग बदल देते हैं। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। तुम क्या सोचते हो?
खिड़की - मुझे तो अच्छा लगता है। कम से कम हर साल नए तो लगने लगते हैं। जो बात नए पेंट में आती है वह पुराने दरवाजों में कहां आएगी।
दरवाजा - वैसे तो तुम ठीक ही कह रहो हो। बस मैं यह चाहती हूं कि एक बार पेंट करवाने से पहले मुझसे यह जरूर पूछ लें कि मुझे कौन सा रंग पसंद है। ऐसा करने से वह भी खुश और मैं भी।
Khidki aur Darwaje ka Samvad - 2
खिड़की : भैया, क्या बात है? आप बहुत थके दिख रहे हो ।
दरवाजा : ओहो! क्या बताऊँ बहन. अभी तो त्यौहार के दिन हैं न, सुबह-शाम, बच्चे मुझे इधर से उधर, उधर से इधर, धड़-धड़ कर मार के खेल रहे हैं। मुझे तो बहुत दर्द हो रहा हैं।
खिड़की : हाँ भैया। ये तो सही है, कभी कभार थोड़ा बहुत मुझ पर भी कूद पड़ते हैं। मुझे भी थोड़ा दर्द सहनाता हैं। लेकिन बच्चे इस तरह से घर में उछलते कूदते तो कितना अच्छा लगता है और उन्हें ख़ुशी देख कर, मैं तो अपना दर्द भूल जाती हूँ।
दरवाजा : हाँ बहन, तुमने तो ठीक ही कहा। बच्चों को इस तरह उछलते कूदते देख कर बहुत ही अच्छा लगता है।
Conversation Between Door and Window in Hindi
दरवाजा : नमस्ते खिड़की बहन!
खिड़की : नमस्ते भाई साहब!
दरवाजा : कैसी हो?
खिड़की : मैं ठीक हूँ। आप सुनाओ।
दरवाजा : ठीक ही हूँ। पिछले हफ्ते मुझ पर दीमक ने हमला बोल दिया था। और मुझे खोखला करने लगे थे।
खिड़की : हाँ, मैंने देखा आपको। अब आप कैसे हैं।
दरवाजा : बच गया। मैं खुद को बड़ा ही बेबस महसूस कर रहा था। अपनी बेबसता किसी को बता भी तो नहीं सकता था।
खिड़की : हम्म
दरवाजा : लेकिन अच्छा हुआ कि, घर के मालिक को इस बात का बता चल गया और उन्होंने तुरंत पेस्ट कंट्रोल वालों को बुलाया और दवा का छिड़काव करवाया। दवा बहुत ही कड़वा थी। लेकिन मुझे आराम मिला।
खिड़की : हाँ। सही समय पर इसका इलाज होना ज़रूरी है। मुझ पर भी दवा छिड़काई गई। और मैं भी बच गई। अब काफी दिन तक यह दीमक हमें परेशान नहीं करेंगे।
दरवाजा : सच कहा बहन, अगर हम नहीं होंगे तो इस घर का कोई महत्व ही नहीं है। चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं।
खिड़की का दरवाजे से संवाद
खिड़की : (दरवाज़े का मज़ाक बनाते हुए) दरवाजे भाई तुम इतने बड़े हो फिर भी लोग तुम्हें ठोकर मारते हैं। मैं छोटी सी हूं फिर भी लोग मेरा उपयोग बड़े प्यार से करते हैं। मेरे झरोखे में से चांद को देखते हैं। छत की सुंदरता को देखते हैं ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते हैं। बारिश के दिन में बौछारों का मजा भी यहीं से लेते हैं। एक तुम हो जो सबकी ठोकरों में पड़े रहते हो।
दरवाज़ा : खिड़की बहन इतना घमंड करना अच्छी बात नहीं है। मैं लोगों की ठोकर में अवश्य हूं परंतु तुम तक पहुंचने का मार्ग मेरे में से होकर ही जाता है।
खिड़की : अच्छा फिर यह बताओ जब तुम्हारे खुले बिना लोग अंदर नहीं जा सकते तो वे तुम्हें धक्का क्यों देते हैं?
दरवाजा : क्योंकि मेरे खुलने का यही तरीका है। पर कई बार मुझे बहुत तेज़ी से धकेलने पर मुझे दर्द भी होता है।
खिड़की : हां होता होगा पर लोगों को इसका अंदाजा नहीं है वे तो हमें निर्जीव भी समझते हैं।
दरवाजा : सही कहती हो तुम। यही मेरी नियति है।
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