बेरोजगारी का समस्या को लेकर दो मित्रों के बीच संवाद लेखन : In This article, We are providing दो मित्रों के बीच बेरोजगारी का समस्या को लेकर संवाद and B
बेरोजगारी का समस्या को लेकर दो मित्रों के बीच संवाद लेखन : In This article, We are providing दो मित्रों के बीच बेरोजगारी का समस्या को लेकर संवाद and Berojgari par Do Mitro Ke Beech Samvadfor Students and teachers.
बेरोजगारी का समस्या को लेकर दो मित्रों के बीच संवाद लेखन
रमेश : मैं “इंडिया में बेरोजगारी की समस्या” पर “द इंडियन टाइम्स” में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण लेख पढ़ रहा हूँ।
मुकेश : यह अब एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। लेकिन हमारे राजनीतिक नेता इसके बारे में परेशान नहीं करते हैं।
रमेश : हाँ, आप सही हैं। लगभग 90 लाख स्नातक बेरोजगार हैं। यह मैनपावर की गंभीर बर्बादी है।
मुकेश : लेकिन इसका कारण क्या है?
रमेश : आप जानते हैं कि अधिकांश बेरोजगार व्यक्ति अकुशल हैं।
मुकेश : हमें उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए एक व्यवस्था करनी चाहिए।
रमेश : हां, हमें अपनी सामान्य शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।
मुकेश : तकनीकी शिक्षा प्रदान करके हम अपनी जनसंख्या को मानव संसाधन में बदल सकते हैं। उस स्थिति में, यदि किसी को नौकरी नहीं मिलती है, तो वह स्व-रोजगार करने में सक्षम होगा।
रमेश : हाँ, आप सही हैं। हमें सामान्य और तकनीकी शिक्षा के बारे में अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। हमें सामान्य शिक्षा के बजाय तकनीकी शिक्षा और तकनीकी कौशल को प्रोत्साहित करना चाहिए।
मुकेश : इसके अलावा, हमारी सरकार को बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन करना चाहिए।
रमेश : आपके सुझाव और राय बहुत यथार्थवादी हैं। मैं इसकी सराहना करता हूं।
मुकेश : बहुत-बहुत धन्यवाद।
रमेश : सबसे स्वागत है।
दो मित्रों के बीच बेरोजगारी का समस्या को लेकर संवाद लेखन
सुनील : अंकुश क्या करे भाई, बेरोजगारी की समस्या बढ़ती ही जा रही है।
अंकुश : हां यार, क्योंकि सरकार हमारे लिए कुछ कर नहीं रही है। का ध्यान हमारी ओर जा ही नहीं रहा। सरकार सिर्फ अपना जेबखर्च भर रही है।
सुनील : बस डिग्री ले के घर पे ही कितना समय हो गया।
अंकुश : हाँ यार मुझे भी सब पूछते है शर्म आती घर पे रह के।
सुनील : सरकारी नौकरी की परिक्षा में भी घोटाला होता है। घर पर सब समझते नहीं बस सुनाते रहते हैं।
अंकुश : मैं न थक चुका हूं और परेशान हो गया हूं, इतना पढ़ लिख के भी घर पे बेले है।
सुनील : मैं भी।
अंकुश : हम कब तक निराश होते रहेंगे।
सुनील : वहीं तो समझ नहीं आ रहा।
अंकुश : पता नहीं कब यह समस्या हल होगी और हमारी चिंता दूर होगी।
सुनील : चिंता करने से कुछ नहीं होना कुछ अपना करने का सोचते है।
बेरोजगारी की समस्या पर दो दोस्तों के मध्य संवाद
रमन : यार ये बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है ।
सुमित : हाँ यार , कितने ही फॉर्म भर चुका हूँ , और बहुत पेपर भी दिए हैं परन्तु कम्पटीशन इतना बढ़ चुका है कि 1 पोस्ट के लिए 1000 -2000 तक आवेदन पत्र आ जाते हैं और बात फिर वही की वही रह जाती है।
रमन : हाँ ये बात तुम्हारी बिलकुल सही है। पर बात यह नहीं है कि नौकरियों की कमी है बल्कि समाज में जो प्राइवेट और सरकारी नौकरी के मापदंडों में जो फर्क है उस वजह से बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। अगर प्राइवेट और सरकारी क्षेत्र में एक जैसा वेतन और सुविधाएं मिले तो बेरोजगारी बहुत हद तक ख़तम हो जाएगी।
सुमित : हाँ यार , ये तो मैंने सोचा ही नहीं, बहुत सही सोच है कि वाक्य ही अगर ये डिफरेंस ख़तम हो जाए तो समाज का बहुत सुधर हो जाएगा।
Berojgari par Do Mitro Ke Beech Samvad
रमेश : बेरोजगारी की समस्या बढ़ती ही जा रही है।
मुकेश : हां, क्योंकि सरकार का ध्यान हमारी ओर जा ही नहीं रहा। सरकार सिर्फ अपना जेबखर्च भर रही है।
रमेश : सरकार की नौकरी की परिक्षा पर भी घोटाला। घर पर सब समझते नहीं बस कोसते हैं।
मुकेश : मैं न थक चुका हूं अब इस रोजमर्रा के जीवन से।
रमेश : मैं भी।
मुकेश : हम कब तक निराश होते रहेंगे।
रमेश : वहीं तो समझ नहीं आ रहा।
मुकेश : अच्छे दिन के नाम पर बस उम्मीद लगा कर बैठे ही हुए हैं।
रमेश : पता नहीं कब यह समस्या हल होगी और हमारी चिंता दूर होगी
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