प्रजाति का अर्थ, परिभाषा और वर्गीकरण - प्रजाति एक प्राणिशास्त्रीय अवधारणा है। यह वह समूह है जो कि शारीरिक विशेषताओं का विशिष्ट योग धारण करता है। प्रजा
प्रजाति का अर्थ, परिभाषा और वर्गीकरण
प्रजाति जैविक अवधारणा है जिसका प्रयोग सामान्यतः उस वर्ग के लिए किया जाता है जिसके अन्दर सामान्य गुण हैं अथवा कुछ गुणों द्वारा शारीरिक लक्षणों में समानता पाई जाती है। प्रमुख विद्वानों ने प्रजाति की परिभाषा निम्न प्रकार से की है
(1) प्रजाति एक प्राणिशास्त्रीय अवधारणा है। यह वह समूह है जो कि शारीरिक विशेषताओं का विशिष्ट योग धारण करता है। - होबेल (Hoebel)
(2) प्रजाति व्यक्तियों का वह समूह है जिसके कुछ वंशानुक्रमण द्वारा निर्धारित सामान्य लक्षण हैं। - रेमण्ड फिर्थ
(3) प्रजाति पैतृकता द्वारा प्राप्त लक्षणों पर आधारित एक वर्गीकरण है। - बेनेडिक्ट (Benedict)
(4) प्रजाति एक प्रमाणित प्राणिशास्त्रीय अवधारणा है। यह वह समूह है जो कि वंशानुक्रमण, नस्ल या प्रजातीय गुणों या उपजातियों के द्वारा जुड़ा है। - क्रोबर
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि प्रजाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जिसे आनुवंशिक शारीरिक लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है।
प्रजाति की विशेषताएं
- प्रजाति का अर्थ जन-समूह से होता है। अतः इसमें पशुओं की नस्लों को सम्मिलित नहीं किया जाता है।
- इस मानव समूह से तात्पर्य कुछ व्यक्तियों से नहीं है वरन् प्रजाति में मनुष्यों का बृहत् संख्या में होना अनिवार्य है।
- इस मानव समूह में एक-समान शारीरिक लक्षणों का होना अनिवार्य है। ये लक्षण वंशानक्रमण के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते रहते हैं। शारीरिक लक्षणों के आधार पर इन्हें दूसरी प्रजातियों से पृथक् किया जाता है।
- प्रजातीय विशेषताएँ प्रजातीय शुद्धता की स्थिति में अपेक्षाकृत स्थायी होती हैं अर्थात भौगोलिक पर्यावरण के बदलने से भी किसी प्रजाति के मल शारीरिक लक्षण नहीं बदलते हैं।
भारत की प्रमुख प्रजातियां
भारत में अनेक प्रजातियों के लोग निवास करते हैं। सर्वप्रथम रिजले ने भारत में प्रजातीय तत्त्वों का अध्ययन किया तथा बाद में हट्टन, गुहा, मजूमदार, सरकार इत्यादि विद्वानों ने भारत में पाई जाने वाली प्रजातियों के अध्ययन में विशेष रुचि दिखाई। भारत में कितनी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, इसके बारे में विद्वानों में सहमति नहीं है। प्रमुख विद्वानों का वर्गीकरण निम्न प्रकार है
(अ) रिजले का वर्गीकरण
रिजले ने भारतीय जनसंख्या में निम्नलिखित प्रजातियों के तत्त्वों का उल्लेख किया है
(1) द्रावेडियन -यह प्रजाति भारत की सबसे प्राचीन प्रजाति मानी जाती है। यद्यपि यह प्रजाति अब स्वतन्त्र रूप में तो विद्यमान नहीं है परन्तु इसके कुछ लक्षण कहीं-कहीं पर देखे जा सकते हैं। इस प्रजाति के लोग अधिकतर मद्रास, हैदराबाद, मध्य प्रदेश तथा नागपुर में पाए जाते हैं। इस प्रजाति के लोगों के बाल अर्द्ध-गोलाकार लटों में विभजित ऊनी से होते हैं। इनके सिर चौड़े, होंठ मोटे, नाक चौड़ी तथा गहरे काले रंग की त्वचा होती है।
(2) मंगोलॉयड -इस प्रजाति के लोग अधिकतर हिमालय के मैदानों, असम तथा नेफा में पाए जाते हैं। मंगोलॉयड प्रजाति के प्रमुख लक्षणों में छोटी नाक, मोटे होंठ, लम्बे एवं चौड़े सिर, चपटा चेहरा, पीले या भूरे रंग की त्वचा आदि हैं।
(3) मंगोल-द्रावेडियन -इस प्रजाति के लोग अधिकतर बंगाल तथा उडीसा में पाए जाते हैं।
(4) आर्यो-द्रावेडियन -उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा बिहार में इस प्रजाति के लोग देखे जा सकते हैं।
(5) साइथो-द्रावेडियन -इस प्रजाति के लोग मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र में पाए जाते हैं।
(6) इण्डो-आर्यन -इस प्रजाति के अधिकांश लोग पंजाब, कश्मीर तथा राजस्थान में पाए जाते हैं।
(7) तुर्को-इरानियन -इस प्रजाति के लोग उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त में पाए जाते हैं।
(ब) गुहा का वर्गीकरण
गुहा के अनुसार भारत में निम्न प्रजातियों के तत्त्व देखे जा सकते हैं
- नीग्रीटो (Negrito),
- प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड (Proto-Australoid),
- मंगोलॉयड (Mongoloid):
- पेली मंगोलॉयड (Palaeo Mongoloid)
- लम्बे सिर वाले (Long headed)
- चौड़े सिर वाले (Broad headed)
- तिब्बती मंगोलॉयड (Tibeto-Mongoloid)
- भूमध्यसागरीय या मेडिटरेनियन (Mediterranean):
- पेली मेडिटेरेनियम (Palaeo Mediterranean)
- मेडिटरेनियन (Mediterranean)
- ओरियन्टल टाइप (Oriental type)
- पश्चिमी चौड़े सिर वाले (Western Brachy Cephalic) :
- अल्पाइनॉयड (Alpinoid)
- डिनारिक (Dinaric)
- अरमीनॉयड (Armenoid)
- नार्डिक (Nordic)।
(स) हट्टन का वर्गीकरण
हट्टन ने भारतीय प्रजातियों को निम्न श्रेणियों में विभाजित किया है
- नीग्रीटो,
- प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड,
- मेडिटरेनियन,
- इण्डो -आर्यन,
- अल्पाइन की अरमीनॉयड शाखा तथा
- मंगोलॉयड।
रिजले, गुहा तथा हट्टन के वर्गीकरण से हमें पता चलता है कि भारतीय समाज में संसार की सभी प्रमुख प्रजातियों के तत्त्व पाए जाते हैं। बाहर से जितनी भी प्रजातियों के लोग भारत में आए, वे यहाँ पर बसते चले गए। विभिन्न प्रजातियों में परस्पर सहवास के कारण भारतवर्ष प्रजातियों का ऐसा मिश्रण बन गया है कि किसी भी एक प्रजाति की शुद्ध विशेषताएँ मिलनी कठिन हैं। इसके परिणामस्वरूप, भारत में प्रजातियों का निर्धारण भी सरलता से नहीं किया जा सकता। अत: भारत को 'प्रजातियों का अजायबघर' कहना पूर्णत: उचित है।
(द) हेडुन का वर्गीकरण
हेड्डन ने भारत की जनसंख्या में निम्नलिखित प्रजातियों के तत्त्वों के पाए जाने का उल्लेख किया है
- प्राग-द्रावेडियन,
- द्रावेडियन,
- इण्डो-अल्पाइन,
- मंगोलॉयड तथा
- इण्डो -आर्यन।
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