बेरोजगारी की समस्या पर निबंध: बेरोजगारी का अर्थ है जब लोग काम करने के इच्छुक हों किन्तु उन्हें रोजगार न मिले। यह स्थिति विकसित देशों की अपेक्षा विकासश
बेरोजगारी की समस्या पर निबंध लिखिए
बेरोजगारी की समस्या पर निबंध
बेरोजगारी की समस्या पर निबंध: बेरोजगारी का अर्थ है जब लोग काम करने के इच्छुक हों किन्तु उन्हें रोजगार न मिले। यह स्थिति विकसित देशों की अपेक्षा विकासशील देशों में अधिक देखने में आती है। स्वन्त्रता प्राप्त करने के बाद से ही हमारे देश को अनेक समस्यों का सामना करना पड़ा है। बेरोजगारी की समस्या एक ऐसी ही समस्या है। बेरोजगारी किसी भी देश के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। भारत में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। हमारे यहां लगभग 44 लाख लोग प्रतिवर्ष बेरोजगारों की पंक्ति में आकर खड़े हो जाते हैं। शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधी समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं जो बेरोज़गारी का कारण बनती हैं। इस समस्या को खत्म करने के लिए भारत सरकार को प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत है। यह केवल देश के आर्थिक विकास में खड़ी प्रमुख बाधाओं में से ही एक नहीं बल्कि व्यक्तिगत और पूरे समाज पर भी एक साथ कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालती है।
रोजगार मनुष्य के जीवन-यापन के बुनयादी आधार है। यह मनुष्य की भूख एवं प्यास मिटाने की, प्राथमिक एवं आधारभूत आवश्यकता की पूर्ति की एक ससक्त साधन है। किन्तु बेरोजगार व्यक्ति को अनेकानेक संकटों का सामना करना पड़ता है। संकट के दिनों में बेरोजगार व्यक्ति स्वयं अपने परिवार के लिए तो बोझ बनता ही है, समाज के लिए समुदाय के लिए और यहाँ तक की राष्ट्र के लिए भी बोझ बन जाता है।
अपना जीविकोपार्जन एवं आश्रितों को पोषण प्रदान के लिए वह अनेकानेक कुकर्म करने को तैयार हो जाता है। उसमें विपथगमनात्मक प्रवृतियाँ जागृत हो जाती है। विचलनकारी व्यवहार फिर विघटनकारी व्यवहार करने के लिए बाध्य हो जाती है । सामाजिक संरचना अस्त-व्यस्त हो जाती है |
अनुशासनहीन, चरित्रहीन एवं आदर्शशून्य व्यवहार करने लगता है और दरिद्रता व दुर्दशा से पीड़ित, भूख का मारा हुआ, कर्ज से दबा हुआ, कुत्ते और बिल्लियों की तरह जीवन बिताने से उबकर चोरी, डकैती, तस्करी, हिंसा और कई प्रकार के आपराधिक कार्यों को करने की और अभिमुख हो जाता है। वेश्यावृति, भिक्षावृति, आत्महत्या आदि अपराधों को खुलकर करने लगता है । इस प्रकार बेरोजगारी से सारा समाज, सारा समुदाय, सम्पूर्ण राष्ट्र प्रभावित होता है।
बेरोजगारी से कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का प्रादुर्भाव होता है, देश में आर्थिक समस्या उठ खड़ी होती है। लोगों का स्वास्थ्य क्षतिग्रस्त हो जाता है, मस्तिष्क बेकार हो जाता है।उसकी आकांक्षाए मर जाती है, सम्मान और उत्तरदायित्व की भावना मर जाती है, साहस और इच्छा-शक्ति कमजोर हो जाती है, कौशल नष्ट हो जाता है और कर्ज में इतना डूब जाता है कि फिर व्यैक्तिक, पारिवारिक, सामुदायिक एवं राष्ट्रीय उन्नति की भावनाएँ नष्ट हो जाती है ।
बेरोजगारी के दुष्परिणाम यहाँ निम्नलिखित बिन्दुओं में प्रस्तुत है।
व्यैक्तिक विघटन : बेरोजगारी किसी युवा व्यक्ति के लिए, रोजी-रोटी से आहत व्यक्तियों के लिए, आंशिक रोजगार में संलग्न व्यक्तियों के लिए और अल्प वैतनिक व्यक्तियों के लिए बहुत ही खतरनाक है। उसमें बेरोजगार व्यक्तियों की सर्वाधिक संख्या पाई गयी है। अनपढ़ बेरोजगार व्यक्तियों की भांति पढ़े-लिखे बेरोजगार व्यक्तियों की चोरी, डकैती, तस्करी, हिंसा, जुआ, मद्यपान आदि में प्रमुख भूमिका है। बेरोजगारी इस प्रकार व्यैक्तिक विघटन का मार्ग प्रशस्त करते है ।
पारिवारिक विघटन : बेरोजगारी से आहत व्यक्ति का व्यैक्तिक विघटन तो होता ही है साथ ही यह पारिवारिक विघटन का भी उदगम स्त्रोत है। पैसे की तंगी, पग-पग पर परेशानी, चिंता और कलह को जन्म देती है। परिवार के सदस्यों को जब भरपेट भोजन नहीं मिलता, तन ढकने के लिए जब परिधान व वस्त्र प्राप्त होता, रहने के लिए घर नसीब नहीं होता और जब जीवन की अन्य सुविधाओं से वंचित रहना पड़ता है, ऐसे में पति-पत्नी के बीच सम्बन्ध-विच्छेद व तलाक भी हो जाता है। बच्चे अनाथ हो जाते है। वे गलियों में कबाड़ी का काम करने लगते है।
सामाजिक विघटन : बेरोजगारी जो व्यैक्तिक विघटन एवं पारिवारिक विघटन की जन्मदात्री सामाजिक विघटन का भी आधारशीला है। बेरोजगारी के परिणामस्वरूप बेरोजगार व्यक्तियों की मनोवृतियाँ में तीखापन आ जाता है, उनका सामाजिक जीवन रिक्त होने लगता है। सामुदायिक भावना नष्ट होने लगता है।
यह व्यक्तिवादिता अनेक प्रकार की समस्याओं को जन्म देकर अपराध की भी अभिवृद्धि करती है जो की सामाजिक विघटन का प्रत्यक्ष रूप है ।
सामुदायिक विघटन : सामुदायिक संगठन की आधारशीला है, “सामुदायिक भावना” हम की भावना । सामुदायिक विघटन की शुरुआत उसी समय हो जाता है जब मनुष्य सामुदायिक सहयोग और एकमत से अपना हाथ खींच लेता है। वह सामुदायिक जीवन में, सामुदायिक हित में भाग लेना बंद कर देता है। बेरोजगार व्यक्ति तनावग्रस्त रहने लगता है तथा कभी-कभी समाज में क्रांति का बीज बोने की कोशिश करती है।
आतंकवाद को बढ़ावा : बेरोजगारी आतंकवाद को बढ़ावा देती है। बेरोजगार व्यक्ति अपनी वर्तमान स्थिति के लिए समाज के प्रति, सरकार के प्रति क्रोधित होते है। उनकी सोच नकारात्मक हो जाती है वे सोचते है की यदि यह समाज उनकी उपयुक्त रोजगार पाने की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकता है तो इसे बर्बाद ही कर देना चाहिए। इससे वे राज्य के विरुद्ध संगठित हिंसा करना चाहते है। पंजाब और असम में आतंकवाद को बढ़ाने में युवा बेरोजगारी की अहम् भूमिका रही है। दोनों राज्यों में युवा बेरोजगारों की बड़ी संख्या में होने की समान समस्या रही है ।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि बेरोजगारी के परिणाम बड़े घातक सिद्ध होते है । बेरोजगार व्यक्ति का जीवन विघटित होता है, परिवार और समाज को भी यह विघटित कर देता है।
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