माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए : थामस रार्बट माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत जनसंख्या में वृद्धि तथा खाद्यान्न आपूर्ति में मध्य
माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत
जनसंख्या सिद्धांत की मान्यताएं
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत निम्नलिखित आधारतभूत मान्यताओं पर आधारित है -
1. स्त्री एवं पुरूष के बीच काम भावना स्वाभाविक है। इस प्रकार पुरूष की प्रजनन शक्ति (fecundity) तथा सन्तान उत्पत्ति की इच्छा यथा स्थिर रहती है। यह शिक्षा तथा सभ्यता की प्रगति से अप्रभावित है।
2. मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन अनिवार्य है तथा कृषि में उत्पत्ति हास नियम लागू होता है।
3. आर्थिक सम्पन्नता में वृद्धि के साथ-साथ मनुष्य में सन्तानोत्पादन की इच्छा भी तीव्र रहती है तथा जीवन स्तर में कमी होने पर वह घटती है।
अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से हम माल्थस के सिद्धान्त को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत रखकर अध्ययन कर सकते हैं।
(1) जनसंख्या ज्यामिती अनुपात से बढ़ती है।
माल्थस का कथन है कि “अनियंत्रित जनसंख्या ज्यामितिक-दर (Geometrical ratio) से बढ़ती है।" इनका विचार है कि स्त्रियों और पुरूषों के मध्य सदा यौन आकर्षण रहा है और रहेगा। यौन इच्छा स्वाभाविक और अत्यन्त प्रबल है फलतः सन्तान उत्पत्ति भी स्वाभाविक परिणाम है। यदि जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो वह प्रत्येक 25 वर्ष में दुगुनी हो जायेगी। जैसा कि उन्होंने स्वयं लिखा है- "अगर जनसंख्या को रोका न गया (संयम द्वारा) तो जनसंख्या प्रत्येक 25 वर्ष में दुगुने हो जाने की प्रवृत्ति रखती है।" जनसंख्या के ज्यामितिक अनुपात को इस प्रकार दर्शाया जा सकता है- 2,4,8,16,32,64, 128, 256 आदि इसी क्रम से बढ़ती है।
जनसंख्या वृद्धि के इस अनुपात को गुणोत्तर वृद्धि भी कह सकते हैं। माल्थस ने अपना यह निष्कर्ष कई योरोपीय देशों के भ्रमण के दौरान जनसंख्या वृद्धि के अध्ययन के आधार पर दिया था। आपके अनुसार- "जीविका प्रदान करने वाली भूमि की शक्ति की तुलना में जनसंख्या वृद्धि की शक्ति अनन्त है।"
(2) खाद्य सामग्री अंकगणितीय अनुपात से बढ़ती है
मानव के जीवन और अस्तित्व के लिए भोजन आवश्यक है लेकिन जिस दर से जनसंख्या में वृद्धि होती है उस दर से खाद्य-सामग्री में वृद्धि नहीं होती है। खाद्यसामग्री में तो समानान्तर अर्थात् गणितीय अनुपात में ही वृद्धि होती है क्योंकि कृषि उपज में 'उत्पत्ति-हास नियम' लागू होता है अर्थात् जैसे-जैसे खेत में फसल उगाने का क्रम बढ़ता जाता है वैसे-वैसे क्रमानुसार कृषि उत्पादन घटता जाता है। खाद्य-सामग्री के गणितीय अनुपात को इस प्रकार रखा जा सकता है- 1,2,3,4,5,6,7,8, 9 आदि क्रम से। माल्थस के शब्दों में, यदि अन्य बातें समान रहें, तो प्रकृति द्वारा मानवीय आहार धीरे-धीरे अंकगणितीय अनुपात में बढ़ता है और मानव स्वयं तेजी से ज्योमितीय अनुपात में बढ़ता है। रेखा चित्र में खाद्यान्न सामग्री में होने वाली अंगणितीय दर से वृद्धि प्रदर्शित है।
(3) जनसंख्या एवं खाद्य सामग्री में असंतुलन
यद्यपि जनसंख्या और खाद्य सामग्री दोनों में वृद्धि होती है। पर वृद्धि दर में अन्तर होने के कारण दोनों के मध्य असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। चूंकि जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय दर से होती है अतः इसकी तुलना में गणितीय दर से बढ़ने वाली खाद्य सामग्री पीछे रह जाती है। उदाहरण के लिए- जहाँ 5 वर्षों में खाद्य सामग्री में 1, 2, 3, 4, 5, अर्थात् 5 गुनी वृद्धि होती है, वहीं जनसंख्या में इतनी ही अवधि में ज्यामितिक अनुपात से 1, 2, 4, 8, 18 अर्थात् 16 गुनी वृद्धि हो जाती है। 5 और 16 (16-5=11) के मध्य का अन्तर खाद्य और जनसंख्या के असंतुलन को प्रदर्शित करता है। माल्थस का कथन था कि यह असंतुलन भयंकर कष्टदायी परिणामों को उत्पन्न करता है। खाद्य-सामग्री और जीवन-स्तर में वृद्धि के साथ जनसंख्या बढ़ती है। उसने स्वयं लिखा है, "Prosperity was not to depend on population but population was to depend on prosperity."
(4) जनसंख्या पर प्रतिबंध या अवरोध
थामस राबर्ट माल्थय ने जनसंख्या नियंत्रण के दो प्रकार से प्रतिबन्धों का उल्लेख किया है
- नैसर्गिक या प्राकृतिक अवरोध (Positive or Natural checks)
- प्रतिबन्धात्मक अवरोध (Preventive checks)
(A) नैसर्गिक या प्राकृतिक अवरोध (Positive or Natural checks)
ये वे प्रतिबन्ध हैं जो प्रकृति की ओर से लगाए जाते हैं। इसके द्वारा मृत्यु दर बढ़ जाती है फलतः खाद्य सामग्री से अतिरिक्त जनसंख्या भार कम होकर उसके बराबर हो जाती है। इन अवरोधों में युद्ध, बीमारी, अकाल, भूकम्प, अतिवृष्टि, बाढ़ आदि अनेक प्राकृतिक प्रकोपों के साथ माल्थस ने खराब कार्य, बच्चों के असन्तोषजनक पालन-पोषण एवं नागरिक जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों आदि को भी सम्मिलित किया है। माल्थस के अनुसार- "प्रकृति की मेज सीमित अतिथियों के लिए ही लगी है, इसलिए जो बिना निमंत्रण के आयेगा उसे भूखों मरना पड़ेगा।" उसने प्राकृतिक अवरोध को अत्यन्त दुःखद और कष्टमय कहा है। यद्यपि इससे मृत्यु दर बढ़ने के कारण जनसंख्या घटकर खाद्यान्न पूर्ति के संतुलित अनुपात में आ जाती है। पर यह संतुलन स्थायी न होकर अल्पकालिक ही होता है। कुछ समय बाद फिर जनसंख्या बढ़ती है और संतुलन भंग होता है, पुनः प्रकृति द्वारा संतुलित जनसंख्या हो जाती है। यह स्थिति एक चक्र की भांति चलती रहती है जिसे कुछ विद्वानों ने 'माल्थूसियन चक्र कहकर सम्बोधित किया है। इस स्थिति को चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
माल्थस के अनुसर, "आजीविका की कठिनाई के कारण जनसंख्या वृद्धि पर एक शक्ति एवं निरन्तर नियंत्रण बना रहता है।"
- यद्यपि ये प्राकृतिक शक्तियाँ जनसंख्या पर नियन्त्रण तो लगाती हैं पर ये अतिकष्ट कर (Miseries) हैं, इनसे बचना चाहिए।
- माल्थस का मत था कि किसी देश में नैसर्गिक अवरोध क्रियाशील हो जाते हैं, तो यह इस बात का परिचायक है कि उस देश में खाद्य पूर्ति की तुलना में जनसंख्या अधिक है अर्थात् जनाधिक्य की स्थिति मौजूद है।
(B) प्रतिबन्धात्मक अवरोध (Preventive checks) - माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण का दूसरा प्रतिबन्ध मानवीय प्रयत्न को माना है। चूंकि प्राकृतिक प्रतिबन्ध मानव के लिए अत्यन्त दुःखद एवं कष्टकर हैं अतः मनुष्य को प्रतिबन्धक अवरोधों से जनसंख्या पर नियन्त्रण बनाये रखना चाहिए। इन अवरोधों को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) नैतिक प्रतिबन्ध- वास्तव में नैतिक प्रतिबन्ध को ही माल्थस ने प्रतिबन्धक अवरोध के रूप में मान्यता दी है। इनमें वे सब प्रतिबन्ध (उपाय) सम्मिलित हैं। जो मनुष्य अपने विवेक से जन्मदर को रोकने के लिए करता है- जैसे-संयम, ब्रह्मचर्य व विलम्ब-विवाह आदि। माल्थस ने केवल नैतिक प्रतिबन्धों को ही उचित माना है तथा इन्हें ही अपनाकर जन्मदर पर नियंत्रण रखने की सलाह दी है। उसके अनुसार नैतिक प्रतिबन्ध (ब्रह्मचर्य) ही एक ऐसा तरीका है जिससे मानव जाति प्राकतिक अवरोधों की मार (कष्ट) से बच सकती है। माल्थस ने पुरूषों को अधिक कामुक मानते हुए महिलाओं से अपील की थी कि उन्हें पुरूषों के बहकावे में नहीं आना चाहिए, बल्कि संयम के साथ 28 वर्ष तक क्वारी रहना चाहिए।'
(ii) कृत्रिम साधनों से अवरोध- इनके अन्तर्गत जन्म नियन्त्रण के उन समस्त मानव निर्मित साधनों को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें आज 'संतति निग्रह' के साधन कहा जाता है। पर माल्थस ने इन्हें अधर्म (Vices) पाप (Sins) माना है। वह इनके प्रयोग का घोर विरोधी था।
इस प्रकार एक पादरी होने के नाते माल्थस ने केवल नैतिक प्रतिबन्धों को अपनाकर जनसंख्या (जन्म दर) को कम करने का सुझाव दिया है। उसने सुझाव रखा था कि जनसंख्या बढ़ाने में लोगों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे विवेक से काम लें, भविष्य पर बिना गम्भीरता से विचार के विवाह के लिए आतुर न हों।
अब आप माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त से परिचित हो चुके हैं तो इनके सिद्धान्त को संक्षेप में निम्न प्रकार भी रखकर और परिचत हो सकते हैं
माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की आलोचना
यहाँ माल्थस के सिद्धांत की आलोचनात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत है जिसे आप समझ सकते हैं। HIRI AT विश्वविख्यात निबन्ध प्रकाशित होते ही लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। एक तरफ जहां कोसा (Cossa), मार्शल (Marshall), ऐली (Ely), टॉसिंग (Taussig), कार्वर (Carvar), पैटन (Patten), प्राइस (Price), वुल्फ (Wolf), क्लार्क (Clark). तथा वाकर (Walker) आदि विद्वानों तथा विचारकों का उन्हें समर्थन प्राप्त हुआ वहीं दूसरी तरफ गाडविन (Godwin), मोम्बार्ट (Mombart), ओपेनहीम (Oppenheim), निकोल्सन (Nikolson), ग्रे (Gray) तथा कैनन (Cannon), आदि ने माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की आलोचना की। गाडविन ने तो निबन्ध के प्रकाशित होने के तत्काल ही प्रत्युत्तर में कहा, "यह काला भयानक राक्षस मानव जाति की आशाओं का गला घोंटने के लिए सदैव तत्पर है।" इस प्रकार उनके सिद्धान्त को लेकर उग्र विवाद उठ खड़ा हुआ। लोगों ने उसे बहुत बुरा-भला कहा। प्रो० अलेक्जेण्डर ग्रे ने तो यहां तक लिख डाला कि, "यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अभी तक किसी भी सम्मानित नागरिक की इतनी बदनामी तथा आलोचना नही हुई जितनी कि माल्थस की। प्रथम श्रेणी के लेखकों में से किसी के विचारों का इतना अधिक खण्डन नहीं किया गया।" इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि माल्थस के विचार तत्कालीन परिस्थितियों में व्याप्त सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं के प्रतिकूल थे। निकोल्सन ने लिखा कि, "जिस प्रकार डार्विन ने मानव जाति के उद्गम सम्बन्धी प्राचीन धार्मिक विश्वासों को तोड़ दिया था, उसी प्रकार माल्थस ने मानव जाति के भविष्य के स्वरूप सम्बन्धी विश्वासों को पूर्णतया बदल दिया है।"
इसमें सन्देह नहीं कि तत्कालीन विचारधारा में माल्थस ने एक क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित किया फिर भी वे इतनी कटु आलोचना के भागी नहीं थे। जिस व्यक्ति ने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं के प्रति इतना संवेदनशील होकर विश्व को सजग किया उसे मानव जाति का शत्रु कहना कहां तक न्यायोचित होगा। इस सन्दर्भ में जीड तथा रिस्ट ने लिखा है कि माल्थस ने ठीक उसी प्रकार की सलाह दी है जिस प्रकार एक हितैषी तथा स्पष्टवादी चाचा अपने भतीजे भतीजियों को देता है। माल्थस ने मानव जाति को अधिक कष्ट तथा दुख से बचने के लिए काम वासना के दुष्परिणामों के प्रति सचेत किया। इसके सिद्धान्त के समर्थन में क्लार्क लिखते हैं कि “माल्थस के सिद्धान्त का इतना अधिक खण्डन किया जाना उसकी वैधता की पुष्टि ही है।" इसी तरह अपना विचार व्यक्त करते हुए प्रो0 हेने कहते हैं वास्तव में माल्थस को समझने में कुछ त्रुटियां की गयी हैं, उनका अर्थ जनसंख्या वृद्धि की ओर संकेत करना था जबकि उनका अध्ययन ठोस निष्कर्ष मानकर किया जाता है।
अर्थशास्त्रियों द्वारा माल्थस द्वारा व्यक्त किए गए जनसंख्या सिद्धान्त के विरूद्ध जो बातें कही जाती हैं उनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं :
(1) माल्थस की आधारभूत मान्यता अवास्तविक - आलोचकों का विचार है कि माल्थस की यह आधारभूत मान्यता कि मनुष्य का काम भावना यथा स्थिर रहती है तथा काम-वासना एवं सन्तानोत्पत्ति दोनों एक ही बात है, अवास्तविक है। वास्तव में, माल्थस कामेच्छा और प्रजनन की इच्छा के अन्तर को भली-भांति नहीं समझ पाया। काम-वासना की उत्पत्ति तो प्राकृतिक है और यह प्रत्येक मनुष्य में आवश्यक रूप से पाई जाती है जिसे रोक पाना सम्भवतः मनुष्य के वश में लगभग नहीं है। सन्तानोत्पत्ति की इच्छा सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक कारणों से प्रभावित होती है और मनुष्य उसे कृत्रिम उपायों से रोक सकता है और इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि में प्रतिबन्ध लगा सकता है। मनुष्य की काम-वासना को स्थिर मानना भी उचित नहीं है क्योंकि जीवनस्तर में वृद्धि के साथ-साथ मनोरंजन के साधन बढ़ जाते हैं। जिससे उसकी कामेच्छा घट जाती है। इस प्रकार आर्थिक सम्पन्नता और सन्तानोत्पत्ति के बीच सकारात्मक सम्बन्ध नहीं है। अतः यह बताता है कि सम्पन्न लोगों की अपेक्षा गरीबों के अधिक बच्चे होते हैं।
(2) कृषि में उत्पत्ति हास नियम की मान्यता दोषपूर्ण - माल्थस का सिद्धान्त इस बात पर आधारित है कि कृषि में उत्पत्ति हास नियम लागू होने के कारण खाद्यान्न में कमी आ जाती है। वास्तव में, माल्थस औद्योगिक क्रान्ति के परिणामों को देखकर भी भविष्य को ठीक-ठीक नहीं आंक सके तथा कृषि सम्बन्धी वैज्ञानिक प्रगति का अनुमान नहीं लगा सके। उन्होंने यह नहीं सोचा कि वैज्ञानिक आविष्कारों की सहायता से यान्त्रिक प्रणाली रासायनिक खाद, उन्नत बीज, तथा कीटनाशकों, इत्यादि का प्रयोग कर उत्पत्ति ह्रास नियम को स्थगित किया जा सकता है तथा वैज्ञानिक ढंग से खेती करके बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सकता है। माल्थस ने वृद्धि प्रत्याय नियम की भी अवहेलना की अन्यथा इतना निराश होने की आवश्यकता न थी। यातायात एवं परिवहन के साधनों में हुई भारी प्रगति के कारण खाद्य सामग्रियों को एक देश से दूसरे देश को बहुत ही कम समय में तथा सुगमतापूर्वक ले जाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मांस-मछलियां भी खाद्य सामग्री बनकर जनसंख्या के काफी भाग की भूख का निवारण कर सकती है। इस तथ्य पर तो माल्थस का ध्यान ही नहीं गया। माल्थस ने अपने सिद्धान्त में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका का दृष्टान्त उपस्थित किया था जहां मनुष्य ने अपने पुनरूत्पादन की दर की अपेक्षा जीवन निर्वाह के साधनों का अधिक तीव्रता से विकास किया है।
(3) सिद्धान्त का गणितीय स्वरूप अवास्तविक - माल्थस के सिद्धान्त में प्रयुक्त गणितीय स्वरूप की भी आलोचना की जाती है। अनुभवजन्य साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध नहीं हो सका कि जनसंख्या गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ती है और हर 25 वर्ष बाद दुगनी हो जाती है तथा खाद्यान्न में वृद्धि समानान्तर श्रेणी में होती है। वास्तविकता तो यह है कि जनसंख्या या खाद्यान्न वृद्धि का कोई गणितात्मक रूप दिया जाना सम्भव ही नहीं लगता, परन्तु यह आलोचना के क्षेत्र के बाहर है क्योंकि माल्थस ने अपने निबन्ध के प्रथम संस्करण में अपना नियम अच्छी तरह स्पष्ट करने के लिए इस गणितीय स्वरूप का प्रयोग किया और उसके संशोधित संस्करण में उन्होंने उन शब्दों को हटा दिया था जिसका तात्पर्य यह है कि माल्थस ने गणितीय रूप का प्रयोग मात्र यह स्पष्ट करने के लिए किया था कि जनसंख्या में खाद्यान्नों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से बढ़ने की प्रवृत्ति होती है।
(4) अति जनसंख्या की स्थिति ही प्राकृतिक विपत्तियों का कारण नहीं होती - माल्थस के निराशावाद तथा धार्मिक शिक्षा ने उनको यह विश्वास दिला दिया था कि जब अति जनसंख्या की स्थिति उत्पन्न होती है तो नैसर्गिक प्रतिबन्ध कार्यशील हो जाते हैं और अकाल, बाढ़, सूखा, बीमारी, महामारी, दुर्भिक्ष तथा युद्ध, आदि की क्रियाशीलता से स्वतः बढ़ी हुई जनसंख्या घट कर सन्तुलित हो जाती है, परन्तु माल्थस की यह अवधारणा सत्य नहीं है। ये प्राकृतिक विपत्तियां वहां भी पाई जाती हैं जहां जनसंख्या न्यून है अथवा स्थिर है।
(5) मृत्यु-दर में कमी के कारण भी जनसंख्या में वृद्धि होती है- माल्थस का सिद्धान्त एक पक्षीय है। वह जनसंख्या की वृद्धि को बढ़ती हुई जन्म-दर का परिणाम मानता है। वह यह भूल गया कि जनसंख्या में वृद्धि घटती हुई मृत्य-दर के कारण भी होती है। माल्थस चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व प्रगति का अनुमान नहीं लगा सके जिसने जनसाधारण के साथ-साथ घातक रोगों पर भी काबू पा लिया है और मनुष्य की आयु को बढ़ा दिया है।
(6) माल्थस नए क्षेत्रों का पूर्वानुमान नहीं लगा सके- माल्थस का दृष्टिकोण संकुचित था। वह इंग्लैण्ड की स्थानीय परिस्थितियों से विशेष प्रभावित था। वह आस्ट्रेलिया, अमेरिका और अर्जेण्टाइना के नए खुलने वाले क्षेत्रों का पूर्वानुमान नहीं कर सके जहां अक्षत भूमियों (vergia lands) की सघन कृषि से खाद्यान्न की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि हुई है जिसके फलस्वरूप इंगलैण्ड, आदि देशों को प्रचुर मात्रा में खाद्य पदार्थ सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाते हैं। यह तभी सम्भव हुआ जब परिवहन के साधनों में तेजी से सुधार हुआ। इस पक्ष को माल्थस नजरन्दाज कर गया। आज कोई देश यदि बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए पर्याप्त खाद्यान्न उत्पादन नहीं कर पाता तो भी उसे भुखमरी तथा विपत्ति से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है।
(7) माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न जनशक्ति के पक्ष की उपेक्षा की- माल्थस का सिद्धान्त इस बात से भी आलोचना का विषय रहा कि उसने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न जनशक्ति के पक्ष की उपेक्षा की। वह निराशावादी तथा जनसंख्या में प्रत्येक वृद्धि से भयभीत था। प्रो. कैनन (Cannon) के अनुसार, "वह यह भूल गया कि शिशु दुनिया में केवल एक मुंह और एक पेट ही नहीं, बल्कि दो हाथ भी लेकर आता है।" (He forgot' that "a baby comes to the world not only with a mouth and a stomach but also with a pair of hands.") इसका अर्थ यह है कि जनसंख्या में वृद्धि का अर्थ है जनशक्ति में वृद्धि जो न केवल औद्योगिक उत्पादन में बल्कि कृषि उत्पादन में भी वृद्धि कर सकती है और इस प्रकार आय तथ धन के न्यायोचित वितरण के द्वारा देश को धनी बना सकती है। इस प्रकार, जनसंख्या की समस्या केवल आकार की ही समस्या नहीं है बल्कि दक्ष उत्पादन तथा न्यायोचित वितरण की भी है।
(8) माल्थस के सिद्धान्त पर स्थैतिक होने का भी आरोप है- माल्थस के सिद्धान्त पर स्थैतिक होने का आरोप इस आधार पर लगाया जाता है कि यह उत्पत्ति हास नियम तथा प्राकृतिक साधनों (भूमि) की सीमितता पर आधारित है। साधनों की मात्रा एक निश्चित समय के लिए स्थिर हो सकती है, परन्तु सदैव के लिए नहीं। समय के साथ पश्चिमी देशों में ज्ञान तथा तकनीक में बहुत विकास हुआ है। प्राप्त भूमि तथा अन्य साधनों में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि कृषि योग्य भूमि की मात्रा में वृद्धि महत्वपूर्ण नहीं है वरन् अतिरिक्त भूमि का महत्व इस बात से मापा जाता है कि इससे किस मात्रा में अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त किया जाता है।
कुछ अर्थशास्त्री इस विचार से कि माल्थस का दृष्टिकोण स्थैतिक है, सहमत नहीं है। वे इसे इस आधार पर प्रावैगिक मानते हैं कि यह एक निश्चित समयावधि के भीतर जनसंख्या वृद्धि की प्रक्रिया का अध्ययन करता है।
(9) जनसंख्या वृद्धि तथा खाद्यपूर्ति कमजोर सम्बन्ध पर आधारित- माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त जनसंख्या वृद्धि तथा खाद्यपूर्ति के कमजोर सम्बन्धों के आधार पर टिका हुआ है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी देश की जनसंख्या की तुलना उस देश के कुल राष्ट्रीय आय से करनी चाहिए, केवल खाद्यान्नों से ही नहीं। अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त (Optimum Theory of Population) का आधार यही है। तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है कि यदि कोई देश अपनी जनसंख्या के लिए पर्याप्त खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं कर पाता लेकिन वह यदि भौतिक रूप से धनी है तथा औद्योगिक दृष्टि से उन्नतशील है तो वह अपने यहां निर्मित वस्तुओं अथवा मुद्रा के बदले खाद्य सामग्री को दूसरे कृषि प्रधान देशों से आयात करके अपने लोगों का भली-भांति भरण-पोषण कर सकता है। इंगलैण्ड इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है जहां पर केवल 1/6 जनसंख्या के भरण-पोषण के लायक ही खाद्यान्न उत्पन्न किया जाता है फिर भी वहां माल्थस के द्वारा बताए गए प्रकृति के प्रकोपों को नहीं पाया गया है।
(10) जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि हानिकारक नहीं - माल्थस जनसंख्या में प्रत्येक वृद्धि को हानिकारक समझते थे, परन्तु उनका यह दृष्टिकोण उचित नहीं है। यदि किसी देश की जनसंख्या उस देश के प्राकृतिक साधनों की अपेक्षा कम है तो जनसंख्या में वृद्धि लाभदायक होगी। प्राकृतिक साधनों का भली-भांति विदोहन करके राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार, यदि जनसंख्या अनुकूलतम बिन्दु से नीचे है तो जनसंख्या में वृद्धि से प्रति व्यक्ति वार्षिक आय में वृद्धि होगी। अतः जनसंख्या में वृद्धि राष्ट्रहित में होगी।
(11) आगमन प्रणाली का दोष – माल्थस के सिद्धान्त में आगमन प्रणाली का दोष भी है। उन्होंने यूरोप के कुछ देशों का दौरा किया और सामान्य निरीक्षण के आधार पर अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। यह आवश्यक नहीं है कि जो बात कुछ स्थानों पर सत्य है वह सभी जगह सत्य हो। अतः माल्थस के सिद्धान्त में सार्वभौमिकता का अभाव है।
(12) जनसंख्या वृद्धि व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के बीच सकारात्मक सम्बन्ध नहीं- वास्तव में जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने पर अधिक बच्चा पैदा करने की इच्छा घट जाती है। जब लोग ऊँचे जीवनस्तर के आदी हो जाते हैं तो बड़े परिवार का पालन-पोषण मंहगा हो जाने के कारण परिवार सीमित ही रखना चाहते हैं क्योंकि इससे जीवनस्तर में गिरावट की सम्भावना रहती है और लोग अपना जीवनस्तर घटाना नहीं चाहते, परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर होने लगती है। जापान, फ्रांस, इंगलैण्ड तथा अन्य पश्चिमी देश इसके उदाहरण हैं।
(13) जनसंख्या वृद्धि का उत्तरदायित्व निर्धनों पर ही थोपना उचित नहीं- कुछ आलोचकों का कथन है कि माल्थस का सिद्धान्त जनसंख्या वृद्धि का उत्तरदायित्व निर्धनों पर थोपता है। उनके अनुसार माल्थस ने निर्धनों को ही निर्धनता का कारण बताया है। माल्थस का विचार था कि एक कानून बनाकर निर्धनों को विवाह करने पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए। यदि निर्धनों का विवाह होगा तो ज्यादा बच्चे पैदा करेंगे परिणामस्वरूप जनसंख्या और बेरोजगारी में वृद्धि होगी। यह बात तर्कसंगत है कि मनोरंजन के साधनों के अभाव, शिक्षा के अभाव तथा दूरदर्शिता के अभाव में यह सब सम्भव हो सकता है, परन्तु अधिक जनसंख्या का होना निर्धनता ही मुख्य कारण नहीं है बल्कि धन का असमान वितरण एवं सरकार की नीतियों का परिणाम है। यदि श्रमिकों को उचित पुरस्कार प्राप्त हो तथा उनके मनोरंजन, शिक्षा, आदि की उचित व्यवस्था हो तो इस प्रकार के परिणाम की सम्भावना नहीं रहेगी।
(14) माल्थस के सुझाव व्यावहारिक नहीं- माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण हेतु जिस आत्मसंयम, नैतिकता एवं संयमित जीवन व्यतीत करने का सुझाव दिया है वह व्यावहारिक नहीं है। साधारण व्यक्ति के लिए उनका पालन करना दुरूह कार्य है। अपने सैद्धान्तिक दृष्टिकोण में तो यह विचार पूर्ण आदर्श हैं, परन्तु उसकी व्यावहारिकता में उतना ही दोष है।
(15) माल्थस झूठा भविष्य वक्ता सिद्ध हुआ- वास्तव में, माल्थस एक झूठा भविष्यवक्ता सिद्ध हुआ। यह सिद्धान्त उन देशों पर भी नहीं लागू हुआ जिनके लिए यह बनाया गया था। इतिहास इस बात का साक्षी है। पश्चिम यूरोपीय देशों में माल्थस के भय तथा निराशावाद पर काबू पा लिया गया है। जन्म-दर में कमी, खाद्यपूर्ति में पर्याप्तता, कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन के द्वारा उसकी यह भविष्यवाणी गलत सिद्ध की जा चुकी है कि ये देश कृत्रिम अवरोधों के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि को रोकने में असमर्थ रहेंगे। इन्हें विपत्ति धर दबोचेगी। उस प्रकार माल्थस की भविष्यवाणी असत्य सिद्ध हुई।
उपरोक्त वर्णित आलोचनाओं से यह विदित होता है कि माल्थस के जनसंख्या सम्बन्धी सिद्धान्त में कुछ त्रुटियां रह गयीं जिनके कारण इस सिद्धान्त को समझने में कुछ भ्रांतियां उत्पन्न हो जाती हैं। इसके बावजूद माल्थस के सिद्धान्त में पर्याप्त सच्चाई है। माल्थस के प्रति जनसंख्या सम्बन्धी दृष्टिकोण की भयावहता से ही यूरोप के देश समय पर सजग हो गए और जनसंख्या वृद्धि को रोकने के तरीके अपनाने शुरू कर दिए तथा अपने देश को अति जनसंख्या की समस्या का सामना करने से बचा सके।
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