मुस्लिम अल्पसंख्यकों की समस्याएं - Muslim Alpsankhyak ki Samasya in Hindi (1) असुरक्षा की भावना (2) शैक्षणिक समस्याएं (3) आर्थिक पिछडापन (4) सांस्कृति
मुस्लिम अल्पसंख्यकों की समस्याएं - Muslim Alpsankhyak ki Samasya in Hindi
- (1) असुरक्षा की भावना
- (2) शैक्षणिक समस्याएं
- (3) आर्थिक पिछडापन
- (4) सांस्कृतिक पृथकता की समस्या
- (5) साम्प्रदायिक तनाव
- (6) भाषा की समस्या
संजातीय तथा धार्मिक रूप से मुस्लिम समुदाय भारत का सबसे महत्वपूर्णअल्पसंख्यक वर्ग है। भारत में जैसे-जैसे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को विभिन्न प्रकार के संरक्षण देने तथा राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने के प्रयत्न किये गए, किसी न किसी कारण मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय में ऐसी समस्याएँ बढ़ती गयीं जिनका आधार वास्तविक होने के जगह राजनितिक अधिक है। संक्षेप में इन समस्याओं की प्रकृति को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है :
(1) असुरक्षा की भावना - के बाद से ही मुस्लिम समुदाय में यह भावना जोर पकड़ती गयो कि देश के लोकतान्त्रिक ढांचे में संख्या शक्ति का सबसे अधिक महत्व होता है लेकिन हिन्दओं की तुलना में मुसलमानों की कुल संख्या बहुत कम होने के कारण वे वे नागरिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित होते जायेगे। इसी कारण उन्होंने अनुसूचित जातियों और जनजारा की तरह अपने लिए भी पथक निर्वाचन मण्डलों की मांग करना आरम्भ कर दी। भारत के निरी स्वरूप में यह मांग अव्यावहारिक होने के कारण इसे स्वीकार नहीं किया जा सका।
(2) शैक्षणिक समस्याएं - मुसलमानों की एक प्रमुख समस्या भारत के दूसरे सभी धार्मिक समुदायों की तुलना में शैक्षणिक पिछड़ापन है। यह सच है कि देश के संविधान के अनुसार सभी समुदायों को शिक्षा ग्रहण करने के व्यावहारिक अधिकार मिले हुए हैं लेकिन मुस्लिम समुदाय की परम्पराएँ स्वयं आधुनिक शिक्षा के पक्ष में नहीं है। शिक्षा की कमी के कारण राजकीय नौकरियों में जब उनका सहभाग कम रह जाता है तो उनमे असन्तोष बढ़ने लगता है।
(3) आर्थिक पिछडापन - किसी न किसी रूप में यह समस्या शैक्षणिक पिछडेपन से ही सम्बन्धित है। उद्योग और व्यापार में आगे बढ़ने के लिए जिस शैक्षणिक कुशलता की जरूरत होती है, मुस्लिम समुदाय में उसकी काफी कमी होने के कारण मुस्लिम जनसंख्या का बहुत छोटा भान ही सम्पन है। ऐसा अनुमान है कि मुस्लिम जनसंख्या का 85 प्रतिशत से भी अधिक भाग खेतिहर अथवा कामगर है तथा अधिकांश परिवारों में बच्चों को बहुत कम आयु से ही आजीविका कमाने के लिए बाध्य होना पड़ता है। मुस्लिम समुदाय इसी कारण अपने लिए कुछ विशेष आर्थिक सुविधाओं की माँग करता रहा है।
(4) सांस्कृतिक पृथकता की समस्या - मुस्लिम समदाय की एक मुख्य समस्या उनका एक पृथक सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन है। देश के अन्य समदायों के लिए जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है, वहीं मुसलमानों को उन्हीं के धार्मिक प्रतिनिधियों द्वारा यह निर्देश दिया जाता है। कि वे अपने सामाजिक नियमों (शरियत) तथा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार व्यवहार कर। मुसलमाना के विकास के लिए सरकार ने अनेक बार उनके समुदाय में प्रचलित विवाह, तलाक और स्त्रिया की स्थिति से सम्बंधित विषयों में उपयोगी परिवर्तन लाने का प्रयल किया लेकिन स्वयं मुसलमानों ने इसे अपने जीवन में हस्तक्षेप मानते हुए इसे अस्वीकार कर दिया। सामाजिक जीवन जब धार्मिक कट्टरता के अधीन हो जाता है तो स्वाभाविक रूप से उसमें विघटन के तत्व पैदा होने लगते है।
(5) साम्प्रदायिक तनाव - इस समस्या का सम्बन्ध अपनी एक अलग पहचान बनाये रखन के उन्माद और असुरक्षा की ग्रन्थि से सम्बन्धित है। हमारे देश में स्वतन्त्रता से पहले और बाद में साम्प्रदायिक दंगे उन क्षेत्रों में सबसे अधिक हए जिनमें दूसरे क्षेत्रों की तुलना में मुस्लिम संख्या अधिक है। इन तनावों का कोई ठोस कारण न होने के बाद भी साधारणतया इनका उद्देश्य अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना होता है। मुसलमानो का शिक्षित वर्ग स्वयं ऐसे तनावों का विरोधी है लेकिन सामान्य लोग इसे बहुसंख्यक समुदाय द्वारा जनित मानते हैं।
(6) भाषा की समस्या - भारत की जनसंख्या में मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत आज लगभग 16 है लेकिन जनगणना रिपोर्ट के अनुसार जनसंख्या का केवल 5.13 प्रतिशत ही उर्दू भाषा को अपनी मातृ भाषा मानता है। इसका तात्पर्य है कि अधिकांश मुसलमान बंगाली, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम अथवा कश्मीरी भाषाओ से सम्बन्धित है। जिन राज्यों में मुस्लिम आबादी काफी है, उनमें समय-समय पर उर्दू को दूसरी राजभाषा का दर्जा देने की मांग की जाती रही है। यद्यपि अभी तक केवल उत्तर प्रदेश में ही यह माँग स्वीकार की गयी है। उर्दू को प्रोत्साहन देने के लिए उत्तर भारत के अनेक राज्यों में मुस्लिम मदरसे स्थापित किये गये लेकिन इनमें दी जाने वाली शिक्षा को सन्देह की निगाह से देखने के कारण एक नया विवाद पैदा हो गया।
भारत में मुस्लिम समदाय को वे सभी सुविधाएं और अधिकार प्राप्त है जो बहसंख्यकों को मिले हुए है। स्पष्ट है कि मुस्लिम समुदायो की समस्याओं का सम्बन्ध अल्पसंख्यक वर्ग होने से नहीं है बल्कि इसका कारण उन्हीं की अपनी एक विशेष सामाजिक और धार्मिक संरचना है। मुसलमानों में जैसे-जैसे शिक्षा का प्रभाव बढ़ेगा, उनकी इन मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान स्वयं ही होता जायेगा।
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