भारतीय समाज में विविधता में एकता की विवेचना कीजिए भौगोलिक विविधता में एकता सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता में एकता भारतीय समाज में नृजातीय विविध...
भारतीय समाज में विविधता में एकता की विवेचना कीजिए
- भौगोलिक विविधता में एकता
- सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता में एकता
- भारतीय समाज में नृजातीय विविधता में एकता
- भाषायी विविधता में एकता
- जातीय विविधता में एकता
- ऐतिहासिक विविधता में एकता
- प्रजातीय विविधता में एकता
भारतीय समाज में विविधता में एकता पर निबंध
'विविधता में एकता' भारतीय समाज एवं संस्कृति की एक अनोखी विशेषता है। भारत में धर्म, प्रजाति, भाषा एवं संस्कृति की दृष्टि से अनेकों विभिन्नतायें पायी जाती हैं, इसके बावजूद भी सम्पूर्ण राष्ट्र में एकता के दर्शन होते हैं। इस सम्बन्ध में कुछ प्रमुख विद्वानों ने लिखा है कि -
'भारत में धर्म, रीति-रिवाज और भाषा तथा सामाजिक और भौतिक विभिन्नताओं के होते हुए भी जीवन की एक विशेष एकरूपता कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक देखी जा सकती हैं। वास्तव में भारत का एक अलग चरित्र एवं व्यक्तित्व है, जिसकी अवहेलना नहीं की जा सकती है।" - सर हर्बर्ट रिजले
'भारत का अवलोकन करने वाले भारत की अनेकता और विभिन्नता से बहुत अधिक प्रभावित हो जाते हैं। वे भारत की एकता को साधारण नहीं देख पाते, यद्यपि युगों-युगों से भारत की मौलिक एकता ही, उसका महान एवं मौलिक तत्व रहा है। पाँच या छः वर्ष हुए कि सिन्धु घाटी की सभ्यता उत्तर में फलीफूली और कदाचित दक्षिण भारत तक फैल गई। इतिहास के उस प्रभाव से अग्रणित जातियाँ, विजेता, तीर्थयात्री एवं छात्र एशिया की ऊँची-ऊँची भूमि से भारत के मैदान में सैर के लिए आये जिन्होंने भारतीय जीवन, संस्कृति और कला को प्रभावित किया किन्तु वे इसी देश में विलीन हो गये। इन सम्पर्कों से भारत में परिवर्तन हुआ, किन्तु उसकी आत्मा मौलिक रूप से पुरानी ही रही। यह तभी सम्भव हुआ होगा जब मौलिक एकता की भावना की जड़ें गहराई तक हों, जब उन्हें नवागन्तुकों ने स्वीकार किया हो।
भारत में विविधता में एकता प्राचीनकाल से रही है। भारत की विविधता में एकता के दर्शन जिन क्षेत्रों में किये जाते हैं, वे निम्न प्रकार हैं .
1. भौगोलिक विविधता में एकता - भारत में भौगोलिक दृष्टि से अनेकों विषमतायें पायी जाती हैं। चेरापूंजी में 1200 सेमी. वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान में 5' से भी कम वर्षा होती है। यहाँ अधिक व कम उपजाऊ दोनों ही प्रकार की भूमि पायी जाती है। दक्षिण भारत में एक पठारी एवं प्रायद्वीप प्रदेश तथा उत्तर में हिमालय पर्वत है। इन विविधताओं के बावजूद भी सम्पूर्ण देश भौगोलिक दृष्टि से एक इकाई का निर्माण करता है।
2. सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता में एकता - भारत एक बहुभाषी एवं विभिन्नताओं का राष्ट्र है। यहाँ पर जाति, प्रजाति, जन-जाति, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ आदि में अन्तर पाया जाता है, देश की यही विशेषतायें समाज में अनेकता भी उत्पन्न कर देती हैं। इन विशेषताओं में विभिन्नता पाये जाने का प्रमुख कारण यह रहा है कि यहाँ पर समय-समय पर बाहरी आक्रमणकारी आते रहे और वे कालान्तर में यहीं बस गये। इन्हीं आक्रमणकारियों ने न केवल अपनी संस्कृति का प्रचार एवं प्रसार किया बल्कि अधिकांश देशवासियों को अपनी संस्कृति अपनाने के लिए मजबूर भी किया। इस प्रकार भारत अनेक संस्कृतियों का संगम स्थल एवं द्रवण-पात्र बनकर रह गया अर्थात् भारत एक सांस्कृतिक बाहुल्यता वाला देश कहा जाने लगा। इसी कारण हमारे देश में विभिन्न धर्मो, भाषाओं, प्रथाओं रीति-रिवाजों, खान-पान, वेशभूषा, विचारों एवं संस्कारों आदि में बाहुल्यता पायी जाती है। यहाँ विभिन्न संस्कृतियों का सह-अस्तित्व ही सांस्कृतिक बहुलतावाद के नाम से जाना जाता है जिसके दर्शन विभिन्न रूपों में किये जा सकते हैं, जैसे - एक तरफ उच्च जाति एवं वर्ग के धनी लोग थे तो दूसरी ओर निम्न जाति एवं वर्ग के निर्धन लोग थे। - इसके बावजूद भी प्राचीनकाल से भारत की सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में एकता के दर्शन होते हैं। संयुक्त परिवार प्रणाली, जाति व्यवस्था, वर्तमान व्यवस्था, कर्म व धर्म आदि सम्पूर्ण भारतीय समाज में प्रारम्भ से ही विद्यमान रही है। कुछ संशोधनों को छोड़कर मूल रूप से प्राचीन सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य और मानक आज भी बने हुए हैं। भाषा, रहन-सहन और खान-पान में भेद होने के बावजूद कई सामाजिक धार्मिक उत्सवों एवं त्योहारों का प्रचलन सम्पूर्ण देश में रहा है। होली, दीवाली, रक्षाबन्धन एवं रामनवमी व दुर्गापूजा आदि त्योहार सभी प्रान्तों में मनाये जाते हैं।
3. भारतीय समाज में नृजातीय विविधता में एकता - संजातीयता (नृजातीय) का विश्लेषण संस्कृति एवं रंग के आधार पर किया जा सकता है। किसी समाज की जनसंख्या का वह भाग जो परिवार की पद्धति, धर्म, भाषा, प्रथा, संस्कृति एवं उत्पत्ति के आधार पर अपने आपको दूसरों से अलग समझता है, नृजातिकी समूह कहलाता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि एक प्रकार की भाषा, धर्म, प्रथा, परिवार, संस्कृति एवं आकार का एक समूह नृजातिकी कहा जा सकता है। समान जन-जाति, प्रजाति, इतिहास, खान-पान, वेशभूषा, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक हितों की रक्षा करने वाला समूह भी सांस्कृतिक समूह कहलाता है। इस प्रकार हमारा देश भी एक बहुनृजातिकी समूह वाला देश है।
यहाँ पर बहुनृजातिकी समूह होने के बावजूद भी इनके खान-पान, रहन-सहन व आर्थिक स्तरों में एकता दिखाई देती है।
4. भाषायी विविधता में एकता - भारत में पायी जाने वाली भाषाओं को मुख्यतः तीन परिवारों में विभक्त किया गया है, जोकि निम्नलिखित हैं.
(i) इण्डो-आर्यन परिवार - इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भाषाएँ आती हैं - हिन्दी, उर्द, असमिया. उडिया, बंगला, सिन्धी, मराठी, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, हिमाली एवं बिहारी आदि।
(ii) द्रविण भाषा परिवार - इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भाषाएँ आती हैं - तमिल, तेलगू, कन्नड़, गोंडी एवं मलयालम आदि।
(iii) आस्ट्रिक भाषा परिवार - इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भाषाएँ आती हैं - खासी, संथाली. मुण्डारी, हो, खरिया, भमिज, विरोहर, कोरकू, कोरका एवं जुआंग आदि। इसके अतिरिक्त इसमें चीनीतिब्बती परिवार की भाषाएँ जैसे - नेवाड़ी, मणिपुरी, नगा एवं लेपचा भाषा का प्रयोग भी किया जाता है।
यहाँ पर भारत की कुछ मुख्य भाषाओं का उल्लेख निम्न प्रकार किया गया है -
हिन्दी - यह इण्डो-आर्यन भाषा परिवार की भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है। भारत में इसे बोलने वाले लोग कुल जनसंख्या का 39.85 प्रतिशत अर्थात 33.72 करोड़ है। इसका प्रचलन निम्न प्रदेश में पाया जाता है - उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ एवं उत्तरांचल।
उर्दू - भारत में इस भाषा का प्रचलन मुस्लिम शासकों के दौरान हुआ। इस भाषा का निर्माण हिन्दी, अरबी एवं फारसी तीनों को मिलाकर हुआ है। इस भाषा का प्रयोग अधिकांशतः मुस्लिम वर्गों एवं क्षेत्रों में किया जाता है।
पंजाबी - इस भाषा को 'हिस्दुकी' के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्रयोग पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में किया जाता है। भारत में इसके बोलने वालों की संख्या 2.3 करोड़ अर्थात् कुल जनसंख्या का 2.76 प्रतिशत है।
संस्कृत - इस भाषा को देववाणी भी कहा जाता है। यह कई भाषाओं की जननी भी है। भारत के प्राचीन ग्रन्थों एवं वेदों की रचना इसी भाषा में की गई।
बंगला - इस भाषा का मुख्यतः प्रयोग बंगाल में किया जाता है। भारत में इस भाषा का प्रयोग करने वाले लोगों की संख्या 6.95 करोड़ अर्थात कुल जनसंख्या का 8.22 प्रतिशत है।
मराठी - यह भाषा मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रयोग की जाती है। भारत में इस भाषा को बोलने वालों की संख्या 6.2 करोड़ अर्थात् कुल जनसंख्या का 7.38 प्रतिशत है।
5. जातीय विविधता में एकता - भारत के प्रत्येक समाज में सामाजिक स्तरीकरण का कहीं बन्द स्वरूप तो कहीं खुला स्वरूप दृष्टिगत होता है। वर्ग व्यवस्था एवं सामाजिक स्तरीकरण के मुख्य स्वरूप की खुली व्यवस्था का उदाहरण प्रस्तुत करती है। कालान्तर में इसमें बन्द स्तरीकरण की विशेषताओं का समावेश होता गया, फलस्वरूप जन्म पर आधारित जाति-व्यवस्था का निर्माण हआ जो कि बन्द व्यवस्था को दर्शाती है। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि जन्म के आधार पर जाति सदस्यता की प्राप्ति होती है, जिसका परिवर्तन व्यक्ति के जीवन में नहीं हो सकता है।
इन विभिन्नताओं के बावजूद भी सभी जातियों में एकता है। समय-समय पर यहाँ आक्रमणकारी आते रहे हैं जिनका सामना सभी जातियाँ एक साथ मिलकर करती रहीं हैं। इस जातीय एकता ने समस्त जातियों को एक सूत्र में पिरो कर रखा है।
6. ऐतिहासिक विविधता में एकता - प्राचीन काल से ही भारत प्राकृतिक सम्पदाओं व धन-धान्य से परिपूर्ण रहा है। अतः यहाँ के वैभव से प्रभावित होकर विदेशी भारत आते रहे और इसे लूट कर ले जाते रहे। कुछ लोग तो यहाँ बस तक गये। उनके इतिहास में भिन्नता होना स्वाभाविक है, किन्तु जब वे भारत में स्थायी रूप से बस गये तो उन्होंने एक समन्वित संस्कृति का निर्माण किया। प्राचीन समय से ही विभिन्न धर्मों, जातियों एवं संस्कृतियों में एक समान भारतीय इतिहास का निर्माण किया।
7. प्रजातीय विविधता में एकता - भारत में प्रजातीय विविधता भी है। यहाँ विश्व की तीन प्रमुख प्रजातियाँ - श्वेत, पीत एवं काली तथा उनकी उप-शाखाओं के लोग निवास करते हैं। प्रजातीय भिन्नता होने पर भी यहाँ प्रजातीय संघर्ष नहीं हुआ बल्कि उनमें पारस्परिक सद्भाव और सहयोग ही रहा है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारत में विविधता में एकता पायी जाती है।
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