शैली-विज्ञान भाषा-विज्ञान की वह शाखा है, जिसके माध्यम से साहित्य की रचनात्मक कृतियों का वस्तुनिष्ठ अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार शैली-विज्ञान काव्य क
शैली विज्ञान की विवेचना कीजिए तथा उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
शैली विज्ञान की परिभाषा
शैली-विज्ञान भाषा-विज्ञान की वह शाखा है, जिसके माध्यम से साहित्य की रचनात्मक कृतियों का वस्तुनिष्ठ अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार शैली-विज्ञान काव्य की शैली के कोण से अध्ययन है।
शैली का अर्थ है-- प्रकार या काम करने का ढंग। शैली यों तो प्रत्येक प्रकार के कार्य-व्यापार से सम्बद्ध होती है, किन्तु साहित्य के क्षेत्र में शैली का अर्थ होता है--अभिव्यक्ति-शैली अथवा शब्द-प्रयोग-शैली। इसे भाषा-प्रयोग की शैली या भाषा-प्रयोग की भंगिमा भी कहा जा सकता है।
शैली की विशेषताएं
1. शैली भाषिक अभिव्यक्ति का ढंग है।
2. यह ढंग सामान्य न होकर विशिष्ट होता है अर्थात् सर्वसामान्य भाषिक अभिव्यक्ति के ढंग से अलग।
3. इसका सम्बन्ध शैलीकार के व्यक्तित्व से होता है अर्थात् व्यक्तित्व का वैशिष्ट्य शैली में झलकता है।
4. शैली विषयवस्तु से सम्बन्धित होती है।
5. सामान्य भाषिक अभिव्यक्ति से अलग करने के लिए शैली का प्रयोक्ता चयन, विचलन, संयोजन और समानान्तरता एवं अप्रस्तुत-विधान आदि उपकरणों की सहायता लेता हैं, जो सामान्य भाषा में सुलभ नहीं होते।
6. शैली भाषिक अभिव्यक्ति का ढंग हैं। अत: चयन, विचलन आदि सभी भाषिक इकाइयों (ध्वनि, शब्द, पद, वाक्य, अर्थ) की दृष्टि से हो सकते हैं।
7. किसी कृति अथवा साहित्यकार की भाषिक अभिव्यक्ति के विशिष्ट अंग का निर्धारण उसमें बहुलता से प्राप्त उपकरणों से होता है, अपवादों से नहीं, क्योंकि अभिव्यक्ति की विशेषताओं के रूप में ही शैली में व्यक्ति के व्यक्तित्व की छाप होती है।
इससे स्पष्ट है कि एक साहित्यकार अपनी काव्य-सृष्टि के समय जो भाषाप्रयोग करता है, वह सामान्य न होकर विशिष्ट होती है। यह वैशिष्ट्य भाषा के प्रत्येक अंग यथा--शब्द, अर्थ, वाक्य, प्रोक्ति, ध्वनि, रूप आदि के स्तर पर होता हैं। कवि की शैली में जो विशेषताएँ होती हैं, वे उसकी सभी कृतियों में कम या अधिक पाई जाती हैं।
शैली का अर्थ
'शैली' का अन्य अर्थ यह भी है--साहित्यिक अभिव्यंजना की प्रविधि । शैली-विज्ञान अंग्रेजी के स्टाइलिस्टिक्स (Stylistics) का अनुवाद है। कुछ लोग इसे 'रीति-विज्ञान' की भी संज्ञा देते हैं,किन्तु संस्कृत का 'रीति' शब्द एक विशिष्ट काव्यशास्त्रीय अर्थ में प्रयुक्त होता है। 'शैली' शब्द की व्यापकता उसमें नहीं है। व्यवहार में भी 'शैली-विज्ञान' शब्द प्रचलित हो गया है। इस प्रकार यह शब्द आलोचना का एक वाचक शब्द बन गया है।
भारतीय काव्यशास्त्र मुख्य रूप से भाषा और सौन्दर्य के समूह का ही पालन करता है। आचार्य भामह, दण्डी, वामन, आनन्दवर्धन, कुन्तक, क्षेमेन्द्र आदि की काव्य-परिभाषाएँ शब्दार्थ के वैशिष्ट्य से सम्बद्ध हैं। शैली-विज्ञान की अधिकांश प्रविधियों का समावेश भारतीय काव्यशास्त्र में दिखाई पड़ता है। इसी प्रकार पाश्चात्य काव्यशास्त्र में इसके सूत्र खोजे जा सकते हैं। रिचर्ड्स, रैन्सम, पाउण्ड, ब्रुक्स आदि की आलोचनात्मक शब्दावली में भी बहुत कुछ ऐसा है, जो शैली-विज्ञान में अन्तर्भुक्त हो जाता है, किन्तु अपनी भाषा-वैज्ञानिकता के कारण शैली-विज्ञान एक वैज्ञानिक प्रणाली के रूप में प्रतिष्ठित हो गया है।
व्याकरणिक भूमिका पर खड़ा शैली-विज्ञान काव्य के रूप और सौन्दर्य-पक्ष को अछूत मानता है। उसकी अपनी ही तकनीक इतनी पेचीदा है कि उसके माध्यम से सौन्दर्यशास्त्रीय आयाम खोज निकालना श्रमसाध्य कार्य है।
शैली की धारणा
पाश्चात्य जगत् में शैली सम्बन्धी पाँच प्रकार की धारणाएँ प्रचलित हैं--
1. प्रथम धारणा के अनुसार शैली का सम्बन्ध पूर्ण अभिव्यक्ति से है।
- एवर क्रॉम्बी शैली को "किसी रचना की आत्मा एवं रचयिता के व्यक्तित्व का प्रकटन'' मानते हैं।
- जे. मिडिलटन मरे शैली को "अनुभव के वैयक्तिक प्रकार की सीधी अभिव्यक्ति" मानते हैं।
- आई. ए. रिचर्ड्स का मत है--"शैली का सम्बन्ध मात्र बाह्य अभिव्यक्ति से नहीं है, उसका सम्बन्ध सम्पूर्ण रचना-प्रक्रिया से है।''
2. द्वितीय धारणा शैली को सम्पूर्ण अभिव्यक्ति से नहीं, अपितु केवल भाषा से जोड़ती है। इस धारणा के अनुसार भाषा के उपकरणों के प्रयोग की विधि ही शैली का निर्माण करती है। जॉन स्पेन्सर, एरिक इसी वर्ग के हैं। ब्रुक्स के अनुसार भाषा का चयन और उसको व्यवस्थित करना ही शैली है। इस धारणा में शैली का क्षेत्र मात्र भाषिक अभिव्यक्ति तक ही सीमित कर दिया गया है।
3. तृतीय धारणा शैली का क्षेत्र भाषा के विस्तृत क्षेत्र से हटाकर शब्द के संकुचित क्षेत्र तक ले जाती है। शैली की यह धारणा शब्द-चयन तथा शब्दव्यवस्था पर आधारित है।
4. चतुर्थ धारणा शब्द और भाषा के क्षेत्र को पीछे छोड़ शैली को सम्प्रेषण के माध्यम के रूप में देखती है। इस मत के समर्थक विद्वान बहुसंख्यक हैं।
- एफ. एल. ल्यूक्स के अनुसार--"शैली वह साधन है, जिससे मनुष्य दूसरे से सम्पर्क करता है।"
- कोक्त्यु के अनुसार "जटिल विषयों को सरल तरीके से कहना ही शैली है।''
5. पाँचवों धारणा शैली को व्यक्ति के समकक्ष मानने वालों की है। इस धारणा के प्रवर्तक बुफों के अनुसार--"व्यक्ति ही शैली है।'' पाश्चात्य आधुनिक समीक्षा में सभी समीक्षक शैलीगत विशेषताओं का अध्ययन अवश्य करते हैं, यथा--एलन टेट 'तनाव' को और 'तनाव' के अध्ययन को महत्त्व देते हैं । क्लीमेन्थ ब्रुक्स अच्छी कविताओं में व्यंग्य और विरोधाभास को कारणस्वरूप देखते हैं।
आईवर विन्टर्ज अभिधाश्रित व्यंग्य को उत्कृष्ट काव्य का गुण मानते हैं।
शैली विज्ञान और भाषा विज्ञान का समन्वय
शैली-विज्ञान का सम्बन्ध भाषा-विज्ञान और काव्यशास्त्र, दोनों से समान रूप से है । शैली-विज्ञान को समीक्षा की वह दृष्टि माना जाता है, जो भाषा-विज्ञान और काव्यशास्त्र की समन्वित पीठिका पर आधारित है। वस्तुतः शैली-विज्ञान भाषा-विज्ञान और काव्यशास्त्र के अनुबन्धन का क्षेत्र है। डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के शब्दों में--"भाषा-विज्ञान की अन्तर्दृष्टि से सन्दर्भित और उसकी विश्लेषण प्रणाली से संयुक्त काव्यशास्त्र ही शैली-विज्ञान है।"
शैली विज्ञान के रूप
भाषा की तरह शैली-विज्ञान के भी दो रूप होते हैं--(1) सैद्धांतिक और (2) प्रायोगिक। प्रथम के अन्तर्गत इसके सिद्धांतों की चर्चा होती है तथा द्वितीय में उन सिद्धांतों के आधार पर किसी साहित्य-काल, साहित्यकार, कृति, विधा अथवा कृति के किसी अंश आदि का अध्ययन-विश्लेषण किया जाता है।
शैली विज्ञान की शाखाएँ
शैली-विज्ञान की अनेक शाखाएँ हैं। इसका सम्बन्ध भाषा के प्रयोग से है । अतः भाषा के जितने भी अंग अथवा शाखाएँ होती हैं, उतनी ही शैली-विज्ञान की शाखाएँ हो जाती हैं। कुछ शाखाएँ इस प्रकार हैं--
- ध्वनीय शैली-विज्ञान
- शब्दीय शैली-विज्ञान
- अर्थीय शैली-विज्ञान
- वाक्यीय शैली-विज्ञान
- रूपीय शैली-विज्ञान
सामान्य भाषा-प्रयोग में वाक्य ही भाषा की सबसे बड़ी इकाई होती है। इसी से व्याकरण एवं भाषा-विज्ञान में वाक्य एवं उसके घटक-तत्त्वों; यथा--शब्द, अर्थ, कारक, प्रत्यय, संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया-विशेषण आदि का अध्ययन किया जाता है, परन्तु साहित्यिक कृतियों में भाषा की इकाई वाक्य न होकर सुसम्बद्ध वाक्यों का समूह होती है जिसे प्रोक्ति कहा जाता है। पूर्ण कृति को भी प्रोक्ति कहा जाता है और उसके एक सुसम्बद्ध बहुवाक्यीय अंश को भी। साहित्यिक कृति में प्रभावग्रहण वाक्य द्वारा न होकर प्रोक्ति द्वारा ही होता है।
शैली के उपकरण
शैली विज्ञान काव्यात्मा का विश्लेषण भाषा के किस रूप में करता है, यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। सामान्य भाषिक अभिव्यक्ति से अलग कर काव्य-सर्जक अपनी भाषा में जिन आभिव्यक्तिक उपकरणों की सहायता लेता है, उन्हीं के आत्म-तत्त्व की खोज करता है। वे उपकरण हैं--चयन, विचलन, संयोजन, समानान्तरता,आवृत्ति, प्रश्नात्मकता, विराम चिह्नों का प्रयोग, वैशिष्ट्य एवं लय आदि। प्रत्येक वह उपकरण, वह साधन, जो भाषिक अभिव्यक्ति में वैशिष्ट्य ले आता है, शैली का उपकरण हो जाता है।
शैली विज्ञान का मूल्यांकन
शैली-विज्ञान, वस्तुतः साहित्यालोचन की वस्तुनिष्ठ भूमिका है। यह उन विशेषताओं का अध्ययन करता है, जिसके द्वारा मानक भाषा काव्यभाषा बन जाती है और साहित्यकार का शब्द-प्रयोग अपने में विचित्र प्रभावोत्पादिनी क्षमता भर लेता है।
इस प्रकार शैली-विज्ञान साहित्यिक रचना के उन साहित्यिक गुणों का सन्धान करता है, जो परम्परागत साहित्य-समीक्षा नहीं कर पाती। शैली-विज्ञान की उपादेयता साधन-रूप में है, क्योंकि वह साहित्य के मूर्त-रूप वर्ण, शब्द, वाक्य आदि का विश्लेषण कर रचना के भाषिक अध्ययन द्वारा उसके मूल अर्थ-काव्यार्थ-को व्यक्त करने में तथा कलात्मक मूल्य के आकलन में सहायक बनता है।
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