सामाजिक आंदोलन में दबाव समूहों की भूमिका : वर्तमान युग लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का युग है। लोकतंत्र में दबाव समूहों की भूमिका सामाजिक आंदोलनों में अत्यध
सामाजिक आंदोलन में दबाव समूह की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
सामाजिक आंदोलन में दबाव समूहों की भूमिका : वर्तमान युग लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का युग है। लोकतंत्र में दबाव समूहों की भूमिका सामाजिक आंदोलनों में अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। दबाव समूह लोकतंत्र के अभिन्न अंग माने जाते हैं, जैसा कि हमैन लिखते हैं कि - "दबाव समूहों के माध्यम से व्यक्ति समाज के अस्तित्व का अनुभव करता है और इस तरीके से समूह का अध्ययन और मनन होता है।" अत: इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक आंदोलनों में दबाव समूहों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण व उपयोगी है। सामाजिक आंदोलन वह स्थिति होती है जब समाज में अलग-अलग धर्म-जाति, समुदाय के व्यक्ति किसी समस्या अथवा मुद्दे पर एक साथ आकर मिलकर आवाज उठाते हैं और व्यवस्था से अपेक्षित समाधानों की माँग करते हैं। इनका सरोकार सामाजिक समस्याओं से होता है। सामाजिक आंदोलनों में दबाव समूहों की भूमिका को निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत भलीभाँति उल्लिखित किया जा सकता है
सामाजिक आंदोलन में दबाव समूह की भूमिका
- हित समूहीकरण एवं स्पष्टीकरण,
- सामाजिक आंदोलनों को सशक्त स्वरूप प्रदान करना,
- व्यवस्था एवं आंदोलनकारियों के मध्य सम्वाद सहयोगी,
- सामाजिक आंदोलन के प्रचार प्रसार में उपयोगी,
- सामाजिक आंदोलन का विधिक औचित्य सिद्ध करना
1. हित समूहीकरण एवं स्पष्टीकरण - कोई भी सामाजिक गतिविधि आंदोलन' का रूप तभी धारण करती है. जबकि उससे सम्बंधित कार्यकर्ताओं व नेतत्वकर्ताओं को भली प्रकार से सामहिक हितों का ज्ञान हो और वे इन्हें स्पष्ट रूप से व्यवस्था के समक्ष उठा पाएँ। अत: दबाव समूहों की भूमिका यहाँ महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि दबाव समूह सामान्य तौर पर ऐसे व्यक्तियों का संगठन होते हैं, जिनके उद्देश्य व हित समान होते हैं। ये समूह अपने हितों की रक्षा हेतु प्रयत्नशील रहते हैं। इस प्रकार दबाव समूहों के माध्यम से समाज के विविध वर्गों, समुदायों एवं व्यक्तियों के हितों का समूहीकरण सरलता से हो जाता है। लोगों को सरलता से यह ज्ञात हो जाता है कि उनके कौन से हित समान हैं और समान हितों के लिए सामूहिक प्रयास से क्या-क्या लाभ हो सकते हैं। इस प्रकार दबाव समूहों के माध्यम से जन साधारण में हित के लिए समूहीकरण व स्पष्टीकरण सरलता से हो जाता है और वे सामाजिक आंदोलनों हेतु प्रेरित हो जाते हैं।
2.सामाजिक आंदोलनों को सशक्त स्वरूप प्रदान करना - सामाजिक आंदोलनों में दबाव समूहों की भूमिका का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि दबाव समूह सामाजिक आंदोलनों को सशक्त स्वरूप प्रदान करते हैं। चूँकि दबाव समूह पहले से ही समान हितों हेतु संघर्षरत व्यक्तियों के संगठन के रूप में शासन व प्रशासन पर दबाव बनाने के प्रयासों में सक्रिय होते हैं, अत: ऐसे में जब किसी सामाजिक आंदोलन की बात की जाए तो ये आंदोलन के उद्भव व विकास तथा सशक्त क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दबाव समूह कई सामाजिक आंदोलनों के अगुआहार होते हैं तो कई सामाजिक आंदोलनों के उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। किसी भी सामाजिक आंदोलन में दबाव समूह की सक्रियता से उसे शीघ्र ही राजनीतिक व सामाजिक स्तर पर प्रभावकारी स्थिति प्राप्त हो जाती है। साथ ही साथ शासन व व्यवस्था पर आंदोलन के प्रति गम्भीर रवैया अपनाने और सम्बंधित माँगों के शीघ्र निस्तारण का दबाव भी बनता है। अत: इस प्रकार दबाव समूह सामाजिक आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण स्वरूप - किसानों से सम्बंधित आंदोलनों में 'भारतीय किसान यूनियन' सदैव महत्वपूर्ण भूमिका में नजर आता है।
3.व्यवस्था एवं आंदोलनकारियों के मध्य सम्वाद सहयोगी - सामाजिक आंदोलनों में व्यवस्था व आंदोलनकारियों के मध्य दबाव समूहों की भूमिका सम्वाद सहयोगी की नजर आती है। दबाव समूह चूँकि शासन से सीधे सम्पर्क में होते हैं और जनता के बीच भी इनकी विश्वसनीयता होती है। अत: सामाजिक आंदोलनों के दौरान एक शासन व आंदोलनकारियों के मध्य उत्तम सम्वाद सहयोगी सिद्ध होते हैं। इनके माध्यम से आंदोलन से सम्बंधित माँगों व हितों को प्रभावपूर्ण ढंग से व्यवस्था व शासन के समक्ष रखा जा सकता है। इसमे आंदोलन की सफलता की सम्भावनाएँ प्रबल होती हैं। वहीं दूसरी ओर शासन को भी सामाजिक आंदोलन के निपटारे व उसे अहिंसक बनाए रखने में दबाव में सहायता प्राप्त होती है.क्योंकि आंदोलनकर्ता शासन के प्रतिनिधियों की बातों पर शीघ्रता से विश्वास नहीं कर पाते।
4. सामाजिक आंदोलन के प्रचार प्रसार में उपयोगी - दबाव समूह सामाजिक आंदोलन को तेजी से प्रसारित करने का प्रयास करते हैं क्योंकि सामाजिक आंदोलन का स्वरूप जितना अधिक व्यापक होगा उसकी सफलता की सम्भावनाएँ उतनी ही अधिक होंगी। दबाव समूह सदैव अस्तित्व में रहते हैं अत: उन्हें माँगों व हितों के प्रचार व प्रसार व उन पर सामाजिक अनुशस्ति प्राप्त करने का अधिक अनुभव प्राप्त होता है, जिस कारण सामाजिक आंदोलनों को भी उनके इस अनुभव व कार्यतन्त्र का लाभ प्राप्त हो जाता है। इससे दबाव समहों की शासन की नजर में स्थिति भी प्रभावी होती है, अत: वे बढ़चढ़कर आंदोलन को हवा देने का प्रयास करते हैं।
5. सामाजिक आंदोलन का विधिक औचित्य सिद्ध करना - कोई भी सामाजिक आंदोलन तभी सफल हो सकता है जबकि वह विधिक औचित्य रखता हो। ऐसे में दबाव समूह अत्यधिक उपयोगी भूमिका का निर्वाह करते हैं। ये माँग से सम्बंधित तथ्यपरक आँकड़े एकत्रित करते हैं और साथ ही साथ न्यायिक सहायता प्राप्त करने हेतु भी तत्पर रहते हैं। इनके द्वारा आंदोलन की मांगों से सम्बंधित प्रमाणित आँकड़ों का प्रकाशन भी कराया जाता है, ताकि जनता उनसे अवगत हो और आंदोलन को लोकप्रियता व जनसमर्थन प्राप्त होने के साथ-साथ वैधानिता भी प्राप्त हो।
निष्कर्ष - उपर्युक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर निष्कर्षतया कहा जा सकता है कि सामाजिक आंदोलन लोकतांत्रिक व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तनों के वाहक हैं और इनमें दबाव समूहों की भूमिका उत्प्रेरक एवं सहयोगी की होती है। दबाव समूह सामाजिक आंदोलन के आगाज से लेकर अन्जाम तक के सभी चरणों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। परन्तु दबाव समूहों को सामाजिक आंदोलनों में सहभागिता करते समय और अधिक निष्पक्ष नि:स्वार्थ होना पड़ेगा क्योंकि ये आंदोलन को सही दिशा व दशा प्रदान करने वाले महत्वपूर्ण संगठन हैं। निःसन्देह लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक आंदोलनों में दबाव समूह प्रमुख कर्ता-धर्ता की भूमिका में नजर आते हैं।
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