महानगरों में आवास की समस्या पर निबंध - Mahanagar me Aawas ki Samasya par Nibandh महानगरों के विकास साथ जो प्रमुख समस्या हमारे सामने वह है ...
महानगरों में आवास की समस्या पर निबंध - Mahanagar me Aawas ki Samasya par Nibandh
महानगरों के विकास साथ जो प्रमुख समस्या हमारे सामने वह है 'आवास' की समस्या। इसके हमें जानना होगा की आदर्श किसे कहते हैं और वह कैसा होना चाहिए? आवास, केवल चार दीवारों और छत से नहीं निर्मित होता। आदर्श आवास की अवधारणा में बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन होने चाहिए जैसे शुद्ध पेय जल, शौचालय ,जल निकासी की उचित व्यवस्था, आवासीय क्षेत्र के निकट विद्यालय, औषधालय, उद्यान आदि।
एक आदर्श आवास कैसा होना चाहिये ?
आवास का निर्माण करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे आवास सदैव ऊँचे स्थान पर निर्मित किया जाना चाहिये। आवास में रोशनी तथा हवा की व्यवस्था होनी चाहिए। परिवार में सदस्यों के अनुसार कक्षों का निर्माण होना चाहिए। रसोईघर,शौचालय एवं स्नानागार की व्यवस्था होनी चाहिए। उपर्युक्त सभी विशेषताएँ के अभाव में एक आदर्श आवास का निर्माण नहीं किया जा सकता।
आवासों के प्रकार
1. प्रथम श्रेणी- इस श्रेणी में पक्के आवास आते हैं, जिनकी दीवारें ईंट तथा पत्थर की होती हैं, जिसमें छत पक्की, खपरैल या सीमेंट चादरों की होती हैं। ऐसे आवास नगरों में पाए जाते हैं।
2. द्वितीय श्रेणी- इस श्रेणी में मिट्टी की दीवार वाले मकान आते हैं। इस प्रकार के मकानों में छत खपरैल या टीन की चादरों की होती है। इस श्रेणी के आवास नगर की मलिन बस्तियों में पाए जाते हैं।
3. तृतीय श्रेणी- इस श्रेणी के अंतर्गत घास-फूस से बनी झोपड़ियाँ आती हैं। ऐसे आवास मूलत: गाँवों में ही पाए जाते हैं।
आवास की समस्या
आवास की चुनौती एक विश्वव्यापी समस्या है, लेकिन भारत में यह स्थिति अधिक विकराल है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने आवासहीनों के लिए आवास उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वर्ष 1987 को अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप मेंमानाने का निर्णय किया तथा इसके तहत हर देश में आवास नीति को नये सिरे से निर्माण करना तथा सन् 2000 तक सभी गरीबों के लिए आवास उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था।
शहरी क्षेत्रों में आवासीय सुविधायें उपलब्ध कराने की दिशा में निम्नलिखित बाधाएँ व्याप्त हैं
1.वित्त की कमी- भारतीय नगरीय क्षेत्रों में रहने वाले अधिकाँश लोग 'मध्यमवर्गीय और निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों' से हैं, जिनके पास वित्त संसाधनों की उपलब्धता नहीं होती। ऊँची बढ़ती हुई जमीन और आवास की कीमतों की अपेक्षाकृत उनके आय के स्रोत कम होते हैं ऐसे में उनके पास एक मात्र विकल्प बचता है बैंकों तथा जीवन बीमा निगम जैसी संस्थाओं से ऋण लेकर आवास खरीदना परन्तु ऋण लेना एक सहज प्रक्रिया नहीं है। ये संस्थाएँ भी ऋण देने से पहले व्यक्ति की नियमित आय के स्रोतों की जानकारी प्राप्त करती हैं और उसमें कमी के अभाव में ऋण नहीं दिया जाता।
2. भूमि की कमी- प्रत्येक 10 लाख अतिरिक्त आवास इकाइयों हेतु 6 हजार हैक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है। इसी उद्देश्य से सरकार द्वारा शहरी भूमि (सीलिंग एंड रेगुलेशन) अधिनियम लागू किया गया। इस अधिनियम के माध्यम से कुछ लोगों के हाथों में शहरी भूमि के संकेन्द्रण को रोका गया। परन्तु वास्तविकता में भू-माफिया ने इसके अनेक तोड़ निकाल लिये और आज अधिकांश नगरों में येन-केन प्रकारेण भूमाफियों ने भूमि पर कब्जे कर रखे हैं।
नगरों में आवासों की वर्तमान स्थिति
आवास का तात्पर्य चार दीवारी एवं छत मात्र से नहीं है। आवास की अवधारणा में मूलभूत सुविधाओं की उपलब्धता भी है। विगत वर्षों में विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी स्तरों पर हो रहे प्रयासों के चलते इस स्थिति में सकारात्मक सुधार आया है। आवासीय गुणवत्ता इस तथ्य से पता चली है कि आवासीय परिसर में पीने के पानी के उपलब्धता है या नहीं, जल निकासी की व्यवस्था किस स्तर की है, या फिर आवास में विद्युत आपूर्ति है या नहीं? इन सभी दृष्टिकोणों के परिप्रेक्ष्य में अगर हम आवासों की नगरों में स्थिति का विश्लेषण करते हैं तो निम्नांकित तथ्य सामने आते हैं•
लगभग 70% शहरी जनगणना आवास अच्छी हालत में हैं जोश हरी क्षेत्रों में जीवन स्तर में सुधार का प्रतीक है।
• अधिकांश शहरी घर पीने के पानी के स्रोत के रूप में नल के पानी का उपयोग कर रहे हैं।
• शहरी क्षेत्रों में शौचालय सुविधा में उल्लेखनीय सुधार दर्शाया गया, क्योंकि 82% शहरी घरों में परिसरों के अन्दर शौचालय सुविधा है लेकिन अभी भी 18% घरों को परिसर के अन्दर शौचालय की सुविधा की आवश्यकता है।
• पिछले दशक में पेयजल तक पहुँच में वृद्धि हुई है, लेकिन सुधार की गति अभी भी धीमी है।
• विद्युत वाले घरों के अनुपात में 1991-2011 की अवधि में वृद्धि हुई है, वर्ष 2011 में लगभग 93 प्रतिशत घर प्रकाश के स्रोत के रूप में विद्युत का उपयोग कर रहे हैं।
उपर्युक्त आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि विगत दस वर्षों में भारत के आवासों की स्थिति में सकारात्मक बदलाव आया हैं । यह विश्वास किया जा रहा है कि आने वाले समय में इस स्थिति में और बदलाव आएगा क्योंकि सरकारी स्तर पर नगरीय क्षेत्रों में निवास कर रहे लोगों के जीवन स्तर को सुधारने हेतु प्रयास किये जा रहे हैं।
आवास उपलब्धता के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास
कुछ वर्षों पूर्व तक आवास को उपभोक्ता वस्तु समझा जाता था, लेकिन बीते दिनों में विश्व में यह विचार बना है कि आवास को मात्र उपभोक्ता वस्तु न समझा जाये क्योंकि ये समूची विकास प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। भारत में आवास, रोजगार के अवसर पैदा करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। भवन निर्माण में प्रतिवर्ष दस प्रतिशत से अधिक रोजगार के अवसरों की वृद्धि को दर्ज किया गया है।
यह एक सराहनीय बात है कि सरकारी स्तर पर ऐसे अनेक कदम उठाये गये हैं जो आवास निर्माण गतिविधियों को बढ़ाने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने में सहायक होंगे। इनका मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों, कम आय वाले लोगों और इस प्रकार के अन्य कमजोर लोगों जैसे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों, ग्रामीण भूमिहीन श्रमिकों तथा कारीगरों आदि को सस्ते मकान उपलब्ध कराना है।
राष्ट्रीय आवास नीति
वर्ष 1950 के बाद भारत सरकार ने बारह पंचवर्षीय योजनाएँ बनायी जिनका उद्देश्य आवास और शहरी विकास है, इसी के परिणामस्वरूप नेहरू रोजगार योजना के शहरी निर्धनता-उन्मूलन कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस योजनाओं में संस्था निर्माण तथा सरकारी कर्मचारियों एवं कमजोर वर्गों के लिये मकानों के निर्माण पर जोर दिया गया। 'ग्लोबल शेल्टर स्टेट (जीएसएस) की अनुवर्ती कार्रवाई के रूप में 1998 में राष्ट्रीय आवास नीति की घोषणा की गई जिसका दीर्घकालिक उद्देश्य आवासों की कमी की समस्याओं को दूर करना, अपर्याप्त आवास व्यवस्था की आवासीय स्थितियों को सुधारना तथा सबके लिए बुनियादी सेवाओं एवं सुविधाओं का एक न्यूनतम स्तर मुहैया कराना था।
केन्द्र सरकार के स्तर पर राष्ट्रीय आवास नीति को लागू करने की दिशा में कई उपाय किए गए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना सबके लिए आवास(शहरी)
इस मिशन का आरम्भ सन् 2015 में हुआ। 2015-2022 के मध्य इस मिशन को कार्यान्वित किया जाएगा और निम्नलिखित कार्यों के लिये शहरी स्थानीय निकायों तथा अन्य कार्यान्वयन ऐजेंसियों को राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के जरिये केन्द्रीय सहायता उपलब्ध करायी जाएगी
- निजी भागीदारी के जरिये संसाधन के रूप में,
- भूमि का उपयोग करके मौजूदा झुग्गीवासियों का यथास्थान पुनर्वास। ऋण सम्बद्ध सहायता।
- भागीदारी में किफायती आवास। लाभार्थी के नेतृत्व वाले आवास के निर्माण/विस्तार के लिए सहायता।
आवास निर्माण की सहायक संस्थाएँ
देश में आवास समस्या को देखते हुए आवासों के निर्माण की अत्यन्त आवश्यकता है। इसलिए निजी, सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक संस्थाएँ आवासों के निर्माण में संलग्न हैं।
1. आवास निर्माण में निजी क्षेत्र की भूमिका- नगरीय क्षेत्र में आवास निर्माण में ठेकेदारों का प्रायःसहयोग लिया जाता है। आवासों की माँग बढ़ने के कारण निजी बिल्डर्स का व्यवसाय भी निरंतर बढ़ता जा रहा है किन्तु इस क्षेत्र में केवल उच्च आय समूह तथा उच्च मध्यम आय समूह के लोगों की ही आवास आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
2. आवास निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका- आवास निर्माण के कार्य में केन्द्र सरकार,सार्वजनिक वित्तीय संस्थाएँ तथा विकास प्राधिकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्ष 1957 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के अंतर्गत एक ग्रामीण आवास योजना शुरू की गई, जिसमें व्यक्तियों तथा सहकारी समितियों को प्रति आवास अधिकतम 5000 रुपये उपलब्ध कराये गये। इस योजना के अंतर्गत 1980 तक 67000 आवास बने न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम और बीस सूत्री कार्यक्रम में ग्रामीण आवास स्थल एवं आवास निर्माण योजना को उच्च प्राथमिकता दी गयी।
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